गरीबों को भरोसा है मोदी सरकार उनकी चिंता कर रही है (Part-3)

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद अपने पहले इंटरव्यू में अमित शाह ने भाजपा और देश की राजनीति के साथ नरेन्द्र मोदी सरकार की उपलब्धियों पर विस्तार से बात की। पेश हैं प्रदीप सिंह से हुई उनकी बातचीत के प्रमुख अंश।

क्या सरकार आर्थिक सुधार की दिशा में कुछ और कदम उठाने वाली है?
हमारी सरकार आने से पहले तक देश में चुपचाप आर्थिक सुधार किए गए। विपक्ष की कोशिश यही रही कि महत्वपूर्ण आर्थिक फैसलों को राजनीतिक मुद्दा बनाया जाए मगर हम उन पर दबाव बनाने में कामयाब रहे। पिछले 25 सालों में जितने आर्थिक सुधार किए गए उससे कहीं ज्यादा सुधार के फैसले मोदी सरकार ने किए। हमने अब तक जितना किया है उससे कहीं और ज्यादा किया जाना बाकी है। इसलिए आप उम्मीद कर सकते हैं कि सरकार सुधार के और फैसले करेगी।

कहा जा रहा है कि पिछड़ा आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के फैसले से इस तबके ने हालिया चुनावों में भाजपा को वोट दिया है?
मोदी सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग की जगह सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े तबके के लिए राष्ट्रीय आयोग बनाने का फैसला किया था। इस नए आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया गया है और यह बड़ी सफलता है। इससे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की तरह ओबीसी को भी संवैधानिक मान्यता मिल गई है। लंबे समय से इसकी मांग हो रही थी। इस फैसले से समाज के पिछड़े तबके को सामाजिक न्याय दिलाने के वादे को मोदी सरकार ने पूरा किया है। इससे समाज में बराबरी लाने में मदद मिलेगी। किसी को भी अब जाति की वजह से या शैक्षिक रूप से पिछड़ेपन के कारण असमानता का सामना नहीं करना पड़ेगा। देश के हर नागरिक का यह अधिकार है कि बिना किसी भेदभाव के उन्हें न्याय मिले। मगर दुर्भाग्य यह है कि कांग्रेस ने इस मुद्दे पर समाज को बांटने वाली राजनीति की और उसकी कोशिश यही रही कि यह बिल संसद में लटकता रहे। जब भी कांग्रेस सत्ता में रही उसने सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े समाज के बड़े तबके की इस मांग पर कभी ध्यान नहीं दिया। हमारा जोर पारदर्शिता और एक समान न्याय पर है। हम अपने सिद्धांतों को लेकर प्रतिबद्ध हैं। हम तुष्टीकरण की राजनीति नहीं करते। रही बात हालिया चुनावों में इस तबके के वोट देने की तो हम समाज के किसी भी तबके का इस्तेमाल वोट बैंक के रूप में नहीं करते हैं। हमारे लिए सुविधा से वंचित समाज के हर तबके का कल्याण करना एक मिशन है और हम वही कर रहे हैं।

भाजपा को शहरी मध्यवर्ग और अमीरों की पार्टी समझा जाता रहा है। अब ऐसा क्या हो गया है कि पार्टी को शहरी गरीब और ग्रामीण इलाकों में समर्थन मिलने लगा है।
इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा तो दिया पर गरीबों के लिए कुछ किया नहीं। पर हमारे नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी पूरी सरकार गरीबों को समर्पित कर दी है। उनकी विश्वसनीयता कश्मीर से कन्याकुमारी तक है, जिसने उन्हें आजाद भारत का सबसे लोकप्रिय नेता बना दिया है। राजीव गांधी ने स्वीकार किया था कि सरकार से जाने वाले हर रुपये में से केवल दस पैसा ही वास्तविक लाभार्थियों तक पहुंचता है। उन्होंने इस भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए कुछ नहीं किया। प्रधानमंत्री जनधन खाते खुलवाकर और उन्हें आधार से जोड़कर हमारी सरकार ने इस भ्रष्टाचार को रोकने की सफल कोशिश की है। मोदी सरकार ने गरीबों और किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए दर्जनों योजनाएं शुरू की हैं। मुद्रा बैंक योजना और स्टैंड अप इंडिया जैसी योजना ने छोटे व्यवसाइयों, दलितों, आदिवासियों और महिलाओं को उद्यमी बनने में मदद की है। नीम कोटेड यूरिया से किसानों का शोषण रुका है और फसल बीमा योजना से उसकी फसल से होने वाले नुकसान की भरपाई का रास्ता खुला है। हमारा नया समर्थक वर्ग मोदी सरकार की तीन साल की गरीब हित की नीतियों और सबका साथ सबका विकास के प्रति प्रतिबद्धता के कारण बना है।

आपके विरोधियों को चुनाव में लगातार करारी शिकस्त मिल रही है, खासतौर से कांग्रेस को। आपको उनका आगे का रास्ता कैसा नजर आता है।
कांग्रेस का क्या होता है यह मेरी चिंता का विषय नहीं है। यह उनको सोचना चाहिए। बहुत कुछ उनके नेतृत्व पर निर्भर करता है। मैं तो यही कह सकता हूं कि हम सकारात्मक विपक्ष के साथ काम करने के लिए तैयार हैं।

आपने एनडीए में कई दलों को जोड़ा है। क्या कुछ पुराने साथियों के लौटने की भी उम्मीद है क्या। मेरा आशय बिहार से है। क्या जनता दल यूनाइटेड की वापसी हो सकती है।
देखिए कुछ तथ्यों को नहीं भूलना चाहिए। हमने उनसे संबंध नहीं तोड़ा था। यह उनका फैसला था। अब हम नीतीश कुमार को न्योता तो देने जाएंगे नहीं। उनकी ओर से दरख्वास्त आएगी तो सोचेंगे बिहार के लोगों ने मौजूदा सरकार को जिन बातों के लिए जनादेश दिया था, उस पर वह बहुत धीमी गति से चल रही है। गठबंधन में भी समस्याएं आ रही हैं।

लालू यादव ने ईवीएम के बारे में आरोप लगाया है…
मैं लालू यादव की बातों का जवाब नहीं देता। उनके लिए गिरिराज किशोर ही काफी हैं।

पांच राज्यों के चुनाव के बाद विपक्ष इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों पर सवाल उठा रहा है। उनका आरोप है कि मशीनों में ऐसी गड़बड़ की गई है कि वोट किसी को दें वह भाजपा को जाएगा।
ये आरोप हास्यास्पद हैं। इनमें कोई दम नहीं है। ईवीएम फैक्ट्रियों में बनती हैं। पर इनके बारे में विवाद लुटियंस जोन की फैक्ट्रियों में बनते हैं। क्या मायावती, अखिलेश और अरविंद केजरीवाल इन्हीं मशीनों से चुनाव नहीं जीते थे। यूपीए एक और यूपीए दो भी इन्हीं मशीनों से जीत कर आया था। यह सारा विवाद लुटियंस जोन के कुछ किलोमीटर के दायरे तक सीमित है।

राष्ट्रपति चुनाव नजदीक आ गए हैं। क्या आप लोगों ने उम्मीदवार के बारे कोई फैसला किया है।
अभी तो हमने इस विषय पर विचार विमर्श भी शुरू नहीं किया है। तो उम्मीदवार के बारे में अभी कोई राय कैसे बन सकती है। अभी तो काफी समय है इस बारे में विचार करने और फैसला लेने के लिए।

हाल ही में दूसरे दलों से कई नेता भाजपा में आये हैं। इनमें कांग्रेस के लोगों की संख्या ज्यादा है। कहा जा रहा है कि भाजपा का कांग्रेसीकरण हो रहा है।
भाजपा अपनी विचारधारा से कोई समझौता नहीं करेगी। जो लोग भाजपा में आ रहे हैं उन्हें यह बात अच्छी तरह से पता है। तो ऐसे लोग जो भले ही दूसरी पार्टियों मे रहे हैं हमारी विचारधारा को स्वीकार करने को तैयार हैं, उनका स्वागत है।

किस राजनीतिक दल को आप अगले लोकसभा चुनाव की दृष्टि से अपना मुख्य प्रतिद्वन्द्वी मानते हैं।
इस समय पूरे देश में विपक्षी दलों की स्थिति प्रवाही है। कुछ भी स्थिर नहीं है। लोकसभा चुनाव से पहले अभी सात आठ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। सही बात तो यह है कि मैं खुद ही इस सवाल का जवाब नहीं जानता।

गुजरात में हार्दिक पटेल की बड़ी चर्चा थी। क्या विधानसभा चुनाव में इसके कारण भाजपा के प्रदर्शन पर असर पड़ेगा।
गुजरात में 1990 के बाद से हम कोई चुनाव नहीं हारे हैं। वहां एक काम करने वाली सरकार है। गुजरात में हमारे काम का ट्रैक रिकॉर्ड है। प्रधानमंत्री की छवि से दूसरे राज्यों में हमारा वोट प्रतिशत बढ़ा है। गुजरात में तो उसका कई गुना असर होगा। गुजरात का मतदाता प्रधानमंत्री के विजन के साथ चलेगा।

प्रधानमंत्री ने कुछ समय पहले कहा था कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ होने चाहिए। क्या भाजपा इस मुद्दे पर कोई पहल करेगी।
हां, उन्होंने कहा है कि इस पर बहस होनी चाहिए। उनका मानना है कि पंचायत से लोकसभा तक सब चुनाव साथ हों। बार बार चुनाव होते रहने से सरकारों के कामकाज पर असर पड़ता है। इसलिए सभी दलों को इसके बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। यह ऐसा काम है जो हम आम सहमति से करना चाहेंगे। हम इसे अकेले नहीं करना चाहते। प्रधानमंत्री ने बहस के लिए मुद्दा सामने रखा है। सभी मिलकर कोई फैसला करें तो अच्छा होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *