अनुसूचित जाति और जनजातियों के लोगों के लिए एक अच्छी खबर है। अब दलितों के खिलाफ हुए मामलों में दो महीने के भीतर जांच पूरी कर चार्जशीट दाखिल करनी होगी। केंद्र सरकार ने इसको अनिवार्य कर दिया है। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती पर सरकार ने (अनुसूचित जाति और जनजातियों) एससी-एसटी के उत्पीड़न से जुड़े मामलों के कानून में संशोधन कर नए नियम की नोटिफिकेशन जारी कर दी है।

1989 में एससी-एसटी एक्ट में सुधार

सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्रालय ने एससी-एसटी (उत्पीड़न निरोधक) एक्ट में सुधार कर 14 अप्रैल, 2016 को नया नियम लागू कर दिया।  साल 1989 में बने इस कानून को संसद में इस साल सुधार के लिए पेश किया गया था। नए नियम में ऐसे उत्पीड़न के मामलों में सख्त कार्रवाई का प्रावधान किया गया है।

महिला अपराधों में बरती जाएगी सख्ती
एससी-एसटी और महिलाओं को बड़ी राहत देनेवाले इस नियम के मुताबिक अब कानूनी शिकायतों का जल्द निपटारा हो सकेगा। इसके साथ ही पीड़ितों को एक तय अवधि में राहत मिलना सुनिश्चित हो जाएगा। ऐसे मामले में 60 दिनों में जांच पूरी कर कोर्ट में चार्जशीट दाखिल करनी होगी। इसके साथ ही महिला अपराधों में खासतौर पर सख्ती बरती जाएगी। पीड़ित महिलाओं को खासतौर पर कानूनी मदद की जाएगी।

 विभिन्न स्तरों पर बनी समिति करेगी मामले की समीक्षा
एससी-एसटी के खिलाफ मामलों में पीड़ितों को अपना केस लड़ने के लिए आर्थिक मदद भी की जाएगी। पीड़ित और उनके आश्रितों को मिलने वाली राहत की रकम को भी बढ़ाया गया है। अपराध की प्रकृति के आधार पर इस रकम को बढ़ाया भी जा सकता है। इसके अलावा पीड़ितों और गवाहों के इंसाफ का हक सुनिश्चित करने और कार्रवाई की समीक्षा करने के लिए राज्य, जिला और अनुमंडल स्तर पर समिति बनाकर उसकी नियमित बैठक का भी प्रावधान किया गया है।

बता दें कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानि एनसीआरबी के पिछले पांच साल के आंकड़े बताते हैं कि दलितों के खिलाफ अत्याचार लगातार बढ़ रहे हैं । हालांकि 2012 में इसमें मामूली कमी आयी थी. एनसीआरबी की ताजा रिपोर्ट जो साल 2014 की है, उसमें दलितों के खिलाफ 2013 के मुकाबले अधिक वृद्धि दिखायी गयी है। 2014 में 47,064 अपराध हुए हैं जबकि 2013 में यह आंकड़ा 39,408 था। साल 2012 में दलितों के खिलाफ अपराध के 33,655 मामले सामने आए थे, जबकि इसके एक साल पहले यानि 2011 में हुए 33,719 से थोड़े कम थे। पांच साल पहले 2010 में यह आंकड़ा 33,712 था। अपराधों की गंभीरता को देखें तो इस दौरान हर दिन दो दलितों की हत्या हुई और हर दिन औसतन छह दलित महिलाएं बलात्कार की शिकार हुईं।