ओपिनियन पोस्ट ब्यूरो

पंजाब के फगवाड़ा के किसान सुखजीत सिंह गेहूं की फसल को देख कर हैरान हैं। कायदे से अभी फसल में दाने नहीं पड़ने चाहिए थे। उन्होंने जब गेहूं के पौधों को हाथ में लेकर दाने चेक किए तो पाया कि दूध सूख रहा है। यानी गेहूं पकने वाला है। यह क्या? अभी तो कम से कम एक पखवाड़ा यह स्थिति नहीं आनी चाहिए थी। सुखजीत परेशान थे कि उसे बीज ही गलत तो नहीं मिल गया या फसल में कोई बीमारी आ गई क्या। इसी शंका के निवारण के लिए वह सीधा अपने कृषि विज्ञान केंद्र गए तो पता चला कि वह अकेले किसान नहीं हैं जो इस समस्या से दो चार हो रहे हैं। लगभग हर किसान इसी तरह की समस्या से दो चार हैं।

इसकी वजह क्या है? कृषि विज्ञान केंद्र के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. हरपाल सिंह बढ़ैच ने बताया कि इस बार गर्मी थोड़ी जल्दी आ गई। फरवरी में ही तापमान 28 डिग्री तक पहुंच गया। इसका सीधा असर गेहूं की फसल पर पड़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इसी तरह से गर्मी बढ़ती रही तो उत्पादन में आठ फीसदी तक की कमी आ सकती है। राष्ट्रीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान करनाल के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आरके गुप्ता का कहना है कि जिस प्रकार से तापमान में वृद्धि हो रही है उससे गेहूं की फसल समय से पहले पक सकती है।

तापमान बढ़ने का असर
गेहूं की फसल के लिए ठंडा मौसम होना बेहद जरूरी है। डॉ. आरके गुप्ता ने बताया कि धुंध और कोहरा गेहूं में टिलरिंग (बीज के एक दाने से कई पौधे बन जाते हैं) के लिए जरूरी है। यदि सर्दी न हो और मौसम खिला रहे तो पौधा तेजी से बढ़ना शुरू कर देता है। जो समय पौधा टिलरिंग के लिए लगाता, वह उसकी बढ़ोतरी में लग जाता है। इससे एक दाने से कम पौधे बनते हैं जिसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ता है। इस पर भी यदि तापमान लगातार गर्म होता रहे तो गेहूं में दाने जल्दी आने शुरू हो जाते हैं जो फसल के लिए बहुत ही नुकसादायक है। इसका सीधा असर उत्पादन और गुणवत्ता पर पड़ता है। यह स्थिति किसान और आम आदमी दोनों के लिए ठीक नहीं मानी जा सकती। मौसम विभाग के मुताबिक 15 मार्च तक यदि अधिकतम तापमान 35 डिग्री से ऊपर चला जाता है तो गेहूं की फसल पर असर पड़ेगा। इससे किसानों को नुकसान झेलना पड़ सकता है।

गुणवत्ता व दानों का साइज हो जाता है छोटा
ऐसी स्थिति में दाना छोटा रहने की संभावनाएं होती हैं। उत्पादन पर कुल मिलाकर सात से आठ फीसदी का नुकसान किसानों को झेलना पड़ सकता है। मौसम विभाग के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो चिंता वाजिब भी है। पिछले एक पखवाड़े में अधिकतम तापमान में लगातार बढ़ोतरी हुई है। सबसे ज्यादा असर हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी यूपी, राजस्थान, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में पड़ सकता है। मध्य प्रदेश में 33.9 डिग्री के पार तापमान चला गया है जो गेहूं की फसल के लिए ठीक नहीं है। यदि यह निरंतर बना रहा तो फसल को नुकसान स्वाभाविक है। विशेषज्ञों के अनुसार गर्मी की वजह से गेहूं के दानों की नमी समय से पहले ही खत्म हो जाती है। इससे दानों का आकार छोटा रह जाता है। इसका असर स्वाद और गुणवत्ता दोनों पर पड़ता है। दानों का रंग भी खराब हो जाता है।

पैदावार में कमी से चिंता
पिछले साल 9.84 करोड़ मीट्रिक टन गेहूं की पैदावार हुई थी। इस बार पिछले साल की तुलना में तकरीबन 0.95 फीसदी रकबे में गेहूं की कम बिजाई हुई है। यदि तापमान ऐसा ही बना रहा तो सात से आठ फीसदी तक उत्पादन प्रभावित हो जाएगा। जाहिर है इसका असर उपभोक्ताओं पर भी पड़ सकता है क्योंकि तब गेहूं के दाम बढ़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। विशेषज्ञों का कहना है कि इस बार यूं भी बरसात कम हुई है। इस वजह से भी पहले ही गेहूं की फसल बहुत अच्छी नहीं रही। उम्मीद की जानी चाहिए कि मार्च थोड़ा ठंडा रहे ताकि गेहूं के दानोें का आकार सही हो सके। यदि ऐसा होता है तो पैदावार में कमी की कुछ हद तक भरपाई होना संभव है। नहीं तो इस बार हालात खराब हो सकते हैं।

खाद्य विशेषज्ञ डॉ. सुनील नेथन के अनुसार, ‘समस्या यह नहीं है, समस्या और भी बहुत है। एक तो यह कि अब जमीन की उर्वरा शक्ति कमजोर हो रही है। इसके चलते पैदावार पहले ही कम हो रहा है। आने वाले सालों में यह और कम होगा। इसके साथ ही खेती योग्य जमीन भी तेजी से कम हो रही है। यह गंभीर खतरा है। इसके साथ ही यदि तापमान में इसी तरह से उतार-चढ़ाव रहा तो भोजन पर खतरा मंडरा सकता है। यह ऐसी समस्या है जिस ओर अभी से ध्यान देना जरूरी है। वैज्ञानिक तो इस दिशा में लगातार प्रयास कर ही रहे हैं लेकिन हम सभी को सोचना होगा कि रोजमर्रा के जीवन में हम तापमान में ग्रीन हाउस गैस कितनी कम छोड़ सकते हैं क्योंकि यह अकेले किसान की समस्या नहीं है। किसान तो फसल पैदा करता है जिससे हमारी भूख मिटती है। ऐसे में यदि फसलों पर मौसम का यूं ही असर पड़ता रहा तो किसान तो संकट में आएंगे ही, हमारी थाली की रोटी भी सुरक्षित नहीं रहेगी।’