सुनील वर्मा। दिल्ली सरकार का कानून मंत्रालय आम आदमी पार्टी के लिए मनहूस साबित हो रहा है। 2013 में 49 दिनों की सरकार के दौरान तत्कालीन कानून मंत्री सोमनाथ भारती अफ्रीकी मूल की महिलाओं के खिलाफ आधी रात को छापा मारने को लेकर विवादों में फंसे थे। इसी साल फरवरी में दूसरी बार आप की सरकार बनी तो कानून मंत्री जितेन्द्र तोमर खुद फर्जी डिग्री मामले में सलाखों के पीछे जा पहुंचे। जून में कपिल मिश्रा कानून मंत्री बने और अचानक ढाई महीने में ही हटा दिए गए। अब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को कानून मंत्रालय का कार्यभार सौंपा है।
अब बड़ा सवाल यह है कि आखिर क्यों अल्पावधि में ही कपिल मिश्रा से कानून मंत्रालय वापस ले लिया गया। इसकी कई कहानियां सामने आ रही हैं। एक बिहार चुनाव से जुड़ी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले महागठबंधन में कांग्रेस व राष्ट्रीय जनता दल शामिल हैं। शीला दीक्षित कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की नजदीकी हैं। केजरीवाल महागठबंधन में नहीं हैं, लेकिन नीतीश से नजदीकियों के चलते अप्रत्यक्ष सर्मथन दे रहे हैं। चूंकि कपिल मिश्रा ने बिहार में चुनावी सरगर्मी के बीच ही शीला दीक्षित के खिलाफ टैंकर घोटाले में एफआईआर कराने की सिफारिश कर दी। ऐसे में शीला पर तुरंत कार्यवाही को लेकर विपक्षियों को बोलने का मौका मिल सकता था। नीतीश के महागठबंधन के साथ केजरीवाल का लक्ष्य भी भाजपा को सरकार बनाने से रोकना है। सूत्रों का कहना है कि इसीलिए बिहार सिसोदिया को सौंप दिया गया।
कानून मंत्रालय से हटाए जाने के दिन ही कपिल मिश्रा ने मुख्यमंत्री केजरीवाल को पत्र लिखा और तुरंत ही उसे सार्वजनिक भी कर दिया। उन्होंने लिखा था, ‘यह एक बड़ा खुलासा है और मुझे डर है कि उसके तत्काल बाद दिल्ली में हमारी सरकार को अस्थिर करने और मुझे इस पद से हटाने के प्रयास भी होंगे।’ मिश्रा ने केजरीवाल से पानी टैंकरों को किराये पर रखने में कथित घोटाले के सिलसिले में शीला दीक्षित के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि सरकारी खजाने को 400 करोड़ रुपए का कथित नुकसान पहुंचाया गया। इस पत्र से साफ है कि कपिल जान गए थे कि उन्हें हटाने की तैयारी चल रही है। लेकिन पत्र के जरिए भी मिश्रा, केजरीवाल पर दवाब बनाने में असफल रहे।
मगर, इस कहानी के विरोध में मिश्रा तर्क देते है कि उन्होंने शीला के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश जलबोर्ड का मुखिया होने के नाते की। उनका यह विभाग और पर्यटन मंत्रालय तो अभी भी बरकरार है।
कानून मंत्रालय में बदलाव के पीछे एक कहानी यह भी तैर रही है कि केजरीवाल के कई कानूनी सलाहकार कपिल के काम से खुश नहीं थे। कानून मंत्रालय में काम ठीक-ठाक तरीके से नहीं चलने की शिकायतें केजरीवाल को आए दिन मिल रही थी। दरअसल, दिल्ली सरकार के लिए कानून विभाग इस वक्त बेहद अहम हो गया है। दिल्ली हाई कोर्ट से लेकर अन्य अदालतों में कई महत्वपूर्ण मामले चल रहे हैं। हालत यह है कि कई जगह सरकारी वकील अदालतों में सरकार की पैरवी करने ही नहीं पहुंचते। इस वजह से कई मामलों में सरकार की किरकिरी भी हुई है। सूत्रों का कहना है कि कपिल मिश्रा को केजरीवाल व्यक्तिगत तौर से कह चुके थे कि अदालतों में सरकार का पक्ष मजबूती से रखा जाए लेकिन वे इसमें सफल नहीं हो पाए।
विभाग बदलने की एक वजह ये भी बताई जा रही है कि कानून विभाग से जुड़े हर महत्वपूर्ण मामले में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ता था। यही वजह है कि यह जिम्मेदारी अब सिसोदिया को सौंपी गई, ताकि मिश्रा जलबोर्ड व पर्यटन मंत्रालय के अपने दूसरे विभागों पर पूरा ध्यान दे सकें। पूरे विवाद में केजरीवाल की चुप्पी भी कई सवालों को जन्म दे रही है।