पत्थलगड़ी पर बवाल

रमेश कुमार ‘रिपु’
पड़ोसी राज्य झारखंड में पत्थलगड़ी का विवाद बवंडर की तरह उठा तो छत्तीसगढ़ भी उसकी चपेट में आ गया। जशपुर से उठी आग छत्तीसगढ़ के कई जिलों में फैल गई है। चुनावी साल होने की वजह से विपक्ष पत्थलगड़ी आंदोलन को राजनीतिक रंग दे रहा है। इसके समर्थन में रैलियों की वजह से हालात बिगड़ने लगे हैं। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के निर्वाचन क्षेत्र राजनांदगांव के माओवाद प्रभावित आदिवासी बहुल मानपुर ब्लॉक के कई गांवों में पत्थलगड़ी की दस्तक ने सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है। गुंडरदेही के विधायक आरके राय कहते हैं, ‘जशपुर जिले के गांवों में बनी पत्थलगड़ी में लिखी कोई भी बात असंवैधानिक नहीं है। लिखी इबारत से संविधान की अवमानना नहीं होती। जूदेव का परिवार अपनी सियासी साख बचाने के लिए इसमें मिशनरियों का हाथ बताकर इसे प्रचारित कर रहा है।’
पत्थलगड़ी आदिवासियों की एक प्राचीन परंपरा है। इसमें पत्थर गाड़ कर इलाके को प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित कर दिया जाता है। यहां बिना ग्राम सभा की अनुमति के किसी भी दूसरे व्यक्ति का प्रवेश वर्जित है। पत्थलगड़ी आंदोलन में ईसाई समुदाय के दखल से इनकार भी नहीं किया जा सकता। गौरतलब है कि जशपुर जिले के कुनकुरी में एशिया का सबसे बड़ा चर्च है। ईसाई समुदाय की आबादी सरगुजा और रायगढ़ जिलों में भी है। कांग्रेस की अमर भगत जांच समिति भी मानती है कि पत्थलगड़ी की इबारत से संविधान का उल्लंघन नहीं होता। भाजपा पत्थलगड़ी विवाद को धार्मिक रंग देकर वोटों का धु्रवीकरण करना चाहती है। ऐसे में सवाल यह भी है कि अनुसूचित जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष नंद कुमार साय ने जब 17 फरवरी को शिलालेख की पूजा की और पत्थलगड़ी की वकालत की तब मुख्यमंत्री चुप क्यों रहे। यदि यह मान लिया जाए कि आदिवासियों ने शिलालेख में जिन बातों का जिक्र किया है, वो भ्रामक हैं तो सरकार ने लिखने वालों के खिलाफ अब तक कार्रवाई क्यों नहींं की।

क्यों भड़का मामला
केंद्रीय इस्पात मंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में जशपुर जिले की बगीचा तहसील के कलिया से बछराव तक पत्थलगड़ी के विरोध में सद्भावना पदयात्रा 28 अप्रैल को निकाली गई। जिले के तीनों भाजपा विधायक और सांसद रणविजय सिंह जूदेव भी पदयात्रा में शामिल थे। बछरांव में पत्थलगड़ी तोड़ देने का विरोध मिशन के प्रभाव वाले समुदाय ने किया तो पथराव शुरू हो गया। हिंसक स्थिति बनती देखरैली में शामिल पदयात्री मौके से रवाना हो गए। जशपुर के कलिया, बटुंगा और बछरांव में बिगड़े हालात से सवाल यह उठता है कि विष्णु देव साय और रणविजय सिंह के नेतृत्व में पत्थरों को क्यों तोड़ा गया। पत्थलगड़ी पर हरा रंग चढ़ाना भी कई संदेहों को जन्म देता है। इसके विरोध में अफसरों को बंधक बनाने से स्पष्ट है कि आदिवासी गुस्से में हैं। डॉ. रमन सिंह कहते हैं, ‘कुछ लोगों ने आदिवासियों को बरगलाने के लिए पांचवीं अनुसूची और पेसा एक्ट की गलत व्याख्या की है। पत्थलगड़ी के नाम पर जो गतिविधियां हुर्इं वो असंवैधानिक हैं। ये संविधान का विरोध है। किसी भी गांव में सरकार को जाने से कैसे रोका जा सकता है। आगामी चुनाव को देखते हुए यह षड्यंत्र है और इसके पीछे ईसाई मिशनरी की ताकत है जो धर्मांतरण को बढ़ावा देना चाहती है।’ वहीं प्रदेश कांग्रेस प्रभारी पीएल पुनिया कहते हैं, ‘विकास होता तो ऐसा होता ही नहीं।’ जबकि प्रदेश के गृह मंत्री राम सेवक पैकरा का आरोप है, ‘पत्थलगड़ी की आड़ में प्रदेश के शांत क्षेत्रों में माओवाद की आग लगाने की कोशिश की जा रही है। यह राष्ट्र विरोधी के साथ संविधान विरोधी कृत्य भी है। किसी भी कीमत पर आदिवासियों को बांटने वाली ताकतों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।’

आदिवासी समाज नाराज
पत्थलगड़ी का नेतृत्व करने के आरोप में प्रशासन ने रिटायर्ड आईएएस अधिकारी एचपी किंडो तथा ओएनजीसी से सेवानिवृत्त जोसफ तिग्गा, दाऊद, पीटर और सुबोध खलखो सहित आठ लोगों को देशद्रोह समेत अलग-अलग धाराओं में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। उनकी गिरफ्तारी से आदिवासी समाज नाराज है और सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहा है। आदिवासी समाज के संयोजक एवं पूर्व आईएएस बीपीएस नेताम ने कहा कि गिरफ्तारी बदले की भावना से की गई है और सरकार खुद अपना नुकसान करा रही है। झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में आदिवासियों ने गांवों में जो पत्थर गाड़े हैं, ग्राम सभाओं के संदर्भ में उनकी भाषा एक सी है। कुछ ऐसी भी इबारतें लिखी गई हैं जो संविधान के दायरे से बाहर है। गांवों के बाहर लगे पत्थरों में ग्राम सभा को सबसे ऊंचा बताया गया है। एक बोर्ड में लिखा था, ‘जनजातियों की रूढ़िवादी प्रथा को विधि का बल प्राप्त होने तथा विधानसभा या राज्यसभा द्वारा बनाया गया।’
सरकार को चुनौती
पत्थलगड़ी अभियान में सरकार को चुनौती दी जा रही है कि ग्राम सभाएं स्वायत्त हैं। उनकी सीमा में ही उनके कानून मान्य होंगे। जाहिर है इस वजह से आदिवासियों और प्रशासन में टकराव की स्थिति बन रही है। आदिवासी संगठनों का कहना है कि ये परंपरा है जो संविधान में अधिसूचित क्षेत्रों को दिए अधिकारों के तहत है। राजस्थान के डूंगरपुर में पंचायत उपबंध अधिनियम 1996 (पेसा) को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए दो साल से बागड़ मजदूर किसान संगठन सक्रिय हैं। यहां बिछीवाड़ा और दोवड़ा ब्लॉक के 140 गांवों के ग्राम सभाओं में पत्थलगड़ी हुई है। मध्य प्रदेश के तीन आदिवासी जिले बालाघाट, डिंडोरी और मंडला में पत्थलगड़ी हुई है। बालाघाट में आदिवासी संगठनों की एक सौ ग्राम सभाएं सक्रिय हैं। जबकि डिंडौरी में 70 और मंडला में 20 से अधिक।
‘हमारा गांव, हमारा राज’ का नारा इन दिनों गांवों में गूंज रहा है। पेसा एक्ट को दस राज्यों को उसकी भावना के अनुरूप लागू करना था। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकारों ने इस एक्ट के अधिकारों को आदिवासियों तक पहुंचाने में कभी ईमानदारी नहीं दिखाई। छत्तीसगढ़ सरकार तो इस एक्ट के अधिकारों को लेकर कभी गंभीर हुई ही नहीं और न ही इसे लागू करने के नियम बनाए। पेसा एक्ट की धारा 4 का हवाला देते हुए प्रदेश सरकार ने अपने हिसाब से पंचायत राज अधिनियम लागू किया। पांचवीं अनुसूची में लिखी किस इबारत से सरकार को ऐतराज है इसका भी खुलासा कभी नहीं किया।

जल, जंगल, जमीन की लूट
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल कहते हैं, ‘पत्थलगड़ी की घटना जनविद्रोह का संकेत है। संविधान में अनुसूची 5 का जिक्र है। यदि पेसा कानून और जंगल अधिकार कानून दोनों को ठीक ढंग से लागू कर दिया जाता तो ऐसी स्थिति नहीं बनती। रायगढ़, सरगुजा, कोरबा आदि जगहों पर सरकार अपने कॉरपोरेट दोस्तों और ठेकेदार मित्रों के साथ आदिवासियों को लूटने का काम कर रही है। आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन के अधिकार लूटे जा रहे हैं। मुख्यमंत्री रमन सिंह बताएं कि यह धार्मिक कृत्य कैसे हो सकता है। अनुसूची 5 जहां लागू है वहां कोई भी बाहरी व्यक्ति कलेक्टर, एसपी नहीं आ सकता, फिर यह धार्मिक कृत्य कैसे हो गया। पेसा कानून में ग्राम सभाओं को जो अधिकार दिया गया है उस अधिकार से आदिवासियों को वंचित किया गया है। सरगुजा में पूरे ढाई साल से धारा 144 लगी हुई है। पत्थलगड़ी अभियान रमन सिंह के विकास के दावों पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है। उन्हें इसका जवाब देना होगा कि आखिर क्यों इन गांवों में पत्थलगड़ी की नौबत आई।’ नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंह देव कहते हैं, ‘सामुदायिक वनाधिकार के आवेदनों पर सरकार ने विचार किया होता तो पत्थलगड़ी की स्थिति नहीं बनती। अब तक सिर्फ पांच लाख लोगों को वन अधिकार पत्र मिले हैं जबकि दस लाख आवेदन आए थे। कांग्रेस की सरकर बनी तो पेसा एक्ट को पूरी तरह से प्रभावी बनाया जाएगा।’ आदिवासी बहुल जशपुर जिला काफी पिछड़ा हुआ है। जिले के पत्थलगांव, बगीचा और कुनकुरी में टमाटर की अधिक पैदावार होती है। आदिवासी किसानों को अच्छे भाव नहीं मिलने से हर साल सड़कों पर टमाटर फेंकने को वे मजबूर होते हैं। यहां के लोग सरकार से टमाटर का समर्थन मूल्य घोषित करने के साथ प्रोसेसिंग यूनिट लगाने की मांग वर्षों से करते आ रहे हैं लेकिन सरकार ने अब तक उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया। बच्छरांव, बुटंगा, सिंहारडांड, कलिया और आस-पास के लोगों का कहना है कि हम अपने इलाके में शांति चाहते हैं। विकास के नाम पर गांव, खेत, जंगल उजड़ने नहीं देना चाहते। सड़क, पुल, पानी और नाली की मांग पर आज तक कभी सुनवाई नहीं हुई। गुल्लू जलप्रपात पर छत्तीसगढ़ हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर प्राइवेट लिमिटेड बांध बनाकर 24 मेगावाट बिजली पैदा कर रही है। 150 करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट का ग्रामीणों ने विरोध किया था। इस प्रोजेक्ट के लिए जबरिया जमीन अधिगृहीत की गई लेकिन उन परिवारों के लोगों को न तो मुआवजा और न ही रोजगार मिला जिनकी जमीन अधिगृहीत की गई। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *