प्रियदर्शी रंजन

मुजफ्फरपुर बालिका गृह की 34 नाबालिग लड़कियों के यौन शोषण महाकांड के मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर का दावा है कि अगर उसका मुंह खुल गया तो बिहार की राजनीति में बवाल मच जाएगा। बडेÞ-बड़े लोग नंगे हो जाएंगे। उसका कहना है कि वह अकेले ऐसे कारनामे को कैसे अंजाम दे सकता है। सूत्रों के मुताबिक, जेल में बंद ब्रजेश ठाकुर ने इस मामले की जांच कर रही एक महिला पुलिस अधिकारी को बालिका गृह में आने वाले आधा दर्जन से ज्यादा लोगों के नाम गिना दिए। ठाकुर उन नेताओं, विधायकों और मंत्रियों के नाम का खुलासा करना चाहता है जो लगातार बालिका गृह आते थे। वह उन नामों का भी खुलासा करना चाहता है जो बालिका गृह से मंत्रियों के लिए पटना के होटलों में लड़कियों को ले जाता था लेकिन पुलिस को उसकी कहानी पर भरोसा नहीं है। खुदीराम बोस केंद्रीय कारा, मुजफ्फरपुर में ब्रजेश ठाकुर के साथ रहने वाला एक विचाराधीन कैदी जो कोर्ट में पेशी के लिए आया था, उसने सूत्रों को बताया कि ठाकुर पुलिस को सब कुछ बताने को तैयार है लेकिन पुलिस ही पूछताछ को तैयार नहीं है। ठाकुर इस कांड में ऐसे-ऐसे लोगों के नाम ले रहा है जो बडेÞ ओहदों पर हैं।
सूत्रों की मानें तो ब्रजेश यह दावा भी कर रहा है कि उसके पास आॅडियो और वीडियो क्लिप हैं जिससे कई रसूखदारों का पर्दाफाश हो जाएगा। एक क्षण के लिए यह मान लिया जाए कि महापाप का मास्टमाइंड झूठ बोल रहा है और अपने बचाव में बड़े नामों का जिक्र कर ब्लैकमेल कर रहा है लेकिन यह मानने वाली बात नहीं है कि सरकार और प्रशासन को इस मामले की जानकारी पहले से नहीं थी। ठाकुर का दावा है कि उसके बालिका गृह की व्यवस्था में समाज कल्याण विभाग के पांच अधिकारी, वकील, सामाजिक कार्य से जुड़े कई लोग शामिल हैं। अगर ऐसा है तो उन्हें भनक कैसे नहीं लगी कि लड़कियों के साथ कुछ गलत हो रहा है। सवाल यह भी है कि हर महीने जांच के लिए जाने वाले एडिशनल जज के दौरे के बाद भी मामला सामने क्यों नहीं आ सका। बालिका गृह के रजिस्टर में दर्ज है कि वहां न्यायिक अधिकारी जाते थे और समाज कल्याण विभाग के अधिकारी का भी सप्ताह में एक दिन जाना अनिवार्य था। हो सकता है कि उनकी इसमें कोई भूमिका नहीं हो मगर समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा के पति का नाम सार्वजनिक होने के बाद भी उनकी गिरफ्तारी न होने से सरकार के मंसूबे पर संदेह होना लाजिमी है।

इस शर्मनाक कांड में जेल में बंद निलंबित जिला बाल संरक्षण पदाधिकरी रवि रोशन ने पूछताछ के दौरान मंजू वर्मा के पति चंदेश्वर वर्मा का नाम लिया था लेकिन पुलिस ने यह बात केस डायरी में दर्ज नहीं की जबकि कोर्ट में पुलिस की ओर से जमा केस डायरी में मंत्री महोदया के नाम का जिक्र है। दरअसल, बालिका गृह कांड में गैर सरकारी संगठन, सत्ता और राजनीति का गठजोड़ साफ तौर पर जाहिर हो चुका है। नीतीश सरकार के कई मंत्रियों और प्रदेश के कई नेताओं के नाम इस कांड से जुड़ रहे हैं। अब यह बात किसी से छिपी नहीं है कि प्रदेश के बड़े नेताओं के साथ ब्रजेश के संबंध थे। चंदेश्वर वर्मा से ब्रजेश के मधुर संबंध थे और उसका बालिका गृह में आना जाना एक गैरवाजिब गठजोड़ ही था। यहां तक कि लालू यादव और नीतीश कुमार के साथ भी मंच साझा करने की उसकी फोटो सामने आ चुकी है। छुटभइये नेता तो उसका शागिर्द बनकर खुद को गौरवान्वित महसूस करते थे। यह भी कड़वी सच्चाई है कि पिछले तीन दशक में प्रदेश में सरकार चाहे किसी की भी रही हो और समाज कल्याण मंत्री कोई भी रहा हो, मंत्रालय में ब्रजेश ठाकुर की तूती बोलती थी।

संचालकों पर उठते रहे हैं सवाल
मुजफ्फरपुर कांड से पहले भी बिहार के बालिका गृहों का राजनेताओं और प्रशासन के साथ गठजोड़ पर सवाल उठते रहे हैं। वर्ष 2011 में राजधानी पटना से सटे बिहटा में प्रयास घरौंदा पुनर्वास से आधा दर्जन युवतियों के गायब होने की खबर ने बालिका गृह चलाने वालों को संदेह के घेरे में खड़ा किया था। इसी संस्था से वर्ष 2013 में एक बार फिर एक दर्जन लड़कियां गायब हो गर्इं। प्रशासन के अथक प्रयास के बाद सिर्फ दो लड़कियों की बरामदगी हो पाई, बाकी दस का अब भी कोई अता-पता नहीं है। प्रयास घरौंदा पुनर्वास के आस-पास रहने वाले लोगों का मानना है कि यहां लड़कियों के साथ गलत कार्य होता रहा है। कुछ साल पहले असामाजिक तत्वों का जमावड़ा देखकर आस-पास के लोगों ने घरौंदा में घुसकर विरोध व मारपीट भी की थी जिसका मामला बिहटा थाने में दर्ज है। मुजफ्फरपुर कांड के बाद घरौंदा एक बार फिर संदेह के घेरे में है क्योंकि संस्था ने इस घटना के बाद अपना ठिकाना बदल लिया है। बीते साल पटना के ही एक अल्पवास गृह में एक लड़की की हत्या कर दी गई थी जिसे संस्था की ओर से आत्महत्या बताया गया। जबकि आास-पास के लोगों का मानना था कि उस लड़की ने गलत कार्य करने से मना कर दिया था जिससे नाराज होकर उसके संचालकों ने ही उसकी हत्या कर दी।
बिहार में गैर सरकारी संगठनों की ओर से अभी 11 बालिका गृह, 24 बाल गृह और 15 अल्पवास गृह संचालित हैं। एक शेल्टर होम पर सरकार सालाना लगभग 30 लाख रुपये खर्च करती है। यानी बेसहारा बच्चे-बच्चियों और महिलाओं की हिफाजत पर सरकारी खजाने से सालाना 15 करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं। लेकिन खौफनाक तथ्य यह है कि मंत्री, संतरी, रसूखदारों और दलालों का एक समानांतर तंत्र उसी खर्चे पर उन लड़कियों और महिलाओं की अस्मत लूटता है। इसकी शिकायतें समय-समय पर बाहर निकलकर आती रहती हैं लेकिन छिटपुट घटनाओं को दबाने का खेल प्रशासन के स्तर पर होता रहता है। मामला तब सुर्खियों में आता है जब कोई बड़ी घटना हो जाती है। नीतीश सरकार के बेहद करीबी एक नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि मुजफ्फरपुर कांड का भंडाफोड़ होने से पहले अल्पवास गृह जैसे संस्थान जिस्म तृप्ति के खेल के सबसे सुरक्षित अड्डे रहे हैं। जिस प्रशासन, सरकार और संस्थान पर बेसहारा लड़कियों की रक्षा, संरक्षण और सुधार की जिम्मेवारी है वही भक्षक भी है। कुछ मामले किसी तरह इन तीनों तंत्र के चुंगल से निकल कर बाहर आ भी जाते हैं तो उन्हें साजिशन अरोप बता कर दबा दिया जाता है। इस घटना के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घोषणा की है कि अब सभी आश्रय स्थलों का संचालन सरकार ही करेगी।

लड़कों का भी यौन शोषण
टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंस (टिस) की विंग ‘कोशिश’ की सोशल आॅडिट रिपोर्ट के बाद मुजफ्फरपुर कांड का रहस्योद्घाटन हुआ कि किस प्रकार जिस्म के शिकारियों की हैवानियत से कोई लड़की दम तोड़ देती है तो उसे उसी भूखंड में गाड़ दिया जाता है जिस पर समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित का बोर्ड लगा होता है। टिस के इस खुलासे के बाद ही एक के बाद 34 लड़कियों से बलात्कार का मामला प्रकाश में आया। उसी टिस की रिपोर्ट का दावा है कि सिर्फ मुजफ्फरपुर ही नहीं बिहार के अन्य बालिका गृहों में भी भयावह हालात हैं। टिस ने उनके खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा की है क्योंकि सोशल आॅडिट के दौरान समाज कल्याण विभाग कीअन्य योजनाओं के संचालन के तौर-तरीके अमानवीय दिखे। खासकर उनके जो गैर सरकारी संगठन की ओर से संचालित हैं। इनमें एक सरकारी संस्था भी है। यहां बच्चियां ही नहीं बच्चे भी यौन शोषण के शिकार हैं। रिपोर्ट कहती है कि निर्देश द्वारा संचालित मोतिहारी के ब्वॉयज चिल्ड्रेन होम के बच्चों ने सोशल आॅडिट टीम के सदस्यों के समक्ष माना कि उनका यौन शोषण होता है। इस मामले में मोतिहारी के छतौैैनी थाने में पुलिस की ओर से गृह संचालक श्यामबाबू सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ है। ब्वायज चिल्ड्रेन होम गया में एक महिला कर्मचारी बच्चों को गलत कार्यों के लिए उकसाती है। गया में महिला कर्मचारी के खिलाफ पुलिस में मामला भी दर्ज किया गया है। बाल गृह के बच्चों को होटलों में अप्राकृतिक यौन पिपासुओं के सामने भी परोसा जाता है। कई बच्चों को होटलों में दिहाड़ी काम पर भी लगाया है।

हैरानगी भरी सोशल आॅडिट रिपोर्ट
रिपोर्ट में कहा गया है कि यतीम, समाज के ठुकराए, किसी कारणवश परिवार से बिछड़े लोगों की खातिर कतिपय सुधार गृह, यातना गृह जैसे भयावह दिखते हैं। बच्चे रात में शौचालय की सुविधा से वंचित हैं। वे प्लास्टिक की बोतलों में पेशाब करने को मजबूर हैं। नाम-पता मालूम होने के बाद भी बच्चियों व बच्चों को उनके परिजनों से नहीं मिलया जाता है। उनकी स्थिति दयनीय व बंधुआ मजदूरों जैसी है। आॅब्जर्वेशन होम में परिजनों से मिलने के लिए संचालकों को रिश्वत तक देनी पड़ती है। रिपोर्ट के मुताबिक, गंभीर जुर्म में शामिल रहे 16 से 18 वर्ष के आरोपियों को कम उम्र के अन्य बच्चों से अलग रखने का इंतजाम राज्य में है ही नहीं। शिकायत पेटियां जिनमें बच्चों/बच्चियों ने अपनी पीड़ा लिखकर डाली थी, वो खोली ही नहीं गर्इं। राजधानी पटना के आईकेराडी की ओर से संचालित बालिका गृह में घर से भूली-भटकी बच्चियां रहती हैं। उनके पास परिजनों का नाम, पता और फोन नंबर है लेकिन उन्हें परिजनों से संपर्क करने नहीं दिया जाता। बच्चियों के मुताबिक, आरटीओ और अकाउंटेंट उनका मौखिक और शारीरिक उत्पीड़न करते हैं। हिंसात्मक वातावरण से आजिज आकर साल भर पहले एक बच्ची ने आत्महत्या कर ली थी। एक बच्ची जिसके पास परिजनों का फोन नंबर भी था, उसे बात नहीं करने दिया गया। समय के साथ उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया।
मोतिहारी में सखी की ओर से बालिका गृह संचालित है। यहां सुविधा की बात तो छोड़िए, जिस जगह पर यह सेंटर है वह पहली नजर में ही बालिकाओं के लिए असुरक्षित है। शहर से दूर वीराने में अधबना एक मकान है जहां न कोई चाहरदिवारी है और न ही सीसीटीवी का इंतजाम। यहां पर मानसिक रूप से बीमार बच्चियों और महिलाओं का शारीरिक उत्पीड़न कोई और नहीं बल्कि परामर्शदाताओं के हाथों ही होता है। मधेपुरा में महिला चेतना की ओर से संचालित बालिका गृह में दमन का आलम एक बच्ची के बयान से साबित होता है जिसमें उसने बताया कि उसे जबरिया उठाकर लाया गया और उसे न तो वहां से जाने दिया गया और न ही परिजनों से मिलने दिया गया। मुंगेर में नावल्टी वेलफेयर के बालिका गृह के आधे परिसर को दस हजार रुपये महीने के किराये पर लगा दिया गया है। यहां मानसिक रूप से बीमार एक महिला कमरे में कैद पाई गई। संचालकों का कहना है कि उस महिला को इसलिए कमरे में बंद किया था क्योंकि वह मानसिक तौर पर बीमार थी। लेकिन जब आॅडिट टीम के सदस्य वहां गए तो वह महिला टीम की महिला सदस्य से लिपटकर रोने लगी। कैमूर में ग्राम स्वराज की ओर से संचालित बालिका गृह की सुरक्षा में तैनात रक्षक ही उसका भक्षक है। 