तृतीय चंद्रघंटा : शांति और कल्याण की देवी (4 अक्टूबर)

पं. भानुप्रतापनारायण मिश्र

मां दुर्गा की तीसरी शक्ति मां चंद्रघंटा हैं। तीसरे दिन इनकी ही पूजा की जाती है। परम शान्तिदायक और कल्याणकारी स्वरूप है माता का। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचन्द्र है इसीलिए इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा गया है। शरीर का रंग सोने के समान है। दस हाथों में खड्ग, त्रिशूल, तलवार, धनुष और बाण आदि शस्त्र धारण किए हुए और सिंह पर बैठे इनके स्वरूप को देखकर भक्तों का भय दूर होता है। घंटे की भयानक ध्वनि से अत्याचारियों में भय व्याप्त हो जाता है।

तीसरे दिन की पूजा में तप कर रहे भक्तों का मन मणिपुर चक्र में प्रविष्ट होता है। मां चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं का दर्शन, दिव्य सुगन्धियों का अनुभव और विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियां सुनने को मिलती हैं। इस समय बेहद सावधान रहने की आवश्यकता है। इनकी युद्ध की इच्छुक मुद्रा और घंटे की ध्वनि भक्तों की प्रेत आदि से उत्पन्न बाधाओं को भी दूर करती है। वाहन सिंह से भी इनके भक्तों में बहादुरी भर जाती है।

इनकी आराधना करने वाला भक्त अपने अंदर जहां साहस को प्राप्त करता है वहीं उसे किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता है। शरीर में सुंदरता नजर आने लगती है। इनके ऐसे भक्तों को देख कर दूसरे लोग भी प्रसन्न हो उठते हैं। इनकी उपासना से सांसरिक कष्ट तो दूर होते ही हैं, आध्यात्मिक विकास भी प्रभावशाली ढंग से होता है।

इसलिए इनके विग्रह को ध्यान में रखकर साधना करना बेहद शुभकारी होता है। लाल फूल तथा सुंगधित फूल देवी को सबसे ज्यादा प्रिय हैं। यहां यह ध्यान रखना जरूरी है कि मदार और आक के फूल केवल दुर्गा जी को ही चढ़ाए जाते हैं। बाकी अन्य देवियों पर इन्हें नहीं चढ़ाना चाहिए।

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