उमेश चतुर्वेदी।
भारतीय संविधान निर्माताओं ने संघीय शासन व्यवस्था को स्वीकार करते वक्त यह भी सोचा था कि राज्य सूची के विषयों पर अपनी स्थानीय संस्कृति और जरूरतों के मुताबिक शासन व्यवस्था लागू करेंगे तो उनका फायदा उस राज्य विशेष की जनता को तो होगा ही, राज्यों के बीच बेहतर शासन व्यवस्था को लेकर प्रतियोगिता भी शुरू होगी। लेकिन आजादी के बाद जैसे-जैसे राजनीतिक विचारों में भी निजी विचारों जैसे विरोध का प्रचलन बढ़ा, संविधान निर्माताओं की यह सोच कहीं गायब ही हो गई। आजादी के सत्तर साल बाद ही सही, अब लग रहा है कि राज्यों के बीच एक-दूसरे की अच्छी बातों को स्वीकार करने और उससे सीख लेने की सोच हकीकत की धरती पर उतरने जा रही है। उत्तर प्रदेश की सत्ता में उद्दाम जनाकांक्षाओं के रथ पर काबिज होकर आई भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने छत्तीसगढ़ के पीडीएफ यानी सार्वजनिक वितरण व्यवस्था को अपनाने की तैयारी शुरू कर दी है। अपनी इसी वितरण व्यवस्था के लिए छत्तीसगढ़ में चाऊर वाले (चावल वाले) बाबा के तौर पर राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह विख्यात हैं। उन्होंने सार्वजनिक वितरण प्रणाली में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करके गांव-गांव तक चावल, दाल, किरोसिन तेल और दियासलाई की जो पहुंच सुनिश्चित की है, उसका लोहा अब विपक्षी तक मानने लगे हैं।

मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद पहली बार 25 मार्च को गोरखपुर पहुंचे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साफ कर दिया कि उत्तर प्रदेश की सार्वजनिक वितरण व्यवस्था छत्तीसगढ़ की तर्ज पर होगी और इसके ठीक दो दिनों बाद ही उन्होंने दस दिनों के लिए राज्य के सार्वजनिक वितरण व्यवस्था संभालने वाले दस अफसरों को छत्तीसगढ़ भेज दिया। इसमें आपूर्ति विभाग से चार अफसर भेजे गए। इन अफसरों में जौनपुर के जिला पूर्ति अधिकारी डॉक्टर राकेश तिवारी, बुलंदशहर के जिला पूर्ति अधिकारी कृष्ण बल्लभ सिंह, वाराणसी मंडल के पूर्ति विभाग के डिप्टी कमिश्नर पार्थ अच्युत और मुरादाबाद मंडल के डिप्टी कमिश्नर विनय सिंह शामिल थे। इसके अलावा आपूर्ति विभाग के मार्केटिंग विभाग के चार अफसर, लेखा विभाग के एक अफसर और डाटा सिस्टम के एक अधिकारी को भी इस टीम में शामिल किया गया। डॉक्टर राकेश तिवारी बड़े उत्साही अफसर माने जाते हैं। पिछले दिनों जब नमक की कमी की अफवाह के साथ उसकी कीमतें बढ़ाकर बेचने की कोशिश हुई तो तिवारी जौनपुर की सड़कों पर रातभर गश्त करते रहे और साथ में घोषणा करते रहे कि अगर कोई महंगी कीमत पर नमक बेचता पाया गया तो उसकी दुकान वे सील कर देंगे। जिसकी जौनपुर के लोगों ने काफी प्रशंसा की थी।

छत्तीसगढ़ का सार्वजनिक वितरण सिस्टम बेहद पारदर्शी है। उत्तर प्रदेश में राशन वितरण व्यवस्था पर भ्रष्टाचार का पूरा कब्जा है। कई गांव आज भी ऐसे हैं, जहां ब्लॉक से राशन और किरोसिन गांवों तक पहुंच ही नहीं पाता। भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव के दौरान सबके विकास का जो वादा किया है, उसे पूरा करने से पहले राज्य की भ्रष्ट हो चुकी व्यवस्था पर लगाम लगाना जरूरी है। योगी इसे जानते हैं। शायद यही वजह है कि उन्होंने सबसे पहले राशन वितरण व्यवस्था और गेहूं खरीदी में छत्तीसगढ़ मॉडल को लागू करने का फैसला लिया। इस सिलसिले में चुने हुए अधिकारियों की दस दिनों तक ट्रेनिंग हुई। इस ट्रेनिंग के आखिर में राज्य के खाद्य आयुक्त अजय चौहान, राज्य के आपूर्ति मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी और राज्य मंत्री अतुल गर्ग के साथ ही नेशनल इंफार्मेशन सेंटर के तकनीकी निदेशक अजय गोपाल भी शामिल हुए। राज्य के खाद्य आयुक्त अजय चौहान कहते हैं, ‘इस प्रशिक्षण से उत्तर प्रदेश में पारदर्शी राशन वितरण व्यवस्था और गेहूं खरीदी व्यवस्था लागू करने में मदद मिलेगी।’

भारतीय जनता पार्टी की अंदरूनी राजनीति की खबरों में किनारे पड़े रमन सिंह उत्तर प्रदेश सरकार के इस फैसले से अचानक चर्चा में हैं। इससे वे उत्साह में भी हैं। 31 मार्च को उत्तर प्रदेश के मंत्रियों से रायपुर में मुलाकात के बाद उन्होंने अपनी ओर से भी छत्तीसगढ़ के अफसरों को उत्तर प्रदेश भेजने का ऐलान किया। यहां यह बताना जरूरी है कि राज्य की धान खरीदी व्यवस्था बेहद पारदर्शी है। यह व्यवस्था पूरी तरह आॅनलाइन है। हर मंडी के बारे में जाना जा सकता है कि वहां कितने धान की किस कीमत पर खरीदी हुई और किसने कितना धान बेचा है। इससे इस व्यवस्था में भ्रष्टाचार पर रोक लगने में मदद मिली है। प्रशिक्षण में शामिल होने गए एक अफसर नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, ‘निश्चित तौर पर छत्तीसगढ़ की व्यवस्था अनुकरणीय है। अगर इसे उत्तर प्रदेश में लागू कर दिया गया तो निश्चित तौर पर बदहाली की मार से जूझ रहे उत्तर प्रदेश के किसानों को बहुत फायदा होगा।’ उन्होंने कहा, ‘जिस राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून को लेकर कांग्रेस अपनी पीठ थपथपाते नहीं थक रही, दरअसल वह छत्तीसगढ़ के खाद्य पोषण कानून 2012 की हूबहू नकल है।’

ऐसा नहीं कि छत्तीसगढ़ की इस व्यवस्था का मुरीद सिर्फ भाजपा शासित राज्य ही हुआ है। बल्कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इस व्यवस्था की सार्वजनिक तौर पर तारीफ कर चुके हैं। 27 मार्च को रायपुर पहुंचे नीतीश कुमार ने छत्तीसगढ़ की सार्वजनिक वितरण व्यवस्था को न सिर्फ सबसे पारदर्शी बताया, बल्कि वहां के धान खरीदी व्यवस्था को भी आदर्श बताया। उन्होंने भी संकेत दिए कि देर-सवेर बिहार में भी छत्तीसगढ़ की तर्ज पर सार्वजनिक वितरण व्यवस्था को सुधारने की कोशिश होगी।

ऐसा नहीं कि अच्छे कामकाज के लिए योगी सरकार ही अपने साथियों से प्रेरणा ले रही है। बल्कि योगी सरकार का एक फैसला महाराष्ट्र राज्य को भी पसंद आया है। चार अप्रैल को अपनी पहली कैबिनेट बैठक में योगी सरकार ने ने छोटे किसानों का 30,729 करोड़ रुपए का कर्ज माफ कर दिया। इसके तहत जिन किसानों ने एक लाख रुपए तक का कर्ज लिया है, उनका ऋण माफ किया जाना है। राज्य सरकार के मुताबिक करीब 7 लाख किसानों का कर्ज एनपीए में शामिल हो गया है, उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए सरकार ने 5630 करोड़ का कर्ज माफ कर दिया है। अपनी पहली बैठक में योगी सरकार ने कुल मिलाकर ने 36,359 करोड़ रुपये का कर्जा माफ किया। जिसका फायदा 86 लाख किसानों को मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। इस फैसले की शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने खुलकर तारीफ की तो महाराष्ट्र सरकार पर भी दबाव बढ़ गया। अब देवेंद्र फडणवीस सरकार ने एलान किया है कि वह भी अफसरों की टीम कर्ज माफी योजना का अध्ययन करने यूपी भेजेगी। अध्ययन के बाद महाराष्ट्र में कर्ज माफी की योजना लागू की जाएगी जिसकी मांग वहां की विपक्षी पार्टियों के साथ ही सरकार में शामिल शिवसेना भी लगातार कर रही है।

राज्यों के अच्छे कामों को अपनाने की फेहरिस्त अब लगातार बढ़ रही है। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता ने राज्य के लोगों को सस्ती दर पर खाना मुहैया कराने की जो अम्मा कैंटीन शुरू की थी, वह अब राज्यों को भी लुभाने लगी है। राजस्थान में इसी तर्ज पर अन्नपूर्णा योजना चल रही है। दिल्ली में शीला सरकार ने जन आहार शुरू किया था, जिसके तहत पहले पंद्रह रुपये में थाली मिलती थी। अब इसकी कीमत 18 रुपये हो गई है। अब दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार आम आदमी कैंटीन शुरू करने की तैयारी में है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने भी राज्य में अन्नपूर्णा रसोई की शुरुआत करने की घोषणा की है, जिसके तहत लोगों को तीन रुपये में नाश्ता और पांच रुपये में खाना दिया जाना है।