मतदान के सिर्फ तीन हफ्ते पहले वह अमेठी पहुंची थीं। नतीजा अनुकूल नहीं था। पर हौसला बढ़ाने वाला था। फिर तो स्मृति ईरानी ने जैसे अमेठी में डेरा डाल दिया। देश की शायद ही कोई ऐसी सीट हो जहां विजयी प्रत्याशी का पराजय के बाद भी उसका प्रतिद्वन्दी इस कदर पीछा कर रहा हो। पराजित प्रतिद्वंद्वी की खुशकिस्मती से मंत्रिपद और केंद्र-प्रान्त की सरकार सब कुछ साथ और पास है। इच्छाशक्ति और अगले चुनाव में हिसाब चुकता करने के संकल्प-परिश्रम ने उनका काम आसान और जनता को नजदीक किया है। बेशक स्मृति का अमेठी का साथ बहुत पुराना नहीं है। गांधी परिवार की तुलना में तो यह कहीं ठहरता ही नहीं। पर उन्होंने कम वक्त में अमेठी की नब्ज को सही तरीके से परखा है। वहां की जरूरतों को समझा है। और ऐसी जगह अपनी ऊर्जा लगाई है जो लोगों को सीधा लाभ दे रही है तो साथ ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़कर उनकी राजनीतिक जमीन मजबूत कर रही है।
भारी भरकम घोषणाओं की जगह वह ऐसे काम कर-करा रही हैं, जिससे किसानों-मजदूरों को सीधे लाभ मिल सके। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के तहत अमेठी के पच्चीस हजार पुरुषों और इतनी ही महिलाओं को उन्होंने निशुल्क बीमा का लाभ दिलाया। एक लाख फलदार वृक्षों का निशुल्क वितरण कराया। बाढ़ से बचाव के लिए हलियापुर में पिपरी स्थान के लिए बांध की स्वीकृति और नदी के बाएं किनारे कटाव से बचाव के लिए लगभग दो हजार मीटर लम्बी लांचिंग एप्रिन व परकुपाइन स्टड का इंतजाम कर उन्होंने आसपास की आबादी को बड़ी राहत दी। गौरीगंज में खाद रैंक प्वाइंट की व्यवस्था ने किसानों को काफी सुविधा मिली है। गौरीगंज स्टेशन पर आरक्षण, टिकट और पूछताछ काउंटरों जैसे काम देखने में भले मामूली लगें लेकिन यात्रियों को इसका सीधा लाभ मिला है। सुल्तानपुर-अमेठी-ऊंचाहार रेल लाइन की बजट स्वीकृति का लम्बा इन्तजार स्मृति ने खत्म कराया है। वह बछरांवा से प्रतापगढ़ तक रेल लाइन के दोहरीकरण और विद्युतीकरण की भी व्यवस्था करा सकी हैं। कृषि विज्ञान केंद्र, केंद्रीय विद्यालय ताला, महिला महाविद्यालय संग्रामपुर और अनेक अस्पतालों में संसाधनों के विस्तार सहित अनेक कामों की लम्बी सूची उनके समर्थक पेश करते हैं।
भाजपा के अमेठी के प्रभारी डॉ. एमपी सिंह के अनुसार, ‘स्मृति जी ने चुनाव के समय जो वायदे किये थे, उन्हें पराजित होने के बाद भी अथक परिश्रम करके पूरे करने में जुटी हैं।’ डॉ. सिंह के अनुसार, ‘उनकी पार्टी और सरकार राजनीतिक फायदे के लिए हवाई घोषणाओं की जगह अमेठी और वहां की आबादी की जरूरतों के मुताबिक जमीनी कार्य कर रही है।’ राहुल गांधी और कांग्रेस के अमेठी से सौतेले सलूक के आरोपों को खारिज करते हुए वह कहते हैं, ‘राजीव गांधी पेट्रोलियम संस्थान को 360 करोड़ एनडीए सरकार ने आवंटित किये। टीकरमाफी के जिस सूचना प्रौद्यागिकी संस्थान में अमेठी के छात्रों के लिए कोई गुंजाइश नहीं थी, वहां अब भीम राव आंबेडकर विश्विद्यालय की सेटलाइट शाखा विभिन्न पाठ्यक्रमों से स्थानीय छात्रों को लाभान्वित कर रही है।’
गांधी परिवार का फिलवक्त अमेठी में ऐसे दमदार प्रतिद्वंद्वी से सामना हुआ है जिसके पास उन जैसी राजनीतिक विरासत और बड़ा नाम तो नहीं, पर प्रतिद्वंद्वी को छकाने का भरपूर कौशल है। दृृढ़ता भी है और लक्ष्य के लिए डटे रहने का संकल्प भी। आरोपों के जबाब हैं तो सवालों के तीर चलाने का हुनर भी। वह भीड़ खींचती हैं और उसे बांधे रखने का उनमें सलीका है। कांग्रेस की सत्ता से बेदखली और दुर्गति के बीच उपेक्षित होती अमेठी अब सिर्फ राहुल गांधी और उनके परिवार के नाते सुर्खियां नहीं पाती। स्मृति की चुनौती और उनके तेजाबी हमले उसके रंग को गाढ़ा करते हैं।