सत्ता, संगठन और सियासत का अपना चरित्र होता है। उसके अपने दावे होते हैं। बड़े-बड़े नारे बुलंद होते हैं। डराने के लिए अनुशासन का डंडा होता है। लेकिन जब बात एक्शन की आती है तो आदर्शों को व्यावहारिकता पर कुर्बान कर दिया जाता है। खासकर तब जब लक्ष्य विरोधियों को समूल उखाड़ फेंकने का हो तो संगठन बड़ी से बड़ी गलतियों को नजरअंदाज कर देता है। इस जमीनी हकीकत को दूसरी पार्टियों से अलग होने का दावा करने वाली भाजपा से अधिक और कौन समझ सकता है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और अटक से लेकर कटक तक, अपने विस्तार के क्रम में उसने कई बुनियादी सिद्धांतों को या तो हाशिये पर रख दिया है या फिर उसे भुला ही दिया है। भाजपा की उत्तराखंड इकाई भी इससे अछूती नहीं है। पिछले कुछ दिनों से यहां जो कुछ भी चल रहा है उससे साफ है कि दावे और नारे अपनी जगह रहेंगे। उन्हें बुलंदी के साथ गाये जाएंगे पर जब अमल की बारी आएगी तो वही होगा जो संगठन के हित में होगा।

कुंवर प्रणव सिंह चैम्पियन का नाम प्रदेश में किसी परिचय का मोहताज नहीं है। हरिद्वार जनपद के लंढौरा रियासत से ताल्लुक रखने वाले चैम्पियन ने वर्ष 2016 में कांग्रेस छोड़कर अपने नौ साथी विधायकों के साथ भाजपा का दामन थाम लिया था। कांग्रेस के इस बागी गुट के नेता तत्कालीन कृषि मंत्री हरक सिंह रावत और पूर्व मुख्यमंत्री विजय बुहुगणा थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत से नाराज चल रहे इन बागी विधायकों ने पहले सरकार को हिलाने का प्रयास किया लेकिन सफलता नहीं मिली तो वे भगवा खेमे में शामिल हो गए। आज वही नेता किसी न किसी रूप में भाजपा के लिए सिरदर्द पैदा कर रहे हैं। उसी बागी दल का हिस्सा रहे विधायक कुंवर चैम्पियन आज भाजपा सरकार व संगठन दोनों से टक्कर ले रहे हैं। चैम्पियन को मलाल है कि हरिद्वार की जिला पंचायत संचालन समिति के बाकी दो सदस्य उनकी पत्नी देवयानी सिंह को ठीक से काम नहीं करने दे रहे हैं।

हरिद्वार जिला पंचायत की अध्यक्ष सविता चौधरी के अधिकार सीज हैं। कामकाज के लिए गठित संचालन समिति में तीन सदस्य देवयानी सिंह, अमीलाल बाल्मिकी और मोहम्मद सत्तार मनोनीत हैं। अमीलाल बाल्मीकि और सत्तार दोनों की एक राय है। इससे देवयानी सिंह को बार-बार असहज होना पड़ता है। चैम्पियन अपने प्रभाव से इस समीकरण को बदलना चाहते हैं। वह मोहम्मद सत्तार को इस समिति से हटवाना चाहते हैं। लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। इसका कारण यह है कि हरिद्वार जनपद के एक अन्य भाजपा विधायक और सरकार में प्रभावशाली मंत्री मदन कौशिक की नजदीकी का सत्तार को लाभ मिल रहा है। इसी कारण चैम्पियन नाराज हैं। जब वह नाराज होते हैं तो उनके लिए कोई भी मर्यादा नहीं होती है। कांग्रेस छोड़ने से पहले भी चैम्पियन कई बार इस रूप में मीडिया के सामने आ चुके हैं। भाजपा में आने के बाद भी उनके पुराने तेवर कायम हैं। अपनी छोटी सी मांग पूरी नहीं हो पाने के कारण वह सरकार पर भ्रष्ट लोगों से घिरा होने का आरोप लगा रहे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के जीरो टॉलरेंस पर वे सवाल खड़े कर रहे हैं।

खास बात यह है कि पार्टी फोरम से अलग जाकर वे अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। पार्टी नेतृत्व के अनुसार लगातार बयानबाजी करने को नेतृत्व बर्दाश्त भी कर लेता मगर वे दिल्ली तक पहुंच गए और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात कर ली। इससे देहरादून से दिल्ली तक भाजपा में हड़कंप मचा हुआ है। इसका कारण यह है कि 13 फरवरी को अमित शाह से मिलकर चैम्पियन जब बाहर निकले तो मीडिया के सामने जमकर अपनी भड़ास निकाली। इस घटना के बाद प्रदेश प्रभारी श्याम जाजू से लेकर संगठन महामंत्री राम लाल तक इसके पीछे का सच जानने को उत्सुक हो उठे हैं। इस कारण प्रदेश भाजपा नेतृत्व और सरकार को असहज होना पड़ा है। ऐसे में संगठन को लगने लगा है कि अब चैम्पियन को उनकी सीमा बतानी होगी। इसी उद्देश्य से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने महामंत्री नरेश बंसल को जांच सौंपी और तीन दिन की जांच के बाद 17 फरवरी को चैम्पियन को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। चैम्पियन को प्रथमदृष्टया अनुशासनहीनता का दोषी पाया गया है।

नोटिस जारी होने के बाद चैम्पियन एपीसोड का खात्मा मान लिया जाना चाहिए था क्योंकि अपने खिलाफ संभावित कार्रवाई की आशंका से चैम्पियन खामोश हो गए हैं। वे मीडिया के सामने आने या बयान जारी करने से बच रहे हैं। पर ऐसा नहीं है। चैम्पियन को महज नोटिस भेजकर और दस दिन के अंदर जवाब देने की मोहलत देकर भाजपा ने दूसरी पार्टियों से अलगे होने के दावे पर एक और सवाल खड़ा कर लिया है। एक बार फिर यह साबित हो गया है कि भाजपा की नीतियां और रीतियां भी अन्य दलों जैसी है। खासकर चैम्पियन के मामले ने भाजपा की अंदरूनी कमजोरी को काफी शिद्दत से उजागार किया है। पहली बार यह लगा कि उत्तराखंड में भाजपा संगठन और भाजपा सरकार में सब कुछ सही नहीं चल रहा है। पहली बार लगा कि केंद्रीय नेतृत्व उत्तराखंड के बारे में अन्य स्रोतों से भी फीडबैक चाहता है। बड़ा सवाल यह है कि संगठन और सरकार के खिलाफ प्रणव सिंह चैम्पियन ने राष्ट्रीय अध्यक्ष से मुलाकात के लिए समय मांगा और अमित शाह ने उन्हें मिलने का समय भी दे दिया। न तो सरकार को इस बात का इल्म हुआ और न ही संगठन को। पहले तो मुख्यमंत्री के मीडिया को-आॅर्डिनेटर दर्शन सिंह रावत ने यह कहकर मामले की गंभीरता को कम करना चाहा कि अमित शाह के दफ्तर से चैम्पियन को मायूस होकर लौटना पड़ा। उन्हें शाह से मिलने का वक्त नहीं मिला। संगठन ने भी शुरू में इस मुद्दे को हलके में लिया। लेकिन जब चैम्पियन मीडिया से मुखातिब हुए और अमित शाह के साथ मुलाकात की फोटो जारी की तो उत्तराखंड में हलचल मच गई।
इस प्रकरण से इतना तो तय हो गया कि चैम्पियन को अमित शाह सुनना चाहते थे। ऐसे में चैम्पियन को नोटिस भेजना संगठन का दिखावा भर हो सकता है। यदि वास्तव में चैम्पियन के खिलाफ अनुशासनहीनता साबित है जैसा कि नोटिस में उल्लेख हुआ है तो उन्हें निलंबित क्यों नहीं किया गया। नोटिस तो निलंबन के बाद भी भेजा जा सकता था मगर ऐसा नहीं किया गया क्योंकि भाजपा में नोटिस का मतलब क्या होता है यह सभी जानते हैं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के खिलाफ काम करने वाले कुल 60 नेता व पदाधिकारी चिन्हित हुए। उन्हें नोटिस भेजा गया। कई आरोपियों ने नोटिस का जवाब दिया तो कई ने इसका जवाब देना भी उचित नहीं समझा। पिछले एक साल से यह मामला लंबित है। किसी के खिलाफ अभी तक कोई एक्शन नहीं लिया गया। यहां तक कि हल्द्वानी में आयोजित वर्किंग कमेटी की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा तक नहीं हुई। जनवरी में प्रदेश मुख्यालय में आयोजित कोर कमेटी की बैठक में भी अनुशासनहीनता पर कोई चर्चा नहीं हुई। एक्शन तो दूर की बात है। ऐसे में चैम्पियन के खिलाफ कार्रवाई होगी, इसमें संदेह है। यदि कार्रवाई होती भी है तो यही माना जाएगा कि भाजपा में नेताओं की हैसियत और उसका वजूद देखकर कार्रवाई की जाती है।

त्रिवेंद्र रावत सरकार के दो वरिष्ठ मंत्रियों मदन कौशिक और सतपाल महाराज की आपसी भिड़ंत इसका बड़ा उदाहरण है। पिछले साल अगस्त में जलभराव के मुद्दे पर दोनों के समर्थक हरिद्वार में भिड़े। उनमें मारपीट हुई, पथराव हुए और मदन कौशिक पक्ष के माने जाने वाले शहर के मेयर मनोज गर्ग समेत कई लोग बुरी तरह से घायल हो गए। दोनों ओर से मुकदमा भी दर्ज हुआ। बाद में यह मामला पार्टी की अनुशासन समिति को सौंपा गया पर आज तक किसी के भी खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं हुई। एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या केंद्रीय नेतृत्व प्रदेश भाजपा और प्रदेश सरकार के कामकाज से नाखुश है। चैम्पियन की उनसे मुलाकात इसी ओर इशारा कर रही है क्योंकि जब चैम्पियन ने अमित शाह से मुलाकात का वक्त मांगा होगा तो उसके उद्देश्यों को लेकर पार्टी के प्रदेश नेतृत्व से अमित शाह ने जरूर बात की होगी। अमित शाह को जरूर पता होगा कि चैम्पियन क्यों मुलाकात करना चाह रहे हैं। इसके बावजूद उन्हें मुलाकात का वक्त दिया गया। इसी तरह समर्पण दिवस के दिन ग्यारह फरवरी को जिस प्रकार हरिद्वार के सांसद रमेश पोखरियाल निशंक के आवास पर भाजपा के दर्जनों विधायक जमा हुए उससे भी एक अलग संदेश गया। संदेश यह है कि भाजपा में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। कोई संगठन से नाराज है तो कोई सरकार से। यदि समय रहते इन गतिविधियों पर पाबंदी नहीं लगी तो आने वाला समय भाजपा के लिए मुश्किलों भरा होगा।

दागी व बागी बर्दाश्त नहीं : अजय भट्ट
चैम्पियन प्रकरण से पार्टी की फजीहत हुई है। इसे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट भी जानते हैं। उनका कहना है कि संगठन में दागी और बागी लोग बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे। सामने वाले का कद चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो यदि उसने अनुशासनहीनता की है और पार्टी के संविधान का उल्लंघन किया है तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। पर अनुशासनहीनता के आरोपियों के खिलाफ अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई, इस सवाल पर अजय भट्ट जांच की बात कह चुप्पी साध लेते हैं।