राहुल गांधी कब और कहां क्या बोलेंगे, किसके किसके घर जाना है, किस-किस से मिलना है- ये सब प्रशांत किशोर की ब्लैक टी-शर्ट वाले लड़के और लड़कियां ही तय करते हैं।

प्रशांत किशोर का अंदाज और रणनीति स्पष्ट है- कुछ बड़ा करो या घर जाओ। 39 साल के कांग्रेस के रणनीतिकार का यही अंदाज है। फिर वह 2014 में मोदी की जीत हो, या बिहार में नीतीश कुमार का विजयी उद्घोष, या फिर अब कांग्रेस को यूपी सत्ता पर काबिज कराने की बात हो।

राहुल गांधी की इस किसान यात्रा के पीछे कांग्रेस नहीं बल्कि प्रशांत किशोर का दिमाग है। यूपी के कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच इन दिनों ब्लैक टी-शर्ट वाले लड़के और लड़कियों की खूब चर्चा हो रही है। जब भी कोई मुसीबत आती है पार्टी के लोगों के लिए ये संकटमोचक बन जाते हैं। प्रशांत किशोर की टीम मिलकर यूपी के सभी 75 जिलों का दौरा कर चुकी है। सबसे पहले लखनऊ के रमाबाई मैदान में जुलाई महीने में राहुल गांधी का रैम्प शो हुआ। जो भारी बारिश के बावजूद हिट रहा और वाहवाही मिली प्रशांत किशोर और उनकी टीम को। कांग्रेस नेताओं को भी ब्लैक टी-शर्ट वाले पीके की टीम के दर्शन पहली बार यहीं हुए। लेकिन राहुल की किसान यात्रा में हुए कारनामे के बाद से तो अब सभी इनका लोहा मानने लगे हैं।

खाट सभा से लेकर मीडिया मैनेजमेंट तक सब पीके की टीम के हवाले है। कहां और कितनी खाट लगेंगी, किसान क्या सवाल पूछेंगे, किस-किस को खाट पर बैठना है- यह सब प्रशांत के लोग ही तय करते हैं। माईक से लेकर साउंड सिस्टम तक, लाईट से लेकर कुर्सियों तक, ‘27 साल-यूपी बेहाल’ वाले होर्डिंग और बैनर- ये सब लगाने का काम इनके ही जिम्मे है। राहुल के इस सफर के एक-एक पल की तस्वीरें और वीडियो लेने का काम भी इन्हीं का है। पीके की टीम ने मीडिया और कांग्रेस नेताओं का अलग-अलग ग्रुप बना रखा है जिसे लगातार ये फोटो और वीडियो भेजे जाते हैं। राहुल गांधी और कांग्रेस के ट्विटर हैंडल से इन्हें ट्वीट भी किया जाता है। और तो और फेसबुक पर भी लगातार पोस्ट किया जाता है।

प्रशांत किशोर के इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमिटी के करीब 300 लोग राहुल गांधी की किसान यात्रा को मैनेज कर रहे हैं। हर रात को पीके, उनकी टीम और राहुल गांधी के बीच मीटिंग होती है। आज कहां क्या गड़बड़ी हुई? कल क्या-कैसे करना है? इन सभी बातों पर चर्चा होती है। देवरिया में राहुल के जाते ही जैसे ही लोग खाट लेकर अपने घर को चले गए, पीके की टीम डैमेज कंट्रोल में जुट गयी। अगली सभा कुशीनगर में थी। खुद पीके खाट संभालने में जुट गए। माईक से घोषणा हुई- आप सभी खाट न ले जाएं। यही राहुल जी की अगली सभा में भी लगेंगी।

इसके बाद पीके की टीम हर खाट सभा में खटिया बचाने में कामयाब रही। राहुल गांधी कब बस से सफर करेंगे, या फिर सड़क संकरी होने पर पैदल चलेंगे, इसका फैसला भी पीके की टीम ही करती है। राहुल जब किसी दलित के यहां जाते हैं, प्रशांत की टीम वहां पहले से पहुंच कर सारा इंतजाम अपने हाथ में ले चुकी होती है। राहुल के लिए चाय किस घर से आएगी और खाना कौन देगा- सब कुछ पीके की इस टीम के ही हवाले रहता है।

1989 से कांग्रेस उत्तर प्रदेश में वापसी की राह देख रही है। चुनाव के छह महीने पहले उसने संगठन के ऊपरी स्तर पर बदलाव कर चर्चा में जगह पा ली है। अब उसने जमीन पर जगह पाने का प्लान बनाया है।