जोधपुर कोर्ट ने आसाराम को नाबालिग से दुष्कर्म का दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। सतों की शीर्ष संस्था अखाड़ा परिषद ने चौंतीस फर्जी संतों-महात्माओं की पहचान कर जो कालीसूची जारी की उसमें उनका नाम पहले से शामिल है। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष स्वामी नरेन्द्र गिरि से अजय विद्युत ने बातचीत की।

अभी आसाराम को दुष्कर्म के आरोप में उम्रकैद हुई है?
पहली बात तो यह कि आसाराम न कोई साधु है न महात्मा। उनको तो पहले ही अखाड़ा परिषद ने निकाल बाहर कर दिया था। जिस भेष में उन्होंने दुष्कर्म किया है उसके लिए आजीवन कारावास की सजा उचित है। जैसी करनी वैसी भरनी। सभी साधु महात्मा इसका स्वागत कर रहे हैं। आसाराम ने जो वस्त्र पहनकर जिस अवस्था में ऐसा कृत्य किया है वह उन्हें कदापि नहीं करना चाहिए था। लड़की का पूरा बयान है, गवाहियां हैं जिस पर न्यायालय ने फैसला दिया। इसका मतलब आपने वह किया है। कोई लड़की अगर झूठा आरोप लगाती भी है तो न्यायालय में हट जाती है। जो आपने कर्म किया उसका फल भोगो, हम क्यों उसके लिए बदनाम हों।
दूसरी बात मैं यह कहना चाहता हूं कि आरोप लगने के बाद से ही जो साधु महात्माओं का नाम बड़े बड़े बैनर बनाकर अखबारों, चैनलों में आता है वह ठीक नहीं है। अगर यही आसाराम बापू बरी हो जाते तो वे जो इतने साल जेल में रहे उसका कौन उत्तरदायी होता। आसाराम के साथ जो हुआ वह बिल्कुल सही हुआ। लेकिन वह साधु महात्मा जो संत परंपरा से आता है और परंपरा में रहता है, अगर उनमें कोई आरोपित है तो जब तक पूरी जांच न हो जाए तब तक उसे जेल में नहीं डालना चाहिए। हां, वह दोषी पाया जाए तो उसे पूरा दंड मिलना चाहिए। इसमें कहीं कोई दो राय नहीं। लेकिन अगर निर्दाेष है और उसे मीडिया या किसी और दबाव से जेल में डाला जा रहा है तो गलत है। कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती, जिनका हाल में देहांत हो गया, उन्हें हत्या के आरोप में जेल में डाला गया और बाद में वह बाइज्जत बरी हो गए थे, उनके साथ जो हुआ वह गलत था या नहीं।
कानून सबके लिए बराबर होना चाहिए। सलमान खान के मामले में देखिए कि जमानत देने के लिए जज प्रतीक्षा कर रहा है- आइए हम आप ही के लिए बैठे हैं कोर्ट में। और जब एक जज उनको दोषी ठहराने के मूड में होता है तो रातो-रात उसका ट्रांसफर हो जाता है। न्याय प्रक्रिया सबके लिए बराबर होनी चाहिए।
हिंदू धर्म में संत समाज की शुचिता के लिए अखाड़ा परिषद ने फर्जी ढोंगी बाबाओं की काली सूची जारी की। कैसा अनुभव रहा?
हमें बहुत झेलना पड़ा। तमाम विरोध हुआ, धमकियां मिलीं, गालियां पड़ीं। लेकिन हमने चिंता नहीं की… जो होगा देखा जाएगा। समाज में हमारे भगवा कपड़े का एक आदर है और इसे बनाए रखना हमारा कर्त्तव्य भी है और अधिकार भी… ऐसी शुरू से संत महात्माओं की परंपरा रही है।
भगवान राम का वनवास हुआ तो अयोध्या से लेकर लंका तक उन्हें हजारों ऋषि मुनि मिले। वे भगवान के चरण वंदन करना चाहते थे। स्वयं भरद्वाज ऋषि ने कहा कि आप मेरी कुटिया में आए, मैं धन्य हुआ, आपको प्रणाम कर लूं। भगवान राम कहते हैं कि अभी मैं मानव रूप में हूं। आप मुझको प्रणाम कर लेंगे तो कल कोई आपको पूछेगा भी नहीं। हम मानव रूप में आए हैं इसलिए हम प्रणाम करेंगे आपको। इसीलिए उन्होंने उन्होंने अयोध्या से लंका तक सब ऋषिजनों को स्वयं प्रणाम किया। ऋषियों के चरण दबाए क्योंकि वे मानव रूप में आए थे। ये संतों की परंपरा को बचाए रखने के लिए कहा।
अब कथा वाचक भी संत महात्मा बन बैठे हैं।
देखिए जिसे देखो वही कथा सुना रहा है, वहां नाच-गाना चल रहा है। ये ज्यादातर कथावाचक भड़ुवा काम कर रहे हैं, कथावाचक थोड़े ही हैं ये! ये नाचने गाने वाले हैं। और फिर सुनने वाले भी वैसे ही हैं। अगर आपको भागवत् सुननी है तो किसी विद्वान से सुनिए। भागवत् में यह कहां लिखा है कि नाचो-गाओ। ऐसे लोगों पर भी रोक लगाना जरूरी है। आप लोग कथा करिए, लोगों को ज्ञान दीजिए। यह अच्छी बात है। साधु महात्मा होने का प्रचार मत करिए। यह गलत है।
इनके लिए क्या करेंगे?
अभी हम लोग अखाड़ा परिषद की बैठक करने जा रहे हैं जिसमें साफ साफ कहा जाएगा कि हम लोग अपनी महिमा को बचाने के लिए जहां तक जाना होगा जाएंगे। संतों की परंपरा कायम रहेगी हिंदू समाज में। सब धीरे धीरे सामान्य हो जाएगा फर्जी महात्मा भी हमारे यहां अनादिकाल से हैं। इनका वर्चस्व बहुत समय चलता नहीं है। एक चक्रपाणि जी है दिल्ली में, न साधु न महात्मा, एकदम दलाल टाइप हैं… बस भगवा पहन लिया। उनको भी हमने ब्लैकलिस्ट कर दिया है हाल में। 