बहुजन समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ओपी बाजपेयी मानते हैं कि पार्टी की सियासी जमीन पहले से मजबूत हुई है। उसका आधार वोट हर विधानसभा क्षेत्र में है। ओपिनियन पोस्ट की उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश :-

प्रदेश में बसपा को पांच-छह फीसदी वोट मिलते रहे हैं लेकिन सीट नहीं बढ़ पाई। ऐसे में हाथी कैसे उठेगा?
सीट बढ़ना और कम होना परिस्थितियों पर निर्भर करता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि बसपा कमजोर हुई है। कई स्थानों पर बसपा दूसरे नंबर पर भी रही है। बसपा का आधार वोट हर विधानसभा क्षेत्र में पांच से दस हजार है। दरअसल, चुनाव के बाद लोग घर बैठ जाते हैं या फिर निष्क्रिय हो जाते हैं। इस वजह से हमें जितनी सीटें मिलनी चाहिए, नहीं मिल सकीं। लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। हमने हर विधानसभा क्षेत्र में काम किया है। हम भले ही बहुमत में न आएं लेकिन हमारे बगैर किसी की भी सरकार नहीं बन पाएगी।

बसपा एक संभाग विशेष तक सिमट कर रह गई है, ऐसा क्यों?
जिस विधानसभा क्षेत्र के लोग अपने वोट का महत्व समझते हैं वहां बसपा का वोट बढ़ जाता है। बसपा का आधार वोट है जिसे हर पार्टी महसूस करती है। बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग, बलौदाबजार और बस्तर में हमने आधार वोट को मजबूत किया है और बढ़ाया है। हमें बिलासपुर, दुर्ग और रायपुर संभाग से इस बार सीट मिलेगी।

दूसरी पार्टी से क्यों गठबंधन चाहती है बसपा?
कांशीराम जी कहा करते थे कि हम देश में मजबूत नहीं, मजबूर सरकार चाहते हैं। मजबूर सरकार की वजह से ही हमारे लोगों को और हमारी पार्टी को ताकत मिलेगी। बहुमत वाली सरकार दूसरे का हित नहीं देखती। यही वजह है कि आज भी एससी-एसटी अपने अधिकार से वंचित हैं। उन्हें उनका अधिकार दिलाने के लिए बसपा गठबंधन के पक्ष में है।

रमन सिंह अजीत जोगी को प्रदेश की तीसरी सियासी ताकत बताते रहे हंै, इससे बसपा को चुनाव में क्या कोई फर्क पड़ सकता है?
मुख्यमंत्री किसी पार्टी को क्या कहते हैं, इससे बसपा को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। कुछ दिनों पहले वे बसपा को तीसरी सियासी ताकत बता रहे थे। राजनीतिक बातों का असर पार्टी पर नहीं पड़ता। बसपा प्रदेश में कहीं भी कमजोर नहीं है। अभी भी बसपा की यह स्थिति है कि उसकी मौजूदगी से कई दल चुनाव हार जाते हैं। बसपा के लोग जिस दिन यह समझ लेंगे कि उनका भला किस पार्टी से है और थोड़ा मेहनत कर लेंगे, उस दिन बसपा की सीटें अपने आप बढ़ जाएंगी और हम बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब हो जाएंगे।

ओबीसी वोटर तो बसपा के साथ नहीं आता?
ओबीसी वोटरों में अभी जागरूकता की कमी है। हमारी पार्टी के नेताओं ने ओबीसी वोटरों के बीच अपना कैडर वोट बढ़ाने की पहल की है। हमें विश्वाास है कि इस बार ओबीसी वोटर बसपा के साथ आएगा। इसीलिए हम पिछली बार से अधिक मजबूती के साथ 90 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की दिशा में काम कर रहे हैं।

क्या ब्राह्मण वोटर चुनाव को प्रभावित करते हैं?
ब्राह्मण वोटर किसी भी पार्टी का वोट बैंक तो नहीं है लेकिन कुछ सीटों पर निर्णायक वोटर है। सबसे अधिक ब्राह्मण वोटर बेमेतरा में हैं। उसके बाद बिलासपुर में। जिसकी हवा रहती है ब्राह्मण उसे वोट कर देता है। अपने वोट का मूल्य अभी तक वह समझ नहीं सका है। 