मलिक असगर हाशमी
कहावत है, दिल का रास्ता पेट से होकर गुजरता है यानी किसी के दिल में उतरना है तो उसे अच्छे-अच्छे व्यंजन जीमाएं। कुछ इसी फार्मूले पर चलते हुए हरियाणा की मनोहरलाल सरकार 2019 के विधानसभा चुनाव में मोर्चा मारने की जुगत में है। मुख्यमंत्री जान चुके हैं कि अगली बार भी सत्ता पर काबिज रहने का ख्वाब प्रदेश के किसानों को प्रसन्न किए बिना पूरा नहीं हो सकता और किसानों के दिलों में उतरने के लिए मोबाइल फोन से बेहतर कोई और संसाधन नहीं है।
प्रदेश सरकार ने कुछ दिनों पूर्व सूबे के विकास का खाका तैयार करने के लिए ‘मार्चिंग अहेड’ नाम से एक सर्वेक्षण करवाया था, जिसकी रिपोर्ट बेहद रोचक है। इसके मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में तकरीबन 25 फीसदी शहरी परिवार किराए के मकान में रहते हैं। शहरियों के मुकाबले ग्रामीण सेल फोन यानी मोबाइल का अधिक इस्तेमाल करते हैं। सर्वेक्षण रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश में 75.3 प्रतिशत शहरियों के पास अपना घर है। इस मामले में ग्रामीण आगे हैं। 96.1 प्रतिशत ग्रामीणों का अपना घर है। इसी तरह हरियाणा में 65.6 प्रतिशत शहरी और 67.7 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास मोबाइल है। देश में यह प्रतिशत क्रमश: 64.3 एवं 47.9 का है। सर्वेक्षण रिपोर्ट और प्रदेश सरकार की ओर से हाल में पेश किए 2018-19 के बजट के आंकड़ों पर गौर करें तो मनोहरलाल सरकार की अगली रणनीति का खुलासा होता दिखता है। बिना कोई नया कर लगाए इस बार के बजट में किसान को भगवान मानते हुए गांव, गाय और किसान पर विशेष जोर दिया गया है। इसमें यह भी आभास कराया गया है कि ‘नेट और चैट’ के माध्यम से सरकारी लाभ पहुंचाने के लिए मनोहरलाल सरकार अधिक से अधिक किसानों के संपर्क में रहेगी। कुरुक्षेत्र के बाद पलवल, झज्जर और नारनौल में उत्कृष्ट केंद्र बनाए जाएंगे, जिससे राज्य की 54 मंडियों को ई-मार्केटिंग प्लेटफार्म से जोड़ा जाएगा। इसके लिए बजट में 1838 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। ई-मार्केटिंग की जानकारी किसानों को मोबाइल ऐप की मदद से समय समय पर दी जाएगी।
पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता प्रोफेसर संपत सिंह का मानना है कि सरकार का अपना ऋण इस वित्त वर्ष में लगभग 1 लाख 41 हजार करोड़ रुपये का है, जिसके वर्ष 2018-19 में बढ़कर 1 लाख 61 हजार करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। बावजूद इसके इस वित्त वर्ष में प्रदेश सरकार ने ग्रामीण विकास एवं किसानों के उत्थान पर धनवर्षा की योजना बनाई है। 1,15,000 करोड़ रुपये के बजट में ग्रामीण विकास पर 4097.46 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान किया गया है। वर्ष 2016-17 में खेती-किसानी के लिए 2112.17 और 2017-18 में 2709.69 करोड़ रुपये रखा गया था। बकौल मुख्यमंत्री मनोहरलराल, ‘सूबे के कृषि विकास के लिए इस वित्त वर्ष में कृषि व्यवसाय और खाद्य प्रसंस्करण नीति लाई जाएगी जिस पर 3500 करोड़ रुपये निवेश किए जाएंगे। इसके अलावा बजट में सुक्ष्म सिंचाई, बागवानी, दुग्ध उत्पादन और पशुपालन पर विशेष जोर दिया गया। सूबे के आखिरी छोर पर बसे किसानों तक पानी पहुंचाने की रणनीति बनी है। प्रदेश के 36 विकास खंड डार्क जोन में आते हैं। उनका जलस्तर न गिरे, इसके लिए विशेष योजना बनाई जाएगी। बागवानी को बढ़ावा देने के लिए 340 गांव बागवानी ग्राम घोषित किए गए हैं। सरकार की मंशा बागवानी क्षेत्र को 7.5 से 15 प्रतिशत तक और बागवानी उत्पादन तीन गुना बढ़ाने की है। इसके लिए हार्टिकल्चर विजन तैयार किया गया है। अर्थशास्त्री डॉक्टर एसपी शर्मा कहते हैं, ‘हरियाणा सरकार का यह बजट कृषि, बागवानी, सिंचाई, पशुपालन एवं वन विकास को प्राथमिकता देने वाला है।’ 2018-19 के बजट में हरियाणा किसान कल्याण प्राधिकारण के गठन और हिसार जिले के नारनौंद उपमंडल में मुर्राह अनुसंधान एवं कौशल विकास केंद्र स्थापित करने की पेशकश है। ग्रामीण श्रमिकों को मनरेगा के तहत पर्याप्त काम देने के लिए अलग से 100 करोड़ रुपये का रिवाल्विंग फंड बनाया गया है। एसवाईएल नहर के निर्माण के लिए अलग से 100 करोड़ रुपये रखा गया है।
हरियाणा में यदि लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव नहीं हुए तो 2019 में सूबाई सरकार का कार्यकाल पूरा हो रहा है। विश्लेषक यशपाल शर्मा कहते हैं, ‘अक्टूबर 2019 से पहले चुनाव कराए जाने पर मनोहरलाल सरकार अगले साल बजट के नाम पर आॅन अकाउंट ही सदन के पटल पर रखेगी। इस लिहाज से वित्त वर्ष 2018-19 के बजट को ही चुनावी बजट माना जाए जिसमें किसानों और ग्रामीणों को ज्यादा से ज्यादा खुश करने की कोशिश की गई है। हालांकि, बजट में किसानों के 56 हजार करोड़ रुपये की कर्जमाफी पर सरकार ने अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है। राजनीतिक विश्लेषक सतीश चंद्र श्रीवास्तव कहते हैं, ‘खेती के लिए 1938.49 करोड़ रुपये के प्रावधान के साथ बागवानी, पशुपालन, सिंचाई के बजट में अच्छी खासी वृद्धि और ग्रामीण विकास के लिए 4301.88 करोड़ रुपये की व्यवस्था करना बेहद सराहनीय है। इस बार ग्रामीण विकास, सामुदायिक विकास और पंचायतों के लिए 25 फीसदी अधिक राशि आवंटित की गई है।’ हरियाणा में शहर की बजाय ग्रामीण इलाकों में दलितों की आबादी अधिक है। सरकार ने बजट में दलितों के कल्याण पर भी खासा जोर दिया है।
हालांकि बजट को लेकर प्रदेश सरकार विपक्ष के निशाने पर है। कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने बजट को कर्जयुक्त और जीरो परफॉर्मंेस बजट करार दिया है। पूर्व सीपीएस दान सिंह कहते हैं, ‘बजट के नाम पर आंकड़ों की जादूगरी से अधिक कुछ नहीं।’ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष इनेलो के अभय चौटाला तथा कांग्रेस नेता किरण चौधरी ने बजट को निराशाजनक और दिशाहीन बताते हुए कहा है कि इसमें खेल एवं महिला बाल-कल्याण को बिल्कुल इग्नोर किया गया है। इन आलोचनाओं से बेपरवाह प्रदेश सरकार ने किसानों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं का सहारा लेने के साथ ‘ई-पॉवर’ के इस्तेमाल का खाका तैयार किया है। कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ बताते हैं, ‘किसानों, ग्रामीणों को तमाम कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी अगल-अलग ऐप पर उपलब्ध होंगी। किसान कल्याणकारी ऐपों को बनाने के लिए सरकार के आईटी एक्सपर्ट्स को लगाया गया है।’ जाहिर है सूबे के ग्रामीण इलाकों में मोबाइल की अधिक संख्या सरकार की मंशा को पूरा करने में मददगार साबित हो सकती है। केंद्र सरकार की भी कई योजनाएं पहले से मोबाइल ऐप पर मौजूद हैं।
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