रमेश कुमार ‘रिपु’

चुनावी साल होने के चलते छत्तीसगढ़ की सियासी पार्टियों की सियासत का रंग बदल गया है। हर पार्टी जीत की रणनीति को अंजाम देने में लगी है। सत्ताधारी भाजपा और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह सभी विपक्षी पार्टियों के निशाने पर हैं। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने जातिगत समीकरण को साधने के लिए प्रदेश कांग्रेस में कई बदलाव किए हैं। वहीं छजकां सुप्रीमो अजीत जोगी ने मुख्यमंत्री के खिलाफ राजनांदगांव से चुनाव लड़ने की घोषणा कर सियासी हलचल पैदा कर दी है। जाहिर है उनकी इस चाल से राजनांदगांव की सीट सबसे हॉट सीट बन जाएगी। लेकिन कांग्रेस का मानना है कि सुर्खियों में बने रहने की जोगी की यह सियासी चाल मात्र है।
चौथी बार भाजपा को सरकार बनाने से रोकने के लिए राहुल गांधी ने प्रदेश कांग्रेस के दो कार्यकारी अध्यक्ष बनाए हैं ताकि जाति की राजनीति पर पकड़ ढीली न हो सके। साथ ही जोगी की सियासत को आगे बढ़ने से रोका जा सके और भाजपा के जनाधार में सेंध लगाई जा सके। अनुसूचित जनजाति के पाली तानाखार के विधायक रामदयाल उईके और अनुसूचित जाति के पूर्व विधायक डॉ. शिवकुमार डेहरिया को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी की जगह कोंटा के विधायक कवासी लखमा को प्रतिपक्ष का उप नेता बनाया गया है। इस बदलाव से एक बात साफ है कि रेणु जोगी को कांग्रेस से टिकट मिलने की संभावना कम हो गई है। वैसे भी जोगी कह चुके हैं कि आज नहीं तो कल रेणु को मेरी पार्टी में आना ही पड़ेगा।

राहुल की दूर की कौड़ी
गौरतलब है कि कांग्रेस के ये तीनों शीर्ष पदाधिकारी कभी अजीत जोगी के काफी नजदीक हुआ करते थे। शिव डेहरिया कांग्रेस के अनुसूचित जनजाति विभाग के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। संयुक्त मध्य प्रदेश के जमाने में अजीत जोगी ने शिव डेहरिया को राज्यसभा के लिए कांग्रेस का टिकट दिलवा कर चौंका दिया था। बाद में बड़े नेताओं के विरोध की वजह से शिव डेहरिया का टिकट कट गया था लेकिन जोगी निराश नहीं हुए। उन्होंने डेहरिया को प्रदेश कांग्रेस का संगठन महामंत्री बनवा कर अपने विरोधियों की बोलती बंद करा दी थी। जोगी ने डेहरिया का राजनीतिक कद बढ़ाने के लिए पलारी से 2003 में विधायक का टिकट भी दिया था। वे दो बार इस सीट से विधायक रहे। वहीं रामदयाल उईके का जोगी पर राजनीतिक अहसान है। वे भाजपा के विधायक थे लेकिन 2001 में उन्होंने जोगी के लिए मरवाही विधानसभा सीट छोड़ दी थी। जोगी ही रामदयाल उईके को कांग्रेस में लेकर आए थे। 2003 में उईके को तानाखार से टिकट जोगी ने दिया। पटवारी से नेता बने उईके जोगी के खास थे। चुनाव के वक्त वे जोगी से न मिल जाएं इसके लिए राहुल गांधी ने पार्टी में उनका कद बढ़ा दिया।

क्यों हुई कांग्रेस की सर्जरी
राहुल गांधी ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को नहीं बदला। भूपेश बघेल प्रदेश अध्यक्ष बने रहेंगे। भूपेश पिछड़ा वर्ग के हैं। जाहिर है कि राहुल गांधी ने आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ में जाति के गणित को चुनावी रणनीति में तब्दील करने के मकसद से कांग्रेस की सर्जरी की है। वहीं हाशिये पर रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री चरणदास महंत को चुनाव अभियान समिति की कमान सौंप कर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की सहज और सरल छवि का विकल्प जनता के सामने पेश किया है। कांग्रेस पदाधिकारियों में भी बदलाव किए गए हैं लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता सत्यनारायण शर्मा को केवल घोषणा-पत्र के सदस्य तक ही सीमित रखा गया है। कांग्रेस की सर्जरी से यही संकेत गया कि राहुल गांधी सवर्ण नेताओं को ज्यादा तरजीह देना नहीं चाहते क्योंकि छत्तीसगढ़ में सवर्ण वोटर किसी भी पार्टी का वोट बैंक नहीं हैं।

जोगी क्यों हैं रमन के खिलाफ
प्रदेश में जोगी की पार्टी को कांग्रेस अभी तक भाजपा की बी टीम कहती आई है। जोगी ने कांग्रेस के इस आरोप को दरकिनार करने के मकसद से ही रमन सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा की है। हालांकि वे एक अन्य सीट से भी चुनाव लड़ेंगे। जोगी कहते हैं, ‘पिछले 14 वर्षों से मुख्यमंत्री ने मेरी पारिवारिक, राजनीतिक और सामाजिक हत्या करने का प्रयास किया है। मेरे खिलाफ उत्पन्न की गई राजनीतिक परिस्थितियों का मैंने, मेरे परिवार ने और लाखों समर्थकों ने डटकर सामना किया है। यही वजह है कि हर चुनौती के साथ छत्तीसगढ़ में मेरा जनाधार कई गुना बढ़ा है। मैं ही नहीं पूरा देश चाहता है कि मुकाबला रमन-जोगी के बीच हो।’ वहीं रमन सिंह कहते हैं, ‘यह लोकतंत्र है। सभी को देश में कहीं से भी चुनाव लड़ने की आजादी है। यदि वे मेरे खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं तो अच्छा है। यहां सबका स्वागत है।’ नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंह देव कहते हैं कि जोगी रमन सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे तो हार जाएंगे। उनके इस बयान पर मरवाही के विधायक अमित जोगी ने कहा कि चुनाव होने में अभी बहुत दिन है लेकिन अभी से नेता प्रतिपक्ष मुख्यमंत्री के चुनाव का प्रचार करने लगे हैं।

भाजपा कार्यकर्ता नाराज
रमन सरकार चौथी बार भाजपा की सरकार बनाने की दिशा में कार्यकर्ताओं की नब्ज टटोल रही है लेकिन उनकी उपेक्षा और अफसरशाही की शिकायतों ने चुनाव से पहले संगठन की चिंता बढ़ा दी है। जाहिर है कि भाजपा में अंदरखाने सब ठीक नहीं है। पिछले दिनों बस्तर में कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री सौदान सिंह और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक से शिकायत में मंत्रियों पर अपनी उपेक्षा का आरोप लगाया। लेकिन धरमलाल कौशिक इस बात से हैरान नहीं हैं। उनका कहना है कि भाजपा ही नहीं दूसरी पार्टियों के जनप्रतिनिधियों से भी लोग नाराज हैं। लेकिन सरकार के खिलाफ नाराजगी नहीं है। वहीं भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि पार्टी कार्यकर्ताओं को आक्रोश जताने का मौका दे रही है। यदि चुनाव के समय तक कार्यकर्ताओं के मन में आक्रोश दबा रहेगा तो परिणाम अच्छे नहीं रहेंगे। सरकार अब विधानसभावार जन समस्या निवारण शिविर लगाकर कार्यकर्ताओं की नाराजगी और उनकी समस्या दूर कर रही है। शिविर में प्रशासनिक अधिकारी भी शामिल होते हैं। शिविर के लिए ऐसा स्थान चुनने पर जोर दिया जा रहा है ताकि अधिकतम मंडल इसमें आ सकें। नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंह देव ने सरकारी आयोजन में भाजपा पदाधिकारियों के शामिल होेने पर एतराज जताया है। मुख्य सचिव को उन्होंने पत्र लिखकर कहा है कि शासकीय कार्यक्रमों में राजनीतिक दल के पदाधिकारियों की सीधी भूमिका नहीं होनी चाहिए। शासन-प्रशासन की कार्यप्रणाली निष्पक्ष दिखनी और होनी चाहिए। सरकार की इन कोशिशों के बावजूद भाजपा के खिलाफ नाराजगी कम नहीं हो रही है। प्रदेश भाजपा में गुटबाजी भी बढ़ी है। मंत्री राजेश मूणत और बृजमोहन अग्रवाल के बीच सियासी रिश्ता कैसा है, सब को पता है। धरमलाल कौशिक और नगरीय प्रशासन मंत्री अमर अग्रवाल के गृह जिले में पार्टी नेताओं की लड़ाई होर्डिंग में दिखती है। मंत्री अजय चंद्राकर न सिर्फ मीडिया वालों को धमकाते हैं बल्कि कार्यकर्ताओं से भी उनका व्यवहार अच्छा नहीं होने की शिकायत कई बार मुख्यमंत्री से की जा चुकी है। जानकारों का कहना है कि चौथी पारी के लिए अभी से भाजपा को खुद में बदलाव लाना जरूरी है। इसलिए कि पार्टी 2018 में 65 सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही है।

सर्व आदिवासी समाज खफा
दंतेवाड़ा में सर्व आदिवासी समाज की तीन जिलों की बैठक में स्कूल शिक्षा मंत्री केदार कश्यप के खिलाफ जमकर नाराजगी दिखी। बैठक में पदाधिकारियों ने कहा कि आदिवासी होते हुए भी केदार कश्यप जनजाति विभाग को ही खत्म करने पर उतारू हो गए हैं। जरूरत पड़ी तो अलग बस्तर भी मांगेंगे और सर्व आदिवासी समाज से अपना प्रत्याशी भी चुनाव मैदान में उतारेंगे। गौरतलब है कि सर्व आदिवासी समाज सरकार की नीतियों और आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ पूरे प्रदेश में बैठक कर रहा है।
छत्तीसगढ़ में त्रिकोणीय मुकाबला रहेगा। भाजपा चाहती है कि जोगी सियासी मैदान में डटे रहें ताकि कांग्रेस का वे अधिक से अधिक नुकसान कर सकें। रमन सिंह कहते हैं, ‘जोगी प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं इसलिए उनकी लोकप्रियता है। कांग्रेस कुपोषित हो गई है। वह मुकाबले से बाहर है।’ वहीं प्रदेश कांग्रेस के मीडिया प्रभारी शैलेश त्रिवेदी कहते हंै, ‘जोगी की पार्टी भाजपा की बी पार्टी है। अपनी राजनीतिक छवि को बढ़ाने के लिए जोगी भाजपा का ही नुकसान करेंगे। कांग्रेस से वे निकाल दिए गए हैं। पहले वे अपनी पार्टी के लिए 90 उम्मीदवार तो ढूंढ लें। फिर कांगे्रस के नुकसान की बात करें। मुख्यमंत्री जनता का ध्यान बांटने के लिए जोगी की पार्टी को तीसरी सियासी ताकत बताते हैं। खतरा सिर्फ भाजपा को उनसे है, कांग्रेस को कतई नहीं।’

रमन की लुभावनी रणनीति
आरोप-प्रत्यारोप के बीच मुख्यमंत्री ने एंटी इनकंबेंसी फैक्टर को कम करने के लिए राज्य का खजाना खोल दिया है। बिजली, त्योहार, धान, तेंदूपत्ता बोनस के बाद नए साल में 55 लाख लोगों को मोबाइल सेट बांट रहे हैं। जनता को भाजपा से जोड़ने के लिए मुख्यमंत्री करोड़ों की योजनाएं हर जिले को सौगात में दे रहे हैं। किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए बजट में भी उन्हें कई सौगात दिए गए हैं। वहीं विपक्ष को भरोसा है कि गुजरात चुनाव के बाद देश में भाजपा के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का लाभ कांग्रेस को मिलेगा, इसलिए कि राज्य में बेलगाम नौकरशाही हावी है। पूर्व केंद्रीय मंत्री चरणदास महंत भी मानते हैं कि 2018 के चुनाव में कांग्रेस के वोट प्रतिशत में इजाफा होगा।

पद यात्रा की सियासत
कांग्रेस जन अधिकार यात्रा के तहत प्रदेश नाप रही है। वहीं भाजपा हर जिले में प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के जरिये कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार करने में लगी है। छजकां सुप्रीमो जोगी हर जिले में सियासी कार्यक्रम कर फंड जुटाने के लिए डिनर कर रहे हैं। अपने साथ प्रति डिनर उन्होंने 11 हजार रुपये की फीस तय की है। कांग्रेस प्रवक्ता असलम कहते हैं, ‘अजीत जोगी का प्रभाव अनुसूचित जाति बहुल सीटों पर है। अनुसूचित जाति की आरक्षित दस में नौ सीटों पर भाजपा का कब्जा है। वे इस कोशिश में हैं कि यह सीट उनकी पार्टी को मिल जाए। जाहिर है उनसे भाजपा को ही नुकसान होगा। जोगी शहरी इलाकों की बजाय आदिवासी क्षेत्रों में ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। उन्हें लगता है कि वे ग्रामीण क्षेत्रों में जीत हासिल कर लेंगे। जबकि संघ प्रमुख मोहन भागवत पदाधिकारियों को आदिवासी क्षेत्रों में पहुंच बढ़ाने की बात कह चुके हैं।’
प्रदेश कांग्रेस प्रभारी पीएल पुनिया कहते हैं, ‘भाजपा 65 सीट का लक्ष्य लेकर चल रही है और हम 90 सीटों पर जीत की रणनीति बना रहे हैं। रमन सरकार से किसान, युवा और समाज का हर तबका नाराज है। प्रदेश में 33 लाख किसान हैं मगर सरकार ने केवल 13 लाख किसानों को बोनस दिया है। विकास कार्य ठप हैं। उद्योग बदहाल हैं और रोजगार की संभावना खत्म हो गई है। कानून-व्यवस्था भी खराब है।’ भाजपा प्रवक्ता सच्चिदानंद उपासने कहते हैं, ‘कांग्रेस बंटी हुई है। कांग्रेस के पास डॉ. रमन सिंह जैसा चेहरा भी नहीं है जिसका लाभ पार्टी को इस बार भी मिलेगा।’ उनका इशारा कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता और पूर्व सांसद देवव्रत सिंह का जोगी की पार्टी में शामिल होने की ओर था। देवव्रत का परिवार तीन पीढ़ी से कांग्रेस में था। बहरहाल, रमन जनता के विश्वास को गंवाना नहीं चाहते और विपक्ष पूरी ताकत से यह बताने में जुटा है कि उनकी सियासत का रंग बदल गया है। उनकी सरकार में अफसरशाही का साया घना है। 