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आरक्षण की मांग को लेकर रेलवे ट्रैक और सडक़ मार्ग घेरकर बैठे गुर्जरों ने पुलवामा आतंकी हमले को देखते हुए अपना आंदोलन वापस तो ले लिया है, लेकिन उनके तेवर बरकरार हैं. हालांकि, राज्य सरकार ने उनके लिए पांच प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था कर दी है, फिर भी अदालत में उसे चुनौती मिलने की आशंका ने गुर्जरों को चिंतित कर रखा है.

rajasthan-1पिछले 15 सालों से राजस्थान में बनती-बिगड़ती सरकारों की गवर्नेंस के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनता रहा गुर्जर आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर लेकर उठेंगे या मरकर उठेंगेकी तीखी त्यौरियों के साथ रेल पटरियों पर पसर गया. लेकिन, इस मुद्दे पर सरकार का वही चेहरा सामने था. अलबत्ता समस्या का हल तलाशने के लिए सूरत जुदा थी कि राज्य सरकार ने तमाम कानूनी पेचीदगियों को ध्यान में रखते हुए गुर्जरों को पांच प्रतिशत आरक्षण दिया है. इस फैसले में संकल्प का छौंक भी था कि अगर अदालत मेें इसे चुनौती दी गई, तो सरकार इसकी हिमायत में दम-खम के साथ खड़ी रहेगी. संकल्प पत्र में संभावित संक्रमण दूर करते हुए कहा गया कि नौबत आने पर हाईकोर्ट में कैविएट भी दाखिल की जा सकती है यानी अदालत पहले सरकार का पक्ष सुने और फिर कोई फैसला दे.

अदालत में चुनौती मिलने पर सरकार का फैसला बेबसी की रतौंधी में तो नहीं फंस जाएगा? सरकार अपने नीतिगत फैसले को महफूज रखने के लिए क्या करेगी? राज्य सरकार द्वारा केंद्र को भेजे गए पत्र में आग्रह किया गया है कि आर्थिक आधार पर दस प्रतिशत आरक्षण की तर्ज पर गुर्जर आरक्षण के लिए भी प्रावधान किया जाए. लेकिन, मुद्दा तो इसी मुकाम पर पेचीदा हो जाता है कि गुर्जरों को आरक्षण तभी संभव है, जब केंद्र सरकार संविधान में संशोधन करके इसे नौंवी अनुसूची में शामिल कराए. इसका जवाबी कुतर्क यह हो सकता है कि तब मराठा और पाटीदारों के आरक्षण का सवाल क्या दबकर रह जाएगा? फिलहाल तो इस मुद्दे पर सरकार और गुर्जर मुतमईन हो सकते हैं, क्योंकि सोलहवीं संसद का आखिरी सत्र खत्म हो चुका है. अब या तो संसद का कोई विशेष सत्र आहूत हो, अन्यथा नई सरकार के गठन के बाद ही इस पर कोई फैसला हो. लिहाजा यह मान लेना कि गुर्जर आंदोलन के दहकते कुंदे ठंडे पड़ गए हैं, बहुत जल्द किसी निष्कर्ष पर पहुंच जाना होगा. इस मुद्दे पर 15 सालों तक शीर्षासन हो चुका है, लेकिन इसकी तलहटी पूरी तरह खंगाली नहीं गई. गुर्जर आंदोलन के शुरू होने पर इसके तथाकथित समापन तक की कडिय़ां जिस तरह बेसिर-पैर के साथ परस्पर जुड़ी रही हैं, गहरे सवाल खड़े करती हैं. राज्य सरकार की मंशा इस मामले में साफ हो सकती है. लेकिन फिलहाल तो लगता है कि सरकार ने इस मामले में नीति रोमांच का आखेट ही खेला है.

रेल पटरियों को घेर कर बैठे गुर्जर आंदोलन के सूत्रधार कर्नल किरोड़ी सिंह बैसला इस अभियान में कई चेहरों में नजर आए. मीडिया के इस सवाल पर कि आरक्षण की मांग जायज हो सकती है, लेकिन रेलवे ट्रैक और सडक़ मार्ग रोकना कहां तक जायज है? बैसला का जवाब था, आंदोलन होगा तो परेशानी होगी ही. समाधान में देरी के लिए जिम्मेदार सरकार है. अपनी सफाई देने में बैसला ने कतई कोताही नहीं बरती. उन्होंने कहा, मैंने शांतिपूर्ण आंदोलन की अपील कर रखी है. लोगों के साथ बदसलूकी नहीं होने दे रहा हूं. धौलपुर को छोड़ दें, तो सभी जगह आंदोलन शांतिपूर्ण हुआ है. धौलपुर में कुछ लोगों ने माहौल बिगाडऩे के लिए ऐसा किया. कहीं पर भी सरकारी संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाया गया. लेकिन इस सवाल का जवाब वह टाल गए कि रेलवे को 40 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ और प्रतियोगी परीक्षाएं रद्द होने से युवाओं की उम्मीदों पर स्याही पुत गई. गुर्जर आठ फरवरी से ही सवाई माधोपुर के मलारना में दिल्ली-मुंबई रेलवे ट्रैक घेरकर बैठे थे.

rajasthan-3सरकार चार दिन पहले पांच प्रतिशत आरक्षण का बिल पास कर गुर्जरों को मनाने का प्रयास कर रही थी, लेकिन बैसला दुराग्रह का खूंटा पकड़ कर बैठे थे कि सरकार गारंटी पत्र दे कि आरक्षण को अदालत में चुनौती मिलने पर यह खत्म न किया जाए. लेकिन, संवादों के बीच ठहराव खत्म होने के बजाय लंबा होता जा रहा था. विश्लेषकों का कहना है कि गुर्जर सरकार के गारंटी पत्र थमाने पर रीझ गए और ट्रैक छोडक़र उठ गए हों, ऐसा कतई नहीं हुआ. इसकी वजह बना देश को हिला देने वाला आतंकी हमला. हालात का हवाला देते हुए बैसला से मीडिया की गुजारिश थी कि आरक्षण आपका अधिकार है, पर लोग आवागमन ठप किए जाने से परेशान हैं. आप कर्नल हैं, सबके अधिकारों की रक्षा कीजिए. जब देश आतंकी हमले के खिलाफ खड़ा है. चालीस जवानों की शहादत से पूरा देश गमगीन है. शहीद जवानों के परिवारीजन एक जगह से दूसरी जगह जाना चाह रहे हैं. ऐसी स्थिति में ट्रैक रोके रखना मानवीय रूप से कहां तक जायज है?

संभवत: इसी मार्मिक अपील ने कर्नल बैसला को झिंझोड़ा, तभी अगले दिन वह बयान देते नजर आए कि सरकार ने हमारी मांगें मान ली हैं, हमें गुर्जरों सहित अन्य जातियों को पांच प्रतिशत आरक्षण का मसौदा मिल गया है. उन्होंने यह भी माना कि बैक लॉग निकालने और राजनीतिक आरक्षण छोडक़र गुर्जरों को भी अनुसूचित जाति के समान आरक्षण देने पर सहमति बनी है. बताते चलें कि राज्य सरकार ने गुर्जरों सहित पांच जातियों को पांच प्रतिशत आरक्षण के लिए पिछड़ा वर्ग आरक्षण संशोधन विधेयक पारित किया है. अब राज्य सरकार को जो नई कवायद करनी होगी, उसके मुताबिक पांच प्रतिशत आरक्षण के लिए 2017 के कानून में भी संशोधन करना होगा. इसके तहत 2015 के कानून की तरह पांच प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव किया जाएगा. 2017 के कानून में बंजारा, लदिया, लबाना, गाडिय़ा, लोहार, गाड़ोलिया, रायका, रेबारी, देवासी,गड़रिया आदि जातियों के लिए आरक्षण की कोई सीमा तय नहीं थी. इस कारण अधिसूचना के जरिये अति पिछड़ा वर्ग को एक प्रतिशत आरक्षण दिया गया था. 17 दिसंबर 2017 से तत्कालीन भाजपा सरकार ने गुर्जरों सहित पांच जातियों को एक प्रतिशत आरक्षण देना शुरू किया था, जो अब तक जारी था.

पांच प्रतिशत आरक्षण को लेकर गुर्जर ताव में तो तब आए, जब केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से गरीब सवर्णों को दस प्रतिशत आरक्षण दे दिया. गुर्जरों को कहने का मौका मिल गया कि जब केंद्र सरकार 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक आरक्षण दे सकती है, तो राजस्थान में गुर्जरों को पांच प्रतिशत आरक्षण देने में क्या परेशानी है? गुर्जर नेता शैलेंद्र सिंह ने यह कहकर मामले को तूल दिया कि समय-समय विभिन्न आयोग भी इस बात की सिफारिश कर चुके हैं. अब जबकि राज्य सरकार ने भी कहा है कि गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण के लिए हम पूरी तरह केंद्र के प्रावधान लागू करेंगे, तो फिर गुर्जरों के लिए दोमुंही बात क्यों? गुर्जरों को आरक्षण की कहानी पिछले 15 सालों से उलझती-सुलझती रही है. पहली बार 2008 में भाजपा सरकार द्वारा लाए गए विधेयक में गुर्जरों को पांच और सवर्णों को 14 प्रतिशत आरक्षण मिला. फैसला जुलाई 2009 में लागू हुआ और सात दिनों के बाद अदालत ने रोक दिया. दूसरी बार कांग्रेस सरकार ने विशेष पिछड़ा वर्ग को पांच प्रतिशत आरक्षण देने का वादा किया.

जुलाई 2012 में पिछड़ा वर्ग आयोग ने पांच प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की. मामला चूंकि पहले ही अदालत में था, इसलिए अधिसूचना से विशेष पिछड़ा वर्ग को एक प्रतिशत आरक्षण दिया गया. तीसरी बार 22 सितंबर 2015 को गुर्जरों सहित पांच जातियों को पांच प्रतिशत आरक्षण दिया गया, जिसे अदालत ने 9 दिसंबर 2016 को खत्म कर दिया. सुप्रीम कोर्ट में सरकार की याचिका आज भी लंबित है. चौथी बार 17 दिसंबर 2017 को भाजपा सरकार ने गुर्जरों सहित पांच जातियों के लिए एक प्रतिशत आरक्षण संबंधी विधेयक पारित किया था. नतीजतन, एसबीसी संवर्ग में उन्हें लाभ मिल भी रहा था. लेकिन, केंद्र सरकार द्वारा गरीब सवर्णों को दस प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा ने गुर्जरों को नया हथियार थमा दिया. गुर्जर भले ही पटरियों से उठ चुके हैं, लेकिन बैसला के मन में चुभी फांस निकली नहीं है. बातचीत में जब वह अपने सपनों का जिक्र करते हैं, तो लगता नहीं कि उनके दिमाग में कुछ पक न रहा हो. अपना मकसद वह खुलकर बयान करते हैं कि एक ही ध्येय है, आरक्षण दिलाकर गुर्जर समाज की बेटियों को कलक्टर बनता देखूं.