हापुड़ जिले में शहर की मेन चौक के बीचों-बीच लगी बाबा भीमराव अंबेडकर की मूर्ति की उंगली का इशारा जिस ओर था, हम उस ओर चल पड़े। सामने चाय की दुकान पर लगे पेटीएम कोड को देखकर पैर ठिठक गए। मन में सवाल उठा कि क्या वाकई हम कैशलेस सोसायटी की तरफ बढ़ गए हैं? चाय बना रहे युवक से पूछा कि चाय के बदले क्या पेटीएम कर सकते हैं? जवाब हां में मिला। नोटबंदी के सवाल पर उसका जवाब था, ‘धंधा थोड़ा मंदा हुआ, पर अब पटरी पर आ रहा है। लेकिन फैसला ठीक था, कम से कम धन की जमाखोरी करने वालों को सबक तो मिला।’

आप कितनी बार लाइन में लगे- यह पूछने पर उसने कहा, ‘कई बार। वैसे भी गरीब आदमी तो लाइन में लगने का आदी होता है। जहां इतनी लाइनें वहां एक लाइन देश के नाम सही।’ देश के नाम! चाय की चुस्की और चुटकी लेते हुए वहीं खड़े नईम ने कहा, ‘हां, सौ से ज्यादा लोग तो देश के नाम शहीद भी हो गए।’ इस चुटकी ने कुछ मिनटों में ही बहस का रूप ले लिया।

लोग इकट्ठा होने लगे। मौसम की ठंडक गर्मी में बदले इससे पहले ही तीसरा सवाल पूछा- नोटबंदी का असर चुनाव पर पड़ेगा? सबका जवाब लगभग एक साथ आया, ‘हां, कुछ तो पड़ेगा।’ लोगों की बातों से लग रहा था कि नोटबंदी का असर लोकसभा चुनावों पर ज्यादा पड़ेगा। विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव से अलग होते हैं। जाति-बिरादरी और नेता की व्यक्तिगत छवि भी मायने रखती है।

पास में ही कांग्रेस का कार्यालय था। वहां चहल पहल थी। नेता जी ने हाथ जोड़कर स्वागत किया। बातचीत के दौरान उन्होंने सीट पर पक्की दावेदारी ठोंकी और कहा, ‘काम बोलता है। उम्मीद है, जनता का प्यार और आशीर्वाद मुझे मिलेगा।’ उन्होंने मेरे हाथ में पैंफलेट थमा दिया जिसका टाइटिल था- कर्म ही पूजा है। हम वहां से करीब एक किलोमीटर आगे बढ़े। महमूदपुर गांव का रास्ता पूछने के लिए हम एक मिठाई की दुकान पर रुके। रास्ता पूछने के साथ ही नोटबंदी पर सवाल भी पूछ लिया तो दुकान मालिक ने स्पष्ट राय दी, ‘कम से कम पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भीतर जाति-बिरादरी, स्थानीयता चुनाव में एक बड़ा निर्णायक मुद्दा है।’ जाट किस तरफ जाएंगे, यह पूछने पर मिठाई बना रहे हलवाई ने सामने इशारा कर कहा, ‘जाटों के मुखिया हैं रामपाल जी, इन्हीं से पूछ लो।’ अधेड़ मगर तनी हुई मूछों वाले रामपाल जी ने कहा, ‘हापुड़ में तो जाट का बड़ा मसला नहीं है। लेकिन हां, आप जैसे-जैसे आगे बढ़ेंगी आपको जाट समुदाय की नाराजगी महसूस होगी। वहां खड़े करीब दस-बारह लोगों ने रामपाल जी की हां में हां मिलाई।’

अब यहां से सीधे हमारी गाड़ी महमूदपुर गांव जाकर रुकी। एक कच्चे अंडरपास से गुजरकर हम गांव तक पहुंचे। गाड़ी रुकी ही थी कि नजर एक बुजुर्ग पर पड़ी। बातचीत शुरू की तो पता चला अमरपाल सिंह नाम है इनका। चुनाव का जिक्र करते ही बिल्कुल आग बबूला होकर बोले, ‘सब तो एक जैसे हैं, किसको चुनें?’ उन्होंने कुछ और लोगों को इकट्ठा किया। अमरपाल सिंह ने आगे कहा, ‘कोई सरकार किसानों की हितैषी नहीं है। किसानों को खत्म करने की साजिश चल रही है। हमारी जमीनें हड़पकर उद्योग लगाए जा रहे हैं।’

करीब ही बैठे कृपाल सिंह ने कहा, ‘कर्ज का मर्ज लगाकर सरकार किसानों की क्षमता खत्म कर रही है। प्रधानमंत्री ने फसल बीमा लाकर सीधे कंपनियों को फायदा पहुंचाना भी शुरू कर दिया है। रही सही कसर नोटबंदी करके पूरी कर दी।’ करीब ही बैठे रणवीर सिंह ने कहा, ‘एक बार फिर फील गुड का नारा शीरा होकर बह गया। मोदी जी के अच्छे दिनों का वादा जुबानी जुमला बनकर रह गया।’

गांव के प्रधान हरेंदर जाट ने कहा, ‘गांव के बीचों बीच से निकले रेलवे फ्रेट कोरीडोर का हम नवंबर से विरोध कर रहे हैं लेकिन हमारी नहीं सुनी जा रही। जो इस समस्या का समाधान करेगा हम वहीं वोट करेंगे।’ अमरपाल ने कहा, ‘हम जल्दी ही कई गांवों की पंचायत बुलाकर तय करेंगे की जाटों का वोट कहां गिरना चाहिए।’

हरेंदर प्रधान ने कहा, ‘वोट पूरी बिरादरी मिल-बैठकर तय करती है।’ भले ही बात किसानों के मुद्दे से शुरू हुई हो, लेकिन थम गई थी आकर बिरादरी के सामूहिक निर्णय पर।

यहां से निकलकर हम शादीपुर गांव पहुंचे। यहां दलित और सवर्ण दोनों की अच्छी खासी आबादी थी। मुस्लिम आबादी कम थी। चुनावी हवा का जायजा लेने के लिए ग्रेजुएशन कर रहे राजेश से सवाल पूछा तो उसने जवाब दिया, ‘पूछना क्या है फूल को वोट देंगे।’ पास खड़े रोहित का जवाब भी यही था। हालांकि अशोक चुप था। अशोक से जब पूछा तो रोहित और और राजेश हंस पड़े। ये तो हाथी को ही वोट देंगे। अशोक दलित जाति से थे। हालांकि इन तीनों के पास वोट डालने का आधार तय करने के लिए कोई मुद्दा नहीं था। उनका कहना था, ‘विकास तो आज तक किसी ने किया नहीं। अगर विकास आधार बनाएंगे तो फिर बूथ खाली ही रह जावेंगे।’ सामने से हाथ में लोटा लिए आ रही राजबाला से आगे बढ़कर सवाल किया तो जवाब मिला, ‘जो घर के मरद तय करेंगे वहीं दबा आएंगे बटन।’

चुनावी सफर का अगला पड़ाव था अमरपुरा गांव। यह गांव दलितों का गांव है। गांव में घुसते ही बीजेपी की टोपी लगाए एक अधेड़ नजर आया। हमने फट से फोटो खींची तो वह थोड़ा अचकचाया, पर फौरन बोला, ‘मैडम हम टोपी किसी की भी लगा लें मगर बटन हाथी पर ही दबेगा।’ इस बार चुनाव का मुद्दा क्या है? पास खड़े गोबिंद सिंह नाम के अधेड़ ने कहा, ‘मुद्दा खोजेंगी तो बहुत हैं, पूरे गांव में एक-दो घर में ही सरकारी शौचालय होंगे। गंदगी देख ही रही हैं। सरकारी सुविधाएं पाने के लिए चक्कर लगा-लगाकर जूते फट जाते हैं। पर बहनजी अपनी बिरादरी की हैं। सत्ता में आएंगी तो सिर ऊंचा होगा।’ करीब खड़े प्रशांत, ब्रजेश, धर्मेंद्र नवयुवक थे, उनकी तरफ देखा तो उन्होंने कहा, ‘यह गांव दलितों का है।’

मेरठ-

‘मुद्दों की सोचेंगे तो कोई पार्टी थर्ड डिवीजन में भी पास नहीं होगी’

हापुड़ के बाद अगला पड़ाव था मेरठ। हापुड़ से मेरठ के रास्ते में पहली चुनावी चर्चा का अड्डा बना झिलमिल ढाबा। तंदूर पर रोटी सेंक रहे अधेड़ से पूछा- कहां से हैं। जवाब मिला, ‘रिठाई गांव से।’ किसे जिता रहे हैं? वो बोले, ‘किसे जिताएं? सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं।’
बात आगे बढ़ती कि एक व्यक्ति ने हंसते हुए कहा, ‘मीडिया से हो क्या आप? लिखना तो आपको वही है जो आपका मन करेगा।’ मैंने उस व्यक्ति से कहा, चुनाव आ रहा है, आपके बोल तोड़े मरोड़े जा सकते हैं, मगर वोट तो जहां गिरेगा वहीं गिना जाएगा! तो बताइये इस बार किस मुद्दे पर वोट गिराएंगे। उसने कहा, ‘वोट मुद्दों पर नहीं जाति-बिरादरी पर गिरते हैं। बी-टेक कर रहा हूं। शायद मेरे जैसे कुछ लोग सोचें कि वोट मुद्दों पर गिरने चाहिए। पर, मुद्दों के बारे में सोचेंगे तो एक भी पार्टी थर्ड डिवीजन में भी पास नहीं होगी। इसलिए लोग फिर जाति-बिरादरी की तरफ मुड़ जाते हैं।

मेरठ बाईपास पर तिरंगों से सजे बाजार देख थोड़ा विराम लिया। तिरंगे के घेरे के बीच एक झांकते हुए चेहरे से बातचीत शुरू की। नाम पूछने पर हरिकिशन बताया। सवाल वही- भाई देश के सबसे ज्यादा आबादी वाले सूबे में किसकी सरकार ला रहे हैं। जवाब बिल्कुल स्पष्ट था, ‘यह भी पूछने की बात है। फूल खिलेगा। सेना ने घुसकर पाकिस्तानियों को मारा…!’ एक महिला के सामने शायद संकोच उभरा सो गाली जुबान पर आते आते अटक गई।

दूसरा सवाल- मुद्दा क्या है इस बार चुनाव का? ‘लो जी देश को जिता दिया मोदी जी ने तो क्या हम उन्हें नहीं जिता सकते।’ गांव पूछा तो बताया बिसौली, सरधना विधानसभा सीट। फिर पूछा- हरिकिशन जी, कैसा है आपका उम्मीदवार? ‘सच कहें तो मोदी जी बाकी तो सब ठीक कर रहे हैं, पर विधायकों को टाइट नहीं कर पा रहे। इनकी बेफिजूल की बयानबाजी की वजह से भाजपा को नुकसान हो रहा है। कुछ करना धरना तो है नहीं।’ हरिकिशन जी के साथ खड़े विजय ने कहा, ‘देश तो तरक्की कर रहा है, पर जिले पिछड़ रहे हैं। प्रधानमंत्री जी को देश के साथ जिलों पर भी ध्यान देना चाहिए। भाजपा के सांसद विधायक मोदी जी की छवि बिगाड़ रहे हैं। सवर्णों का वोट तो वहीं जाएगा, पर जाट समुदाय नाराज है। आप जानती ही होंगी।’ रिंकू जाट अपनी बाइक रोककर खड़े हो गए, ‘मैडम खूब सर्वे कर लो मगर आखिर में मुद्दा नहीं जाति-बिरादरी ही जीतेगी। और वैसे तो मैं भाजपा को ही वोट दूंगा, लेकिन सच कहूं तो भाजपा से जाट खूब नाराज हैं। मुजफ्फरनगर दंगों में मुस्लिम पीड़ित सबको दिखा, मगर जाट पीड़ित नहीं दिखा। कोई नेता खड़ा हुआ जो जाट के लड़कों का साथ देता। इसका असर यह होगा कि हमारे बड़े बूढ़ों का काफी वोट रालोद के खाते में जाएगा।’

बहस बढ़ने लगी थी, लेकिन हमें मेरठ के अन्य हिस्सों तक पहुंचना था। तभी खबर मिली की कुछ किसान शताब्दी गंज के एक ब्लाक में धरने पर बैठे हैं। हम वहां पहुंचे तो धरने में आसपास के कई गांवों रिठाई, कांशी, घोपला, जैनपुर के लोग बैठे थे। मुद्दा था कि 1990 के बाद जो अधिग्रहण हुआ वे उसके खिलाफ थे। 2013 में आए नए कानून के मुताबिक अगर सरकार जमीन अधिग्रहण करती है लेकिन पांच साल तक उसका इस्तेमाल नहीं कर पाती तो उसे दोबारा किसानों को देना होगा, नहीं तो नए रेट के हिसाब से भुगतान करना होगा। लेकिन हमारी मांग कोई नहीं सुनता।

बीरकृपाल ने कहा, ‘न पहले की सरकारों ने सुना न आज की सरकार सुन रही है।’ वो बोले, ‘स्मार्ट सिटी से पहले सबके पेट में रोटी जाए इसकी योजना लानी चाहिए।’ जाट बिरादरी का जमावड़ा था, सो पूछा कि आखिर जाट का वोट किसे पड़ेगा। छतरपाल बोले, ‘कोई एक जगह नहीं गिरेगा, भाजपा, रालोद में बंटेगा। कुछ बसपा में भी जाएगा। नई पीढ़ी भाजपा की तरफ देख रही है।’ होशियार सिंह से पूछा तो बोले, ‘दलित हूं, हाथी के सिवा कहां जाऊंगा।’ फिर वही जाति बिरादरी, मुद्दा गौण। बीरकृपाल सिंह ने कहा, ‘किसान अब किसी के घोषणा पत्र में शामिल नहीं होता। किसान वोट पाने के लिए नेता ज्यादा मशक्कत नहीं करते बल्कि जाति समीकरण साधकर सत्ता तक पहुंच जाते हैं। किसान वोट किसी एक खाते में नहीं बल्कि अलग-अलग पार्टियों को पड़ेगा। किसान नेता राकेश टिकैत ने भी कहा है कि मन की आवाज पर वोट दें।’ यहां से जैनपुर गांव पहुंचे। गांव में घुसते हुए कुंवर सिंह से मुलाकात हो गई। खाट पर बैठे कुंवर सिंह ने पास बिठाकर कहा, ‘जो तुम नोटबंदी की बात पूछों तो घणां नाराज हूं मैं, पोत्ती की शादी 8 दिसंबर को थी। कैसे-कैसे की है, ये हम ही जानते हैं। नोटबंदी का जहर तो आम जनता के हिस्से डाल दिया। अमृत जो निकला उसका हिसाब कोण देगा?’ तीन पीढ़ियां एक साथ खड़ीं थीं, कुंवर सिंह के भाई का बेटा और पोता। पोते की राय स्पष्ट थी कि भाजपा को वोट देगा। दादा जी स्पष्ट थे कि वोट रालोद पर डालेंगे। और चाचा जी थोड़ा कन्फ्यूज थे। वहां कुछ दलित भी थे। दलितों से पूछा तो फिर वही जवाब, ‘बहन जी के अलाव कौण सुने है हमारी!’ चाचा जी ने बताया, ‘हरियाणा के जाट यहां आकर भाजपा के खिलाफ लगातार यहां के जाट को लामबंद कर रहे हैं।’

जैनपुर से चले तो घोंपला गांव में आकर रुके। यहां मुस्लिम और जाट आबादी लगभग बराबर है। इसलिए टक्कर कांटे की होगी। मिठाई खरीद रहे मो. अब्बास ने कहा, ‘जी साइकिल पर गेरेंगे वोट ओर कहां गेरेंगे!’ मिठाई दे रहे रोहित ने कहा, ‘फूल पर मोहर लगेगी।’ पास खड़े आबिद ने कहा, ‘बस समझ जाइये मुकाबला कड़ा है।’ करीब 30-35 साल के लोकेश ने कहा, ‘अगर भाजपा नहीं आई यूपी में तो हिंदू असुरक्षित है।’ और आबिद ने कहा, ‘अगर आई तो मुसलमान असुरक्षित है।’

मेरठ से दिल्ली के रास्ते में पड़े एक वैष्णो ढाबे में रुकना हुआ। चाय और पकौड़ों का आर्डर कर कुर्सी पर बैठे ही थे कि परमिंदर पहलवान सामने आ गए। अपना परिचय देकर बोले, ‘मैं भाजपा का कर्मठ कार्यकर्ता हूं। शकोति गांव से हूं। वैसे इस बार भाजपा को मुंह की खानी पड़ेगी। इन्होंने जो बयानवीर पाल रखे हैं, उनका खामियाजा इस बार उठाना पड़ेगा। मुजफ्फरनगर दंगों में बयान तो खूब आए, मगर उन जाट लड़कों की सुध किसी ने नहीं ली जिनके नाम रिपोर्ट लिखकर उनका जीवन बर्बाद कर दिया गया। भाजपा की सरकार आई थी, उम्मीद थी कि जांच होगी। दंगों के वक्त दोषी लड़कों की गिरफ्तारी करने वाले उन दो अधिकारियों का ट्रांसफर किसने किया? मैंने जबसे होश संभाला भाजपा का कार्यकर्ता हूं। लेकिन मौजूदा दौर में भाजपा में जमीनी कार्यकर्ताओं की कोई कीमत नहीं।’

सरधना सीट से हार तय करने के साथ ही परमिंदर जी ने मेरठ से खड़े लक्ष्मीकांत वाजपेयी और दक्षिणी मेरठ से खड़े सोमेंद्र नाथ के जीतने की सौ प्रतिशत गारंटी भी ली।