रमेश कुमार ‘रिपु’

मध्य प्रदेश की ऊर्जा राजधानी सिंगरौली की गिनती प्रदेश के शीर्ष औद्योगिक जिलों में होती है फिर भी यह देश का तीसरा सबसे पिछड़ा जिला है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सिंगरौली को सिंगापुर बनाने की बात तो कही लेकिन कभी इस दिशा में सोचा ही नहीं। विकास के कुछ काम हुए हैं लेकिन बैढ़न तक ही। बैढ़न से बाहर निकलते ही पिछड़ापन दिखने लगता है। सिंगरौली सबसे अधिक बिजली उत्पादन करने वाला जिला इसलिए है कि यहां एनटीपीसी, हिंडालको, जेपी निगरी, एस्सार पावर और सासन पावर प्लांट से करीब 45 हजार मेगावाट से ज्यादा की बिजली पैदा की जा रही है। दूसरी ओर मात्र 20 किलोमीटर दूर के गांव अंधेरे में हैं। जिले के 75 गांव ऐसे हैं जहां देश की आजादी के 71 बरस बाद भी बिजली के तार नहीं पहुंचे हैं।

पॉवर हब के बावजूद अंधेरा
पॉवर हब होने के बावजूद सिंगरौली जिले के ंिचंतरंगी ब्लाक के 35 गांव, बैढ़न ब्लाक के 16 गांव और देवसर ब्लाक के 24 गांवों में बिजली नहीं है। यदि इन सभी गांवों को जोड़ दिया जाए तो यहां की कुल आबादी 56 हजार है। 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वायदा किया था कि एक हजार दिन में अंधेरे में डूबे गांवों में बिजली पहुंचा दी जाएगी। 28 अप्रैल 2018 को प्रधानमंत्री ने कहा, 18वीं शताब्दी में अब तक अंधेरे में जी रहे देश के 18,452 गांवों को अंधेरे से मुक्त कर दिया गया। उनकी बातों पर भरोसा कर भी लिया जाए तो यह बात खटकती है कि सिंगरौली ही नहीं, मध्य प्रदेश के 30 लाख घरों में अब तक बिजली नहीं पहुंची है। तो क्या यह मान लिया जाए कि सिर्फ पब्लिसिटी के लिए कहा गया कि देश के 18,452 गांव अंधेरे से मुक्त कर दिए गए। सिंगरौली में छह बड़े पॉवर प्लांट होने के बावजूद गांवों को बिजली मयस्सर नहीं है।

हर घर को रोशन करने का लक्ष्य
शिवराज सरकार इस प्रयास में है कि विधान सभा चुनाव से पहले मध्यप्रदेश को अंधेरा मुक्त राज्य घोषित कर दिया जाए। नवंबर में चुनाव होने हैं। जाहिर है कि सरकार चाहेगी कि अक्टूबर तक उन सभी घरों में बिजली के कनेक्शन दे दिए जाएं जो अंधेरे में हैं। मध्य प्रदेश में सौभाग्य सहज बिजली योजना की केंद्र और राज्य सरकार की पहल पर ऐसे सभी घरों को बिजली कनेक्शन से जोड़ा जा रहा है जो वर्षों से इसके अभाव में रोशनी से वंचित थे। सर्वे के अनुसार गांवों में 43 लाख 40 हजार 262 बिजली विहीन घरों में अब तक इस योजना के तहत 13 लाख 17 हजार 707 घरों में बिजली कनेक्शन दिया जा चुका है।

बिजली की रफ्तार धीमी
बिजली के मामले में सरकार की अवधारणा जो भी हो, लेकिन सच्चाई यह है कि बिजली का करेंट उतनी तेजी से गांवों तक नहीं पहुंच पा रहा है जिस तरह के वायदे किए गए हैं। प्रदेश के मुरैना में दो लाख 18 हजार 593 घरों में बिजली नहीं थी। हर दिन 14 हजार घरों को रोशन करने का लक्ष्य अफसरों को दिया गया है। कलेक्टर और बिजली कर्मचारियों पर लक्ष्य पूरा करने का दबाव है। मध्य प्रदेश के ऊर्जा मंत्री पारस जैन कहते हैं, ‘हर घर में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य है। इसके लिए 40 लाख घरों में कनेक्शन देना है। इस पर काम चल रहा है। बड़ा लक्ष्य है इसलिए मेहनत ज्यादा होगी। इससे जनता को फायदा भी होगा। उम्मीद है कि चुनाव से पहले यह काम हो जाएगा।’

सौभाग्य योजना के तहत सर्वे
केंद्र सरकार की सौभाग्य योजना के तहत प्रदेश में अंधेरे में डूबे गांवों को रोशन करने से संबंधित एक सर्वे किया गया। इस काम को प्रदेश के 12 हजार डाकियों ने अंजाम दिया। 6 नवंबर 2017 से 31 दिसंबर 2017 तक यानी 55 दिनों में डाकियों ने ढूंढ निकाला कि 40.35 लाख घर ऐसे हैं जहां बिजली तो दूर कनेक्शन तक नहीं हुए हैं। इन घरों में रोशनी बिजली से नहीं चिमनी से होती है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने भाषण में यही कहते आए हैं कि मध्य प्रदेश को देश का नंबर एक राज्य बनाएंगे। लेकिन चौकाने वाली बात यह है कि प्रदेश की राजधानी भोपाल के भी कई घरों में बिजली नहीं है। भोपाल जिले के 501 गांवों में सर्वे किया गया। इन गावों के 94,675 घर तक पोस्टमैन पहुंचे। इनमें से 1207 घर ऐसे मिले जिनमें अब तक बिजली नहीं पहुंच पाई है। वहीं इंदौर जिले के 994 घर ऐसे हैं जिनमें बिजली कनेक्शन तक नहीं हुए हैं। डाकियों ने प्रदेश के 51 जिलों के 51,929 गांवों और 1,11,12,821 घरों में सर्वे किया। सर्वे में पाया कि 40,35,000 घरों में अंधेरा है। एक पोस्टमैन के पास 8 से 10 गांवों की जिम्मेदारी थी। पोस्टमैन ने गांव के सरपंच को साथ लेकर उनकी मौजूदगी में घर-घर जा कर बिजली की जानकारी जुटाई।

आदिवासी और नक्सली इलाकों में हालात खराब
सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक आदिवासी और नक्सल प्रभावित बालाघाट, डिंडोरी, मंडला और सिवनी जिलों के 62,384 घरों में अभी तक बिजली नहीं पहुंची है। शहडोल, अनूपपुर, उमरिया सीधी और सिंगरौली के 58,198 घरों में अंधेरा है। ऐसे ही छिंदवाड़ा और बैतूल के 40,369 घर अब तक अंधेरे में हैं। गौरतलब है कि 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, ‘हमारी सरकार बनी तो तीन साल के भीतर देश के हर गांव में बिजली पहुंचा दी जाएगी। गांव बदलेंगे तो देश बदलेगा।’ लेकिन सच्चाई कुछ और ही है।

सरकारी आंकड़ों का सच
केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 में 18,452 गांवों की पहचान कर तीन साल के भीतर वहां बिजली पहुंचाने का भरोसा दिया था। ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल दावा करते हैं कि उनमें से 13,516 गांवों तक बिजली पहुंच चुकी है। उनका कहना है कि 944 गांवों में कोई आबादी नहीं है और बाकी लगभग चार हजार गांवों में अगले साल पहली मई तक बिजली पहुंच जाएगी। दूसरी ओर सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि जिन साढ़े तेरह हजार गांवों तक बिजली पहुंचाने के दावे हो रहे हैं वहां महज आठ फीसदी घरों तक बिजली की रोशनी पहुंची है। ऊर्जा मंत्रालय की वेबसाइट में ग्रामीण विद्युतीकरण में कहा गया है कि इन साढ़े तेरह हजार गांवों में से 1,089 गांवों में ही घर-घर बिजली पहुंचाई जा सकी है। नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में अब भी तीस करोड़ से ज्यादा लोगों तक बिजली नहीं पहुंची है। 50 करोड़ लोग बायोगैस से खाना पकाने पर मजबूर हैं। जाहिर है कि आंकड़ों का उजाला फाइलों में है।

दावे का सच
हरदा जिले के आदिवासी ग्राम खारी में आजादी के सात दशक बाद भी बिजली नहीं पहुंची है। जबकि गांव से पांच किलोमीटर दूर बिजली के खंभे लगे हैं। इस गांव की आबादी करीब डेढ़ सौ है। संभागीय मुख्यालय रीवा में ही 3,803 घरों में बिजली नहीं है। खनिज मंत्री राजेन्द्र शुक्ला कहते हैं, ‘जहां बिजली नहीं पहुंची वहां के लोगों को बिजली मिले इसका प्रयास किया जा रहा है। अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि बिजली एवं अधोसंरचना के कार्य बरसात से पूर्व अनिवार्य रूप से कर लिए जाएं।’ शहर के कई वार्डों में अब भी लोग बांस गाड़ कर दूर से बिजली ला रहे हैं। नगर निगम रीवा के नेता प्रतिपक्ष अजय मिश्रा बाबा कहते हैं, ‘नियम की बात करें तो शहरी क्षेत्र में सांसद और विधायक निधि से विद्युत पोल लगाने का प्रावधान है। इसके लिए जिला योजना समिति की बैठकों में प्रस्ताव रखे जाते हैं, लेकिन रीवा में जिला योजना समिति की बैठक नहीं हो रही है। ऐसा क्यों, इसका जवाब कलेक्टर ही दे सकते हैं।’
बहारहाल, प्रदेश में अटल ज्योति और सौभाग्य योजना के तहत मिलने वाली बिजली सबको मिल सके, इसके लिए काया पलट की जरूरत है। राजनीतिक विकास की बातों से गांवों का अंधेरा नहीं दूर हो सकता। रसूखदारों और आम लोगों के खिलाफ बिजली के मामले में समान कार्रवाई से ही बिजली की बदहाल व्यवस्था में सुधार हो सकेगा। 