वीरेंद्र नाथ भट्ट।

उत्तर प्रदेश में 27 साल (1989 से) सत्ता से निर्वासन से बेहाल कांग्रेस को जीवन देने की कोशिश में कांग्रेस के युवराज की ‘27 साल यूपी बेहाल’ यात्रा का प्रारम्भ छह सितम्बर को देवरिया जिले में खाट लूट से हुआ। इस यात्रा को किसान यात्रा का नाम दिया गया है। यानी पहले ही दिन कांग्रेस की खाट खड़ी हो गयी। किसी तरह राहुल गांधी ने सलाहकारों की मदद से मामले को संभाला और इस घटना का भी केंद्र सरकार पर हमला करने के लिए इस्तेमाल किया। राहुल ने कहा, ‘किसान खाट उठा ले गए तो उन्हें चोर कहा जा रहा है लेकिन विजय माल्या हजारों करोड़ लेकर देश से बाहर भाग गया उसे ‘डिफाल्टर’ कहा जा रहा है। यात्रा के पहले ही दिन गड़बड़ हुई तो तीसरे दिन हनुमानजी का आशीर्वाद लेने अयोध्या पहुंच गए। अयोध्या में हनुमानगढ़ी के एक पुजारी ने कहा, ‘जो लोग कल तक राम के अस्तित्व को नकारते थे और रामसेतु को मिथक बताते थे, आज हनुमान मन्दिर में नाक रगड़ रहे हैं।’

राहुल गांधी को उत्तर प्रदेश में लोन रेंजर या अकेला सिपाही कहा जा रहा है। राहुल गांधी की लगभग एक माह लम्बी यात्रा उत्तर प्रदेश के 250 से अधिक विधानसभा क्षेत्र और 80 में से 55 लोकसभा सीटों से होकर गुजरेगी। 2012 के विधान सभा में प्रचार के दौरान लखनऊ में राहुल गांधी ने समाजवादी पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र को झूठ का पुलिंदा करार देते हुए जनसभा में फाड़ा था जिसका जिक्र बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लोकसभा में अपने एक भाषण में किया था। इस बार राहुल भूले से भी समाजवादी पार्टी व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव या बहुजन समाज पार्टी और दल की मुखिया मायावती का नाम नहीं ले रहे हैं। यह संयोग है कि अब तक मायावती ने उत्तर प्रदेश में अपनी आगरा, आजमगढ़ और इलाहाबाद की तीन बड़ी जनसभाओं में केवल नरेंद्र मोदी और बीजेपी को ही अपने निशाने पर रखा है और अंत में एक दो वाक्य कांग्रेस के बारे में भी।

यों तो कांग्रेस 78 साल की शीला दीक्षित को प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट कर रही है लेकिन राहुल की जनसभाओं में उनका भी जिक्र नहीं होता और न ही कांग्रेस के किसी पोस्टर में उनको स्थान मिल सका है। शीला जी सभाओं में अपनी ब्राह्मण पहचान को जताना नहीं भूलती हैं और लगभग हर सभा में जनता को बताती हैं कि उनका विवाह एक ब्राह्मण परिवार में हुआ है इसलिए वो भी ब्राह्मण हैं।

राहुल के निशाने पर केवल मोदी हैं। बीजेपी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित नहीं किया है इस वजह से भी राहुल के हमलों का केंद्र बिंदु नरेन्द्र मोदी हैं। एक साल पहले एक लाइन के चुभते हुए नारे से मोदी पर हमले का सिलसिला आज भी जारी है- सूट बूट की सरकार, दस लाख का सूट, मोदी फेयर एंड लवली क्रीम से अपने उद्योगपति मित्रों के पाप धो रहे हैं। इसके अलावा बेहाल यात्रा में एक नया नारा गूंजा- ‘जनता त्रस्त है मोदीजी मस्त’।

राजनीतिक टीकाकार डॉ. अनिल कुमार वर्मा का कहना है ‘यह अच्छी बात है कि राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की खोई हुई जमीन को वापस पाने का प्रयास कर रहे है और वे अपने पोलिटिकल एजेंडा को भी जाति के दायरे की बजाय वर्ग के फ्रेम में लाने का प्रयास कर रहे है और इसीलिए वे किसान कर्ज माफी और बिजली बिल माफी का मुद्दा जोर शोर से उठा रहे हैं। यदि कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में बीजेपी के आधार में सेंध लगानी है तो उसे बीजेपी के ग्रामीण समर्थन आधार पर चोट करनी होगी और यही राहुल गांधी कर रहे हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को उत्तर प्रदेश में शहरी क्षेत्र के बजाय ग्रामीण क्षेत्रों में दो प्रतिशत अधिक वोट मिला। यह बीजेपी के इतिहास में पहली बार हुआ था।’ डॉ. वर्मा कहते हैं कि ‘सेंटर फॉर स्टडी आॅफ डेवलपिंग सोसाइटीज द्वारा इस वर्ष जुलाई में ग्रामीण क्षेत्रों में किये गए ट्रैकर पोल में बीजेपी को 29 प्रतिशत समर्थन हासिल है और कांग्रेस चौथे नंबर पर है। शायद यही वजह है कि राहुल गांधी लगातार बीजेपी और नरेन्द्र मोदी की साख पर चोट करने का प्रयास कर उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव का एजेंडा तय करने का प्रयास कर रहे हैं।’

उत्तर प्रदेश में लगभग तीन दशक से कोमा में पड़ी कांग्रेस एक बार फिर से चलने का प्रयास कर रही है। लेकिन कांग्रेस के लोगों को अहसास है कि पार्टी को उत्तर प्रदेश की राजनीति में पुन खड़ा करना बहुत बड़ी चुनौती है और राहुल गांधी की इस यात्रा से कोई चमत्कार नहीं होने वाला है। राहुल गांधी की यात्रा के साथ चल रहे कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘हमें मालूम है 2017 में कांग्रेस की सीटों में कोई इजाफा नहीं होने वाला है लेकिन इस बार हम कुछ नया करने की कोशिश कर रहे हैं। लोग हमें भले ही वोट देने लायक न समझें लेकिन वो हमारी बात सुन तो रहे हैं। प्रशांत किशोर की टीम पर कुछ ज्यादा ही निर्भरता से कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ता और नेता दोनों ही असहज महसूस कर रहे हैं।’
राहुल गांधी की यात्रा को लेकर भले ही लम्बे चौड़े दावे किये जा रहे हों लेकिन वास्तव में कांग्रेस की कुल इच्छा उत्तर प्रदेश के लड़ाई में अपनी पहचान बनाए रखने की है ताकि उसे इतनी सीटें मिल जाएं कि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में वह समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी से कोई समीकरण बिठा कर सत्ता में या सत्ता के करीब आ सके। कभी राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अच्छा लड़का बताया था। अब अखिलेश यादव ने भी राहुल गांधी को अच्छा लड़का बताया और यात्रा का स्वागत करते हुए कहा कि यदि वे इसी तरह प्रदेश में आते रहे तो उनसे दोस्ती भी हो सकती है और दो अच्छे लोग मिल जाएं तो इसमें क्या दिक्कत है।

हालांकि अखिलेश यादव के बयान के एक घंटे के भीतर दिल्ली में नौ सितम्बर को कांग्रेस के प्रवक्ता ने समाजवादी पार्टी से किसी तरह के चुनावी तालमेल की संभावना का खंडन किया। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव ख्याली पुलाव ना पकाएं, सपा से कांग्रेस कोई गठबंधन नहीं करने वाली है। प्रदेश के राजनीति के गलियारों में इसका यही अर्थ निकाला जा रहा है कि कांग्रेस चुनाव के पूर्व दोस्ती की बात कर चुनाव के बाद की दोस्ती की संभावना पर समस्या से बचना चाहती है और चुनाव में वह सपा विरोधी मुस्लिम वोट को भी अपने पाले में करना चाहती है।

राहुल गांधी की अयोध्या यात्रा के दौरान हनुमान गढ़ी के सागारिया पट्टी के महंत ज्ञान दास से बंद कमरे में एक घंटे बात हुई। दोनों ने ही बातचीत का ब्योरा देने से इनकार किया लेकिन महंत ने जो कहा उसने उत्तर प्रदेश की 2017 के चुनाव बाद की राजनीति पर से पर्दा अवश्य हटा दिया। अखिलेश यादव के करीबी महंत ज्ञान दास ने कहा की उन्होंने राहुल गांधी को आशीर्वाद दिया। ‘राहुल गांधी एक गंभीर, अच्छे व्यक्ति हैं लेकिन अखिलेश यादव से अच्छा कोई नहीं है। ज्यादा चौंकिए मत, अखिलेश यादव के आगे सब बेकार हैं।’

राजनीतिक समीक्षक अम्बिकानंद सहाय कहते हैं कि कांग्रेस के सामने अब अस्तित्व का संकट है। लोकसभा में सौ साल से भी ज्यादा पुरानी पार्टी चव्वालीस सीटों पर सिमट गयी है। अब इससे ज्यादा बुरा हाल और क्या होगा? कांग्रेस को लोकसभा चुनाव के दो साल बाद अब शिद्दत से अहसास हो रहा है कि उसकी जमीन खिसक चुकी है। और जमीन वापसी का संघर्ष दिल्ली में तो होगा नहीं। उसके लिए तो उत्तर प्रदेश और बिहार की ही खाक छाननी होगी तो राहुल गांधी अपनी दादी और परदादा की जमीन को वापस पाने के लिए गंगा सरयू तीरे घूम रहे हैं… और अगर यहां कुछ सहारा मिला तो गंगा जमुना तहजीब का सहारा मिलने की उम्मीद बनती है और शायद कांग्रेस का पुराना सामाजिक समीकरण ‘ब्राह्मण-दलित- मुस्लिम’ फिर से कांग्रेस के पीछे लामबंद हो।

अयोध्या के निवासी और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के नेता हाजी महबूब कहते हैं कि 1978 में देश और प्रदेश में जनता पार्टी की हुकूमत के दौर में इंदिरा गांधी अयोध्या आयी थीं और उन्होंने हनुमान गढ़ी मंदिर के दर्शन किये थे। तब अयोध्या के संतों ने उनसे राम जन्मभूमि स्थान के दर्शन का आग्रह किया था जिसे इंदिरा गांधी ने ठुकरा दिया था और दो टूक जवाब दिया था कि ‘मैं हनुमान गढ़ी मंदिर का ही दर्शन करूंगी’। इंदिरा गांधी ने तब राम जन्मभूमि स्थान का दर्शन न करने की कोई वजह नहीं बतायी थी। राहुल गांधी ने भी यही किया और राम जन्मभूमि स्थान नहीं गए। लेकिन हाजी महबूब को इस बात का मलाल है कि फैजाबाद के कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने राहुल गांधी की किसी भी मुसलमान नेता से मुलाकात नहीं कराई। राहुल गांधी मुसलमान नेताओं से दूर ही रहे जिससे शक पैदा होता है कि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस एक बार फिर वही गलती करना चाहती है जो 1989 में राजीव गांधी कर चुके हैं। उनको यह साफ तौर पर समझ लेना चाहिए कि अब जमाना बदल चुका है और किसी भी एक फिरके के समर्थन की बुनियाद पर उत्तर प्रदेश जैसे बड़े प्रदेश की सियासत नहीं की जा सकती। यदि राहुल गांधी के मन में सॉफ्ट हिन्दुत्व जैसी कोई बात है तो उससे कांग्रेस को कुछ हासिल नहीं होने वाला है।

राजनीतिक समीक्षकों का यह भी मानना है की राहुल गांधी कितनी भी मेहनत कर लें, पर सवाल है कि क्या कांग्रेस 2017 के चुनाव में राहुल की किसान यात्रा में उमड़ रही भीड़ को वोट में बदल पाएगी? क्योंकि जमीनी स्तर पर कांग्रेस के पास न तो नेता हैं, न कार्यकर्ता।
संतो और विहिप की प्रतिक्रिया

स्वामी का दर्शन किये बिना सेवक-सखा मनोकामनाओं की सिद्धि कैसे कर सकते हैं। राम जन्मभूमि के दर्शन के बिना यह दर्शन अपूर्ण है। राम जन्मभूमि न्यास के सदस्य और महंत कमल नयन दास ने कहा, ‘दर्शन पूजन प्रत्येक हिन्दू का अधिकार है लेकिन वह शास्त्र सम्मत होना चाहिए तभी सिद्धि प्राप्त होती है।’ महंत ने कहा कि ‘अयोध्या की रक्षा हनुमान जी करते आ रहे हैं जिसका आशीर्वाद भगवान राम ने उनको दे रखा है। इसलिए कहा गया है ‘चारों युग प्रताप तुम्हारा’। उनकी शरण में जाने वालों की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। लेकिन हनुमान जी की कृपा इस पर निर्भर करती है कि दर्शन करने वाले का मनोभाव उनके आराध्य राम के प्रति कैसा है।’

महंत सुरेश दास ने कहा कि ‘राहुल गांधी की यात्रा राजनीति से प्रेरित है और अयोध्या दर्शन भी उसी का एक अंग है। हनुमान जी को प्रसन्न करने से पूर्व उनके स्वामी को भूल गए।’
अयोध्या में विश्व हिन्दू परिषद के प्रवक्ता शरद शर्मा ने कहा कि ‘राहुल गांधी का दर्शन और उनकी सिद्धि अपूर्ण ही रहेगी। हनुमाजी ने स्वयं ही कहा है कि हमारे आशीर्वाद से पूर्व हमारे आराध्य श्रीराम को प्रसन्न करने वाला भक्त ही हमारे आशीर्वाद का अधिकारी बनता है। कांग्रेस के उपाध्यक्ष तुष्टिकरण में इतना लिप्त रहे कि उन्हें शास्त्र सम्मत विषय दिखाई नहीं दिया या उन्होंने रामलला का दर्शन मुस्लिम वोट प्राप्त करने के लिए नहीं किया।’

विवादित स्थल न जाकर अच्छा किया : मुस्लिम नेता
बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी कहते हैं कि राहुल गांधी का अयोध्या जाना सामान्य बात है। कोई भी जा सकता है, हम भी जाते हैं। राहुल गांधी विवादित स्थल नहीं गए और किसी भी नेता को विवादित जगह पर नहीं जाना चाहिए। लेकिन अयोध्या का सारा झगड़ा तो कांग्रेस ने ही लगाया था। एक फरवरी 1986 को फैजाबाद जिला जज के आदेश पर ताला खोला गया। कोर्ट के आदेश के तीन दिन पहले इंटेलिजेंस ब्यूरो ने रात में कोर्ट का दफ्तर खुलवा कर राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद प्रकरण से सम्बंधित सारी फाइलों को जांचा परखा।’

जिलानी का आरोप है कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह और केंद्रीय राज्य आतंरिक सुरक्षा मंत्री अरुण नेहरु ने मिलकर बाबरी मस्जिद का ताला खोलने की साजिश रची थी। एक फरवरी 1986 को फैजाबाद जिला जज के आदेश के तुरंत बाद बाबरी मस्जिद का ताला खोल दिया गया। उत्तर प्रदेश सरकार ने जिला जज के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती देने की भी जरूरत नहीं समझी। जब बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच मेंरिट याचिका दाखिल की तो कांग्रेस सरकार के वकील ने याचिका का विरोध किया और कोर्ट से कहा कि याचिका मेन्टेनेबल नहीं है लिहाजा इसे खारिज कर दिया जाए। मामले की अगली सुनवाई में सरकारी वकील की गैर मौजूदगी में कोर्ट ने यथास्थिति का आदेश जारी कर दिया। प्रदेश सरकार के वकील ने इसके बाद भी याचिका का विरोध जारी रखा और कोर्ट में अपना पक्ष रखने की गुजारिश की लेकिन कोर्ट ने उनका आवेदन स्वीकार नहीं किया।

बाबरी मस्जिद आन्दोलन से जुड़े एक अन्य नेता के कहा कि ‘मामला सिर्फ यहीं नहीं रुका। 1989 के लोकसभा चुनाव के एक माह पहले अक्टूबर में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने विश्व हिन्दू परिषद के दो बड़े नेताओं अशोक सिंघल और विष्णुहरि डालमिया के साथ समझौता किया जिसके तहत विश्व हिन्दू परिषद को बाबरी मस्जिद के सामने साक्षी मंदिर के निकट मंदिर का शिलान्यास करने की अनुमति प्रदान की गई।’ विश्व हिन्दू परिषद की वेबसाइट के अनुसार केंद्र और राज्य सरकार की अनुमति से विश्व हिन्दू परिषद के बिहार के प्रांतीय संगठन मंत्री कामेश्वर चौपाल की अध्यक्षता में दस नवम्बर को शिलान्यास का कार्यक्रम संपन्न हुआ।’

उत्तर प्रदेश पुलिस के तत्कालीन महानिदेशक आर पी जोशी ने तब कहा था, ‘यह मेरी जानकारी में था कि शिलान्यास हाई कोर्ट के आदेश का उल्लंघन था और विवादित जमीन पर किया जा रहा था। लेकिन लखनऊ और दिल्ली से उच्च स्तर से आदेश था कि शिलान्यास होना है।’ जोशी ने यह भी कहा था कि वो कुछ नहीं कर सकते थे क्योंकि यह सरकार का फैसला था।

1989 के लोकसभा चुनाव के समय फैजाबाद-अयोध्या के बीच अपनी जनसभा में राजीव गांधी ने जोशीला भाषण देते हुए कहा था, ‘हम जीतें या हारें, हम पूरे देश में रामराज्य लाएंगे।’ इस घटना के 26 साल बाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने जनवरी 2016 में जारी अपनी पुस्तक ‘द टरबुलेंट इयर्स 1980-96’ में राम जन्मभूमि का ताला खोलने के निर्णय को राजीव गांधी द्वारा की गयी गंभीर गलती (एरर आॅफ जजमेंट ) करार दिया और इस निर्णय को परम विश्वासघात (एब्सल्यूट परफिडी) की संज्ञा दी।