सुनील वर्मा

ये जो हालात हैं ये सब तो सुधर जाएंगे,
पर कई लोग निगाहों से उतर जाएंगे।

चार दिसंबर को आम आदमी पार्टी के नेता कुमार विश्‍वास का ये ट्वीट उन तमाम लोगों पर निशाना है जो उन्‍हें पार्टी में हाशिये पर पहुंचाने की कोशिश में लगे हैं। कुमार विश्‍वास ‘आप’ के उन नेताओं में शामिल हैं जिन्‍होंने पार्टी की बुनियाद र‍खी थी। अपनी साफगोई तथा व्‍यंग्यात्‍मक बयानों के कारण कई बार वे पार्टी नेताओं के निशाने पर भी आ चुके हैं तो कई बार पार्टी ने उन्‍हें बतौर संकट मोचक भी इस्‍तेमाल किया है। पिछले कुछ दिनों से कुमार विश्‍वास फिर एक बार पार्टी के अंदर से लेकर बाहर तक विवादों भरी सुर्खियों में हैं।

कभी वे पार्टी से अलग हुए लोगों की ‘आप’ में वापसी को लेकर सुर्खियों में आते हैं तो कभी आरक्षण आंदोलन के लिए एक खास व्‍यक्ति को दोषी बताने पर अंबेडकरवादियों के निशाने पर आ जाते हैं। कुमार विश्‍वास इन दिनों अपने उस भाषण को लेकर सबसे बड़े विवाद पर चौतरफा घिरे हैं जिसमें उन्‍होंने कहा था- ‘एक व्यक्ति ने आकर आरक्षण की शुरुआत कर देश को जातियों में बांटने की कोशिश की, इससे पहले लोगों में एकता थी।’ यह बयान विश्‍वास ने दो अक्‍टूबर को राजस्‍थान में कार्यकताओं की एक रैली में दिया था लेकिन इस पर विवाद पिछले दिनों तब शुरू हुआ जब सोशल मीडिया पर इस भाषण की क्लिप वायरल होने लगी। इस क्लिप को किसने वायरल कराया और इसका मकसद क्‍या है इस पर न तो सीधे कुमार विश्‍वास कुछ बोल रहे हैं न ही उनकी पार्टी के लोग। अलबत्ता विवादों से घिरे कुमार के खिलाफ उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में समता सैनिक दल के जिलाध्‍यक्ष संजीव कुमार गौतम की शिकायत पर कथित रूप से डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के खिलाफ आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग करने के आरोप में आईपीसी की धारा-298 के तहत एफआईआर दर्ज कराई गई है। दलित समाज के लोगों ने उनके घर पर भी धावा बोला लेकिन वे अपने घर पर नहीं मिले।
हालांकि इस पूरे मामले में कुमार विश्वास ने कहा है कि उन पर लगे आरोप झूठे हैं। उन्होंने कभी भी बाबा साहब अंबेडकर का नाम नहीं लिया। उनके खिलाफ यह राजनीतिक साजिश है। अगर उनके भाषण से किसी की भावनाएं आहत हुई हैं तो वह माफी मांगते हैं। लेकिन उनकी माफी से ये मामला जल्‍दी ठंडा होगा ऐसा दिखता नहीं है। क्‍योंकि विश्वास की आरक्षण पर इस टिप्पणी को मुद्दा बनाकर भाजपा सांसद और अनुसूचित जाति व जनजाति संगठनों के अखिल भारतीय परिसंघ के अध्यक्ष डॉ. उदित राज ने इसे बाबा साहब का अपमान बताते हुए सीधे आप संयोजक अरविंद केजरीवाल को घेर लिया है। उन्‍होंने केजरीवाल से इस मामले में अपना रुख स्पष्ट करने के लिए कहा है। उदित राज ने 26 दिसंबर को परिसंघ की ओर से रामलीला मैदान में होने वाली रैली में इस मुद्दे को उठाकर कुमार विश्‍वास, अरविंद केजरीवाल तथा आम आदमी पार्टी को घेरने का ऐलान कर दिया है।
केजरीवाल और ‘आप’ के गले की हड्डी बन चुका ये मामला पार्टी नेताओं के गले में इस कदर फंस चुका है कि न तो उगलते बन रहा है न निगलते। हालांकि इस बारे में पार्टी के वरिष्‍ठ नेता आशुतोष से बातचीत होती है तो वे कुमार विश्‍वास के बयानों से कन्‍नी काटते हुए कहते हैं- ‘कुमार विश्‍वास के विचारों को पार्टी के विचारों से नहीं जोड़ा जाना चाहिए ये उनकी निजी राय हो सकती है। किसी भी पार्टी में किसी नेता को अपने व्‍यक्तिगत विचार प्रकट करने का हक होता है। हालांकि विश्‍वास ने बाबा साहब के ऊपर ये बात नहीं कहीं, इतना हम कह सकते हैं। जहां तक आम आदमी पार्टी का सवाल है हम आरक्षण व्‍यवस्‍था के खिलाफ बिल्‍कुल नहीं हैं।’ आम आदमी पार्टी के प्रवक्‍ता और केजरीवाल के करीबी संजय सिंह भी कुमार विश्‍वास के आरक्षण वाले बयान से बचते हुए कहते हैं, ‘राजनीतिक साजिश के तहत कुमार विश्‍वास के आरक्षण वाले भाषण को आम आदमी पार्टी से जोड़ा जा रहा है। सच्‍चाई यह है कि हम आरक्षण का उस वक्‍त तक सर्मथन करते हैं जबतक दलित और पिछड़े वर्ग के अंतिम व्‍यक्ति को उसका हक नहीं मिल जाता।’
आरक्षण पर कुमार विश्‍वास के बयान के निहितार्थ कुछ भी हों लेकिन आरक्षण समर्थकों और बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर समर्थकों की निगाहें कुमार से लेकर ‘आप’ पर भी टेढ़ी हो रही हैं। यही कारण है कि हर रोज पार्टी के नेता इस मामले में अपनी सफाई दे रहे हैं जिसके कारण हर दिन कुमार विश्‍वास के लिए पार्टी के लोगों में गुस्‍सा बढ़ रहा है।
वैसे अक्‍टूबर में दिए गए कुमार के बयान पर अचानक इतने दिन बाद राजनीति गर्माने के पीछे राजनीतिक मंशाएं तो साफ नजर आती हैं, लेकिन इस राजनीति के निहितार्थ क्‍या हैं इसका खुलासा होना अभी बाकी है।
बात सिर्फ आरक्षण से जुड़े बयान की ही नहीं है। आम आदमी पार्टी में एक धड़ा मानता है कि अपनी सियासी महत्‍वाकांक्षाओं के कारण कुमार विश्‍वास अक्‍सर ऐसे हालात पैदा कर देते हैं कि जिससे लगता है कि या तो वह पार्टी में एक समानान्‍तर सत्ता स्‍थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। या फिर वे विपक्ष से मिल गए है। पार्टी के एक पदाधिकारी नाम नहीं छापने का अनुरोध करते हुए बताते हैं, ‘इन्‍हीं कारणों से कुमार पर बार-बार बीजेपी से मिलीभगत के आरोप लगते हैं। क्‍योंकि उनके बयानों से कई बार पार्टी को नुकसान और बीजेपी को फायदा होता है।’
‘आप’ के पांचवे स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में जब कुमार विश्वास ने कहा कि मैं बीते 7 महीने से नहीं बोल पा रहा हूं, तो इसका सीधा संदेश यही था कि पार्टी में न तो उनकी सुनी जा रही है और न ही शीर्ष स्तर पर उनसे कोई संवाद हो रहा है। उसी कार्यक्रम में कुमार विश्वास ने और भी कई ऐसी बातें कही थीं, जिनका स्पष्ट संकेत था कि वे अब अरविंद केजरीवाल से दो-दो हाथ करने के मूड में हैं। इसे बाद उन्होंने पार्टी कार्यालय में कार्यकर्ताओं से संवाद करते हुए कहा था कि ‘अगर कोई दूसरे दल में नहीं गया है और वापसी चाहता है या अगर किसी ने राजनीतिक दल बना भी लिया है और फिर भी विलय चाहता है तो उनकी वापसी होगी।’ उन्‍होने इशारों-इशारों में ही सुभाष वारे से लेकर अंजलि दमानिया तक, मयंक गांधी, धर्मवीर गांधी से लेकर प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव तक की वापसी का इशारा करते हुए कहा कि हम अपनी गलतियों के लिए उनसे माफी मांग लेंगे। कुमार के मुताबिक ऐसे नेताओं के साथ वॉलन्टियर्स बात कर रहे हैं। उन्होंने पार्टी को कार्यकर्ता रूपी एंटी वायरस की जरूरत भी बतायी।
कुमार ने पुराने लोगों की पार्टी में वापसी जैसी बड़ी बात किस आधार पर कही और इसके पीछे उनका क्‍या मकसद था ये तो नहीं पता लेकिन दिलचस्‍प बात ये है कि कुमार की इस कोशिश में केजरीवाल या पार्टी के दूसरे नेता उनके साथ नहीं दिखते। इस बारे में हमने योगेंद्र यादव से बात की। वे कहते हैं, ‘मैं और प्रशांत जी सार्वजनिक रूप से स्‍पष्‍ट कर चुके है कि न तो हम ‘आप’ में लौटने जा रहे हैं और न ही इस तरह की कोई बातचीत चल रही है। कुमार विश्‍वास ने किस आधार पर ये बात कहीं वहीं जानें, लेकिन जिस पार्टी ने भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन के सभी आदर्शों को धोखा दिया है उसके साथ किसी भी तरह का संबध रखना अब मुमकिन नहीं है। महज राजनीति चमकाने के लिए कुमार को ऐसी बातें नहीं बोलनी चाहिए।’
पार्टी में दिल्‍ली प्रभारी की भूमिका निभा रहें एक नेता कहते हैं- ‘ऐसा लगता है कुमार विश्वास पार्टी में समानान्‍तर शक्ति स्थापित करना चाहते हैं, जिस पर किसी से कोई राय मशविरा नहीं लिया जाता।’ बताया जा रहा है कि विश्‍वास ने जो कार्ड खेला है उसके बाद दिल्ली और दूसरे राज्यों के हाशिये पर पहुंचे तमाम लोग उनसे संपर्क कर रहे हैं और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। उधर कुमार विश्वास का कहना है कि उनका यह कारवां रुकने वाला नहीं है। वह इसे आगे बढ़ाएंगे। सच ये भी है कि कुमार की इस नई सक्रियता के बाद ‘आप’ में बेचैनी है और पार्टी के रणनीतिकारों को समझ नहीं आ रहा है कि कुमार से किस तरह से निपटें।
वैसे केजरीवाल कुमार विश्‍वास को उपयोगी तो मानते हैं। कई मौकों पर उन्‍होंने कुमार को पार्टी के बचाव में आगे भी किया है। लेकिन पार्टी लाइन से हटकर की जा रही कुमार की बातों से केजरीवाल का विश्‍वास भी उनके प्रति डोल रहा है। लालू के बेटे और बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने बीते कुछ महीनों में दिल्ली में केजरीवाल से कई मुलाकातें की थीं। जिसके बाद राजनीतिक गलियारों से लेकर मीडिया तक में ऐसे कयास लगाए जाने लगे कि इन मुलाकातों के जरिए 2019 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी एकता की पटकथा लिखी जा रही है।
लालू परिवार से बढ़ती दोस्‍ती और राजद से गठबंधन की संभावनाओं के बीच कुमार विश्‍वास ने इसकी मुखालफत करते हुए तब बयान दे दिया कि जब तक ‘आप’ में उनके जैसा एक भी संस्थापक सदस्य बचा है, ऐसी किसी राजनीतिक साझेदारी की इजाजत नहीं दी जाएगी। पार्टी के किसी नेता ने इस बयान पर कोई टिपण्‍णी नहीं की है। अरविंद केजरीवाल इन दिनों नपा तुला बोल रहे हैं। लेकिन पार्टी के एक बड़े नेता दबी जबान में कुमार विश्‍वास के इस बयान को केजरीवाल पर सीधा हमला मानते हैं। पार्टी ने कुमार विश्‍वास को कोई चेतावनी तो नहीं दी है, अलबत्‍ता पार्टी में लंबे समय से उनके धुर विरोधी रहे और कुमार को भाजपा एजेंट कहने पर ‘आप’ की पार्लियामेंट्री अफेयर कमेटी (पीएसी) से निलंबित नेता अमानुल्‍ला खान को फिर से पीएसी में बहाल करके एक बार फिर आगे बढ़ाने की कवायद शुरू हो गई है। इसी के बाद से कुमार विश्‍वास पार्टी में अंदरूनी लोकतंत्र को लेकर अप्रत्‍यक्ष रूप से हमले कर रहे हैं। पार्टी में केजरीवाल समर्थक नेताओं का मानना है कि कुमार विश्‍वास से केजरीवाल का विश्‍वास डगमगा रहा है और इंतजार किया जा रहा है उनके ऐसे कदम का जो पार्टी की नीतियों के खिलाफ होगा, बस उसी के बाद ‘आप’ में उनकी सियासी पारी पर विराम लग जाएगा। 