किसने दिया वो पैसा

आप इस केस से कब जुड़े?
मैं शुरू से ही इस केस में पीड़िता के परिवार के साथ हूं। जनवरी में ये लड़की गुम हुई थी। पुलिस मसले को गंभीरता से नहीं ले रही थी। तब हमने उसके परिवार के साथ मिलकर इस मसले को उठाया था। पुलिस थाने से जाता केस क्राइम ब्रांच तक हमने पहुंचाने की कोशिश की ताकि परिवार को इंसाफ मिल सके। हमने कैंडल मार्च किया जिसमें पूरे जम्मू के लोग शामिल हुए, ताकि मीडिया इस मसले की तरफ देखे और सोचे।

अब खबर है कि आप उन लोगों से अलग हो गए हैं जो पीड़िता के इंसाफ की लड़ाई लड़ रहे हैं?
ऐसा नहीं है कि मैं पीड़िता को इंसाफ मिले इसके पक्ष में नहीं हूं, पर मैं इस पक्ष में भी नहीं हूं कि एक एजेंडा तैयार करके बात करूं। केस में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो वकील हैं भी नहीं, पर खुद को पीड़िता का वकील बता रहे हैं। जिसमें तालिब हुसैन है, वो वकील नहीं है उसने अपनी वकालत पूरी नहीं कर रखी है। उसे जम्मू विश्वविद्यालय से निकाला गया था। उसके ऊपर कुछ इल्जाम लगे हुए हैं। जैसे जम्मू के सरोल में याकूब नाम का एक कत्ल हुआ था। इस केस में उसके ऊपर भी आरोप लगे थे। नगरोटा में एक केस में उस पर एक पर्चा लगा था।

आपने अपने ही साथी तालिब हुसैन पर मामले में पैसे लेने का आरोप लगाया है। कितनी सच्चाई है इसमें?
जब ये बकरवाल लोग यहां से जा चुके थे तो मीडिया के कुछ लोगों ने मुझे बकरवाल लोगों से मिलवाने की बात कही। मैं मीडिया के उन लोगों को जो पीड़िता के परिवार से मिलना चाहते थे उस परिवार से मिलवाने ले गया। रात दो बजे हम पट्टनीटॉप पहुंचे उसके बाद हम सनासर की पहाड़ियों में पहुंचे। जहां वो लोग थे। मीडिया में लोगों ने उनसे पूछा कि आप क्यों आपना गांव छोड़कर आ गए, क्या किसी ने आपको कोई धमकी दी। तो उन्होंने कहा कि नहीं हमारे पशु इस समय ठंडे पहाड़ों की तरफ चल देते हैं।
मीडिया में से किसी ने पूछा कि आपको किसी तरह की पैसे की मदद मिली है तो पीड़िता के पिता ने कहा कि नहीं हमें कोई मदद नहीं मिली है। उस सफर से जब मैं लौट रहा था तो मुझे एक फोन आया वकारम भट्टी का। उसने कहा कि जम्मू आ जाओ जल्दी बच्ची के नाम पर दिल्ली में पैसा इकट्टठा हुआ है वो लेने जाना है। तो मैंने कहा कि वो पैसा किसने दिया है… कौन सा पैसा है, किसी सेठ ने दिया है या किसी एजेंसी ने दिया है- उसने कहा- नहीं, तुम्हें जाना होगा। मैंने कहा अगर पैसा दिया है तो वो पैसा बच्ची के परिवार को दे दो उसके कुछ काम आ जाएगा। मैंने कहा कि मैं दिल्ली नहीं जा सकता।
दरअसल, जब हमने आॅल ट्राइबल कमेटी (एटीसीसी) बनाई थी तो हम इकट्ठे थे। हम ‘जम्मू की बेटी’ केस में भी साथ-साथ थे। बाद में तालिब हुसैन मुझसे दूर दूर होने लगा। धीरे धीरे हमारे संगठन से सही लोग अलग होने लगे। और कई लोग श्रीनगर से आकर इससे जुड़े जैसे रफीक, राकत नजाज, अवैज। ये लड़के दिल्ली, अलीगढ़ विश्वविद्याल जाने लगे। मेरे फोन कॉल किसी ने भी उठाने बंद कर दिए। सोचिए इस कमेटी का मैं वाइस चेयरमैन था लेकिन मेरी कोई नहीं सुन रहा था। फरवरी के महीने में अवेज तकड़ एक लड़का है जो पैसे का बैग लेकर आता है, उसकी फोटो मुझे मिली भी है। वो इतना पैसा कहां से ला रहे हैं, उन्हें पैसा कौन दे रहा है इसकी जांच होनी चाहिए। हमने सुना है कि केस में उसने दो करोड़ खाए हैं। मेरा ओपिनियन पोस्ट के माध्यम से कहना है कि जो लोग पीड़िता के नाम पर राजनीति कर रहे हैं या पैसा इकट्ठा कर रहे हैं, उनकी जांच होनी चाहिए।

जब आप इस केस से जुड़े थे तो क्या आपको लगा था कि मसला हिंदू-मुसलमान का है?
ये मसला एक छोटी बच्ची के साथ हुई दरिंदगी का है। जम्मू में सब तरह के लोग हैं। हमने कभी ऐसा नहीं देखा कि यहां हिंदू या मुसलमान की बात हुई हो। जब इस केस की शुरुआत हुई तो मुझे याद है कि जिस दिन लड़की का चौथा था तो सभी लोग इसमें शामिल हुए थे। हिंदू औरतें, मुसलिम औरतें वहां बच्ची के साथ हुई दरिंदगी को देखकर रो रही थीं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *