नई दिल्ली। देश की सीमाओं पर तनाव के मद्देनजर भारत लगातार अपनी सामरिक क्षमताओं को बढ़ा रहा है। इसी क्रम में भारत ने देश में बनी पहली न्यूक्लियर आर्म्ड सबमरीन आईएनएस अरिहंत को बेहद खामोशी से नेवी के बेड़े में शामिल कर लिया है। सबमरीन को इसी साल अगस्त में बेड़े में शामिल किया गया। आईएनएस अरिहंत मिलने से भारत दुनिया का ऐसा छठा देश बन गया है जिसने खुद न्यूक्लियर आर्म्ड सबमरीन बनाई है।

अब तक 5 देशों अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन के पास ही न्यूक्लियर ऑर्म्ड सबमरीन थीं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसी साल अगस्त में नरेंद्र मोदी ने आईएनएस अरिहंत को खामोशी के साथ इंडियन नेवी को सौंप दिया। उसके बाद इसने पूरी तरह से काम करना शुरू कर दिया है।

इंडियन नेवी अब उन सुपरपॉवर्स के क्लब में शामिल हो गई है जिनके पास पानी और जमीन से न्यूक्लियर मिसाइल दागने की क्षमता है। इससे पहले, इस साल फरवरी में यह ऐलान किया गया था कि आईएनएस अरिहंत ऑपरेशन के लिए तैयार है। इस सबमरीन के टेस्ट कई महीनों तक लगातार चले थे।

भारत ऐसी कुल 3 न्यूक्लियर पॉवर्ड सबमरीन बना रहा है। अरिहंत इनमें पहली है। भारत ने आईएनएस अरिहंत को दुनिया से छिपा रखा था। इसके लिए सीक्रेटिव एटीवी (एडवांस टेक्नोलॉजी वेसल) प्रोग्राम कई दशक पहले शुरू किया गया था।

इस श्रेणी की दूसरी सबमरीन आईएनएस अरिधमन भी करीब-करीब तैयार है। इसे 2018 में नेवी को सौंपा जा सकता है। पाकिस्तान और चीन ने बड़े पैमाने पर न्यूक्लियर वेपंस पॉलिसी अपना रखी है। हिंद महासागर क्षेत्र में चीन अपनी न्यूक्लियर सबमरींस की तैनाती बढ़ा रहा है। भारत की सिक्युरिटी के लिए यह चिंता का विषय है।

इसी साल विशाखापट्टनम में इंटरनेशनल फ्लीट रिव्यू ऑर्गनाइज किया गया था। इसमें कई देशों की नेवी ने हिस्सा लिया था। नरेंद्र मोदी और प्रणब मुखर्जी भी इस फ्लीट को देखने आए थे।

भारत ने इस प्रोग्राम में अरिहंत को इसलिए शामिल नहीं किया, क्योंकि फॉरेन वॉर शिप्स में सेंसर और सर्विलांस डिवाइसेस मौजूद थीं। ये अरिहंत के फीचर्स को ट्रेस कर सकती थीं। नेवी इसके हर फीचर को बिल्कुल सीक्रेट रखना चाहती है।

अरिहंत पर के-15 या बीओ-5 शॉर्ट रेंज मिसाइलें तैनात हैं। ये 700 किलोमीटर तक टारगेट हिट कर सकती हैं। अरहिंत के-4 बैलिस्टिक मिसाइलों से भी लैस है। इनकी रेंज 3500 किलोमीटर तक है। यह 6 हजार टन वजनी न्यूक्लियर सबमरीन है।

इससे पानी के अंदर और पानी की सतह से न्यूक्लियर मिसाइल दागी जा सकती है। पानी के अंदर से किसी एयरक्राफ्ट को भी यह निशाना बना सकती है।