अभिषेक रंजन सिंह, नई दिल्ली।

केरल के कन्नूर में एक आरएसएस कार्यकर्ता की बेरहमी से हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड के पीछे सीपीएम कार्यकर्ताओं का हाथ बताया जा रहा है। हत्या के बाद इलाके में तनाव बढ़ गया है। हत्या से गुस्साए स्थानीय भाजपा नेताओं ने कन्नूर जिले में विवादित सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफस्‍पा) लगाने की मांग की है। घटना कन्नूर जिले स्थित पयन्नूर के रामनथली गांव की है। मृतक आरएसएस कार्यकर्ता का नाम पी. बीजू था। बीजू जुलाई 2016 में हुई सीपीएम नेता सीवी धनराज की हत्या में आरोपी था। पुलिस के मुताबिक, कुछ लोगों ने तलवारों से बीजू पर हमला किया था। गंभीर रूप से घायल बीजू को पेरियारम मेडिकल कॉलेज और अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। सीपीएम कार्यकर्ता सीवी धनराज की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किए जाने के कुछ समय बाद वह जमानत पर रिहा कर दिए गए थे। देश के सर्वाधिक शिक्षित राज्य में शुमार केरल का कन्नूर जिला सियासी कत्लेआम का केंद्र बन गया है। सियासी रंजिश की वजह से लगातार हो रही हत्याओं की वजह से इस जिले को अब मौत की राजधानी भी कहा जाने लगा है।

कन्नूर की इस खूनी राजनीति के लिए किसी एक पार्टी को पूर्णतः दोषी करार देना भी उचित नहीं है, क्योंकि कमोबेश सभी पार्टियां शामिल हैं। कन्नूर में सभी दलों के पास अपने कार्यकर्ताओं की हत्या से संबंधित लंबी सूची है, जो सीधे तौर पर सीपीएम को कसूरवार मानते हैं। यहां होने वाली ज्यादातर हत्याएं सीपीएम और आरएसएस-भाजपा कार्यकर्ताओं की हुई हैं। सीपीएम और इंडियन यूनाइटेड मुस्लिम लीग भी एक दूसरे के प्रति हमलावर हैं। कई जगहों पर कांग्रेस और सीपीएम के बीच भी हिंसक झड़पें होती हैं। केरल में आरएसएस-भाजपा और मुस्लिम लीग के बीच उतनी बड़ी सियासी रंजिश नहीं है। क्योंकि इन संगठनों को एक-दूसरे से वोट बैंक में सेंध लगने का खतरा नहीं है।

वहीं इसके विपरीत सीपीएम और आरएसएस-भाजपा के बीच सियासी रंजिश इसलिए अधिक है, क्योंकि केरल में भाजपा लगातार मजबूत हो रही है। असल में यहां की पूरी लड़ाई वोट बैंक पर कब्जा जमाने को लेकर है। आज भाजपा को केरल में उन लोगों का वोट और सर्मथन मिल रहा हैं, जो कभी सीपीएम के हिस्से में जाता था। कन्नूर समेत समस्त केरल में इंडियन यूनाइटेड मुस्लिम लीग और भाजपा के बीच टकराव इसलिए नहीं है, क्योंकि इन्हें पता है कि उनके वोट बैंक को कोई एक दूसरे से कोई खतरा नहीं है।

केरल में सीपीएम की सरकार बनने के बाद भाजपा और आरएसएस से जुड़े कार्यकर्ताओं पर हमले काफी बढ़ गए हैं। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन खुद आरएसएस कार्यकर्ता वडिकल रामकृष्णन की हत्या में आरोपी हैं। 28 अप्रैल 1969 में हुई यह हत्या केरल में आरएसएस कार्यकर्ता की पहली हत्या थी। केरल में अब तक 174 भाजपा-आरएसएस कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी हैं। सिर्फ कन्नूर जिले में ही पार्टी से जुड़े 83 लोगों को सीपीएम ने मौत के घाट उतार दिया। केरल में मुस्लिम लीग और सीपीएम कार्यकर्ताओं के बीच भी हिंसक झड़पें होती हैं। दरअसल, राज्य में मुसलमानों का एकमुश्त वोट मुस्लिम लीग को जाता है। सीपीएम इसमें सेंध लगाना चाहती है, लेकिन उसके सारे प्रयास अबतक विफल साबित हुए हैं।

पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में मुस्लिम लीग कुल चौबीस सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें पार्टी ने अठारह सीटों पर जीत हासिल की। जहां तक कांग्रेस की बात है, तो केरल में कांग्रेस को ज्यादातर हिंदुओं और ईसाइयों का वोट मिलता है। यह बात अलग है कि मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन में उसे मुसलमानों का भी वोट मिलता रहा है। भारत में वामदलों की राजनीति पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में एक जैसी हो सकती है, लेकिन केरल में सीपीएम की राजनीति और उसका एजेंडा पूरी तरह अलग है। धर्म को ‘अफीम’ बताने वाले वामदलों को केरल में धार्मिक आयोजनों से कोई परहेज भी नहीं है। हैरानी यह है कि यहां आरएसएस और सीपीएम में इस बात की होड़ लगी रहती है कि हिंदू धर्म से जुड़े आयोजन में कौन किस पर भारी है। इसे लेकर भी दोनों के बीच झड़पें होती रहती हैं।

केरल की राजनीति पर गौर करें तो, यहां की राजनीति एलडीएफ और यूडीएफ के इर्द-गिर्द ही सिमटी रही है। हालांकि, कुछ दशकों से केरल के चुनावों में भाजपा में अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज कराई है। केरल की ग्राम पंचायतों और शहरी निकायों में भी भाजपा एक मजबूत दल के रूप में उभरी है। केरल में लोकसभा की कुल बीस सीटें हैं, इनमें कासरगोड, पलक्कड और तिरुअनंतपुरम में भाजपा का मजबूत जनाधार है। वहीं कोझिकोड और कन्नूर में भी भाजपा उभर रही है। 2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की स्थिति अच्छी रही और उसके वोट बैंक में इजाफा हुआ। साल 2006 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को महज 4.75 फीसद वोट मिले थे, जबकि 2011 के चुनाव में उसे 6.03 फीसद मत हासिल हुए। वहीं 2016 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 10.5 फीसद वोट मिले। इस बार केरल में पार्टी का न सिर्फ खाता खुला, बल्कि कई विधानसभा सीटों पर पार्टी उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे।