राकेश चंद्र श्रीवास्तव
श्रावस्ती जिले के तिलहर गांव में सात साल पहले 23 सितंबर, 2009 को कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी अचानक आए और यहां के दलितों के बीच 18 घंटे बिताया। इस दौरान उन्होंने न सिर्फ दलित प्रधान के घर उसके बेटे के साथ रोटी खाई बल्कि रात भी यहीं गुजारी। उस समय केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी। तब उन्होंने इस गांव का कायाकल्प करने और तिलहर को एक आदर्श गांव बनाने का वादा किया था, लेकिन सात साल बीत जाने के बाद भी गांव की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। दलित प्रधान जलवर्षा से राहुल का किया गया वादा उसकी चिता के साथ ही भस्म हो गया।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए सभी राजनीतिक दल कमर कस चुके हैं। इसी कड़ी में सभी पार्टियां दलितों को लुभाने में जुटी हैं। धम्म चेतना यात्रा के जरिये जहां भाजपा ने दलितों को साधने का काम किया वहीं कांग्रेस ने अपनी पुरानी नींव को पुख्ता करने के लिए दलित चेतना यात्रा के जरिये दलितों में पैठ बनाने की कोशिश की। बसपा तो दलितों के सहारे ही अपनी नैय्या पार लगाती रही है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का दलित प्रेम किसी से छुपा नहीं है। कभी वो उनके गांव जाते हैं तो कभी उनके साथ खाना खाते हैं, कभी उनके घर रात गुजारते हैं और कभी उनकी आवाज बनकर उनके लिए न्याय मांगते हैं। मगर दलितों को लेकर अब तक उनकी राजनीति उस छात्र नेता की तरह ही नजर आई है जो छात्रों के बीच अपनी पैठ बढ़ाने के लिए डींगे हांककर चुनाव तो जीत जाता है मगर इसके बाद वह उनके बीच से ही गायब हो जाता है। उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता इस बात से भी जाहिर होती है कि वे पहले बिना सोचे समझे समस्या को लपक लेते हैं और बाद में उससे पल्ला झाड़ लेते हैं।
श्रावस्ती के दलित बहुल गांव तिलहर में जब वो पहुंचे थे तो उन्होंने इस गांव से अपना नाभिनाल संबंध बनाने का वादा किया था लेकिन उनकी घोषणाएं और वादा दोनों थोथी साबित हुर्इं। गांव की तत्कालीन प्रधान जलवर्षा उनके वादों के पूरा होने की उम्मीद लिए जिंदगी की जंग हार गर्इं। राहुल के दौरे के बाद साढ़े चार वर्ष तक केंद्र में कांग्रेस सत्तारूढ़ रही, फिर भी इस गांव की सूरत बदल नहीं पाई। गांव की हालत बद से बदतर हो गई है। श्रावस्ती जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर इस गांव का ओपिनियन पोस्ट संवाददाता ने दौरा किया तो गांव के लोगों में कांग्रेस और राहुल गांधी के प्रति एक अजीब गुस्सा और क्षोभ देखने को मिला। कुन्ने प्रसाद, धर्मेंद्र प्रसाद, मायावती और कलावती ने बताया कि राजनीतिक स्टंटबाजी और झूठे वादों की वजह से ही कांग्रेस 27 साल से यूपी में बेहाल पड़ी है। होश में आने के लिए अभी भी झूठ और फरेब का ही सहारा लिया जा रहा है।
राहुल गांधी के तिलहर आने की यादें आज भी गांव वालों के जेहन में ताजा हैं मगर गांव की सूरत न बदलने का मलाल भी उनकी जुबान पर है। अपने मड़हे में बैठे तत्कालीन ग्राम प्रधान जलवर्षा के पुत्र छेदीराम पासवान से जैसे ही राहुल गांधी के आगमन को लेकर पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘यह हमारा सौभाग्य है कि वे हमारे मड़हे में आए, रात गुजारी, हमारे घर भोजन किया और अपनी यादगार तस्वीरें भी हमें भेजीं।’ जहां राहुल ने चौपाल लगाई थी, जिस नल पर स्नान किया था, जहां भोजन किया था, जहां शौच को गए थे उन स्थानों को दिखाते हुए छेदीराम ने बताया, ‘वे यहां शाम पांच बजे आए थे और दूसरे दिन 11 बजे तक यहां रहे। गांव में आते ही चारपाई पर बैठ गए और पूछा कि कोई हमें पहचानता है? हम लोग तो पहचान नहीं पाए। गांव के युवक बाबादीन ने उन्हें पहचान कर कहा कि आप राहुल गांधी हैं। उन्होंने रात में इसी मड़हे में चौपाल लगाकर खेती किसानी व रहन-सहन के बारे में हम लोगों से जानकारी ली। वे दोबारा आने का वादा कर गए थे।’ बातचीत के दौरान छेदीराम की जुबान पर गांव की तरक्की न होने की पीड़ा आ गई। उन्होंने कहा, ‘तत्कालीन ग्राम प्रधान उनकी मां जलवर्षा से किया गया वादा पूरा नहीं हुआ। मां विकास की उम्मीद लिए जिंदगी की जंग 2011 में हार गर्इं।’ राहुल गांधी जिस दिन यहां आए थे उसकी अगली सुबह यानी 24 सितंबर को उन्होंने पूरे गांव का दौरा किया था। गांव की खड़ंजे की सड़क को पक्की करवाने की बात उन्होंने कही थी। श्रावस्ती से कांग्रेस नेता विनय कुमार पांडेय 2009 से 2014 तक सांसद रहे लेकिन अपने पूरे कार्यकाल में उन्होंने भी इस गांव की सुध नहीं ली और दिल्ली लौटने के बाद राहुल गांधी भी सभी वादे भूल गए।
राधेश्याम, राजकुमार, रामशंकर ने बताया कि यहां बिजली केवल तीन घंटे आती है। कक्षा आठ में पढ़ रहे राहुल नाम के एक लड़के से जब दो का पहाड़ा पढ़ने के लिए कहा तो उसने हमसे यही कहा कि उसे कुछ मालूम नहीं। वह तो केवल मिड-डे मील के लिए स्कूल जाता है। तिलहर में दलित प्रधान के घर राहुल गांधी की दस्तक पूरे देश में मीडिया की सुर्खियां बनी। मगर वही दलित महिला प्रधान जब आर्थिक तंगी और बीमारी से जूझ रही थी तो किसी ने खोज खबर नहीं ली। 2011 में उनकी मौत हो गई। उनके पति मूने प्रसाद की आंखें राहुल गांधी के दोबारा आने के वादे के इंतजार में पथरा गई हैं।
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