‘कूड़ा’ नहीं ‘धन’ कहिए जनाब !

अजय विद्युत

स्वच्छता अभियान को समस्त देशवासियों ने जिस तरह आत्मसात करते हुए अपनी दैनिक दिनचर्या के साथ जोड़ा है, उससे यह जन अभियान का रूप ले चुका है। अब हमें इस दिशा में अगला कदम बढ़ाने की जरूरत है। हमारा जोर अब ‘वेस्ट से वेल्थ’ के मंत्र को लेकर आगे बढ़ने पर होना चाहिए। इस रास्ते पर चल कर हम न केवल आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं बल्कि पर्यावरण की चुनौतियों से भी कारगर ढंग से निपटा जा सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शुभकामना संदेश से उद्धृत ये पंक्तियां ही दरअसल ‘कूड़ा धन’ पुस्तक का ‘फोकस प्वाइंट’ हैं। वरिष्ठ पत्रकार और इंडिया न्यूज चैनल के एडीटर इन चीफ दीपक चौरसिया की यह पहली पुस्तक है जो कचरे को संसाधन में परिवर्तित करने के प्रयासों को बढ़ावा देती है और अपशिष्ट से धन कमाने के तरीकों के बारे में बताती है।
सबसे खूबसूरत बात यह कि हर अध्याय का शीर्षक यह बता देता है कि आप किस चीज के बारे में जानकारी हासिल करेंगे। रोचकता, तथ्यों के साथ जानकारी, सरल सुबोध भाषा व पाठक को बांधे रखने वाली शैली के साथ चुस्त संपादन और आकर्षक सज्जा पुस्तक को उपयोगी के साथ साथ संग्रहणीय भी बना देते हैं। कुल दस अध्याय हैं।
एक : कूड़ा- संकट या संपदा
दो : कूड़े का अर्थशास्त्र
तीन : प्लास्टिक कचरे का टापू या पेट्रोल का भंडार
चार : पराली बनी परेशानी
पांच : सीवर से बायोगैस
छह : बाल-बाल का कमाल
सात : घर का कूड़ा कबाड़ करोड़ों में
आठ : कूड़ा-कबाड़ से हाईवे
नौ : ई-कचरा
दस : मानो तो कूड़ा, नहीं तो धन।
पुस्तक को नितिन गडकरी द्वारा प्रेरित बताया गया है। लेखक दीपक चौरसिया खुद इसका हवाला देते हैं, ‘केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने मेरे साथ कई बार कूड़े के अर्थशास्त्र पर चर्चा की। जब वे भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद दिल्ली की राजनीति में सक्रिय हुए तो औपचारिक-अनौपचारिक मुलाकातों में उन्होंने ऐसी ऐसी तकनीक की चर्चा मुझसे की, जिन पर तब यकीन करना भी मुश्किल था, लेकिन तब तक वे अपनी बताई तकनीकों का सफलतापूर्वक प्रयोग भी शुरू कर चुके थे। गडकरी जी ने मुझसे कई बार कहा कि अगर कूड़े को फेंकने के बजाय उसका इस्तेमाल करने की सोच पैदा हो जाए और उस सोच को तकनीक के साथ मिला दिया जाए तो कूड़ा संकट के बजाय संपदा में बदल जाता है।’
हम अपने घर और बाहर के कचरे को कैसे उपयोगी बना सकते हैं और वह न केवल पर्यावरण को बेहतर बनाने में मदद करता है बल्कि समृद्धि के द्वार भी खोलता है- ऐसे अनेकानेक उद्धरणों और तकनीकों को पुस्तक बताती है। सिर्फ बताती ही नहीं, उन्हें व्यावहारिक जीवन में हम कैसे उतारें इसका प्रायोगिक खाका भी खींचती है। पूरी पुस्तक पढ़ने के बाद लोकसभा की अध्यक्ष सुमित्रा महाजन की पुस्तक की भूमिका में लिखी बात फिर याद आती है, ‘मुझे यह आश्चर्य लगा कि जो दीपक चौरसिया दिन भर टीवी पर इतने शो करता है, टीवी शो में बोलने में, सोचने में, नए-नए विषय और नए-नए आयाम ढूंढने में ऊर्जा लगाता है, उसने बहुत पैनी दृष्टि से इतने उपयोगी और महत्वपूर्ण विषय को चुना।’
कूड़ा धन ऐसी किताब है जो कूड़े के संकट को सीधे संबोधित करते हुए यह बताती है कि आप भी आसानी से कूड़ा प्रबंधन के कारोबार में शामिल हो सकते हैं, कुछ कमा सकते हैं।

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