कैसे हुआ खुलासा-

बालिका गृह में बच्चियों के साथ रेप का यह पूरा मामला तब प्रकाश में आया जब टाटा  इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंस (टिस) की आॅडिट रिपोर्ट सामने आई। रिपोर्ट 31 मई को बिहार सरकार को सौंपी गई। इस रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि कैसे बालिका गृह में छोटी-छोटी बच्चियों का शोषण किया जाता रहा। बच्चियों की मेडिकल जांच में उनके शरीर के कई हिस्सों पर जलने और कटने के निशान भी मिले हैं। मेडिकल रिपोर्ट के मुताबिक, यौन शोषण से पहले बच्चियों को नशे की दवाइयां या इंजेक्शन दिया जाता था। शोषण का शिकार हुई सभी 34 बच्चियां 18 साल से कम उम्र की हैं। इनमें भी ज्यादातर की उम्र 13 से 14 साल है। टिस ने सात महीनों तक 38 जिलों के 110 संस्थानों का सर्वेक्षण किया। इस रिपोर्ट से साफ पता चलता है कि मुजफ्फरपुर बालिका गृह में हुए यौन उत्पीड़न में बाल कल्याण समिति के सदस्य और संगठन के प्रमुख भी शामिल थे। दरअसल, बालिका गृह में गड़बड़ी की खबरें प्रदेश सरकार को काफी समय से मिल रही थीं। इन खबरों को पुख्ता करने के लिए सरकार ने मुंबई की प्रतिष्ठित संस्था टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंस को आॅडिट का काम दिया। सात महीने तक रिसर्च करने के बाद टिस ने 31 मई को सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें ये चौंकाने वाले खुलासे हुए। इस रिपोर्ट के आधार पर मुजफ्फरपुर के जिला बाल कल्याण संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक ने महिला थाने में बालिका गृह का संचालन करने वाले एनजीओ सेवा संकल्प एवं विकास समिति के कर्ताधर्ता और पदाधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज कराया।

क्या पीड़िताओं को न्याय मिलेगा?

मुजफ्फरपुर की घटना की तुलना दिल्ली के निर्भया कांड से करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि बालिका गृह में मासूमों के साथ दुष्कर्म की दुर्गंध देश के हर हिस्से में पहुंच गई है। दिल्ली में एक निर्भया कांड हुआ था और यूपीए सरकार का सिंहासन डोल गया था। यहां 34 बच्चियों के साथ कई साल तक दुष्कर्म हुआ है। इस बार बड़े-बड़े सिंहासन नहीं बचेंगे। इसी के साथ केजरीवाल ने निर्भया कांड के दोषियों को सजा मिल जाने का उादहरण भी दिया। लेकिन शायद वे यह भूल गए या उन्हें यह मालूम नहीं होगा कि बिहार में कई हाई प्रोफाइल मामलों की जांच वर्षों बाद भी पूरी नहीं हुुई या जांच को गलत दिशा में भटका दिया गया। इनमें कुछ मामलों की जांच तो सीबीआई ने की थी। शिल्पी-गौतम कांड, बॉबी कांड और चंपा विश्वास कांड जैसे बहुचर्चित रेप व हत्या के मामलों को भला कौन भूल सकता है। वर्ष 1999 में घटित शिल्पी-गौतम कांड की जांच अभी तक पूरी नहीं हो पाई है। पिछली सदी के अस्सी के दशक में घटित बॉबी कांड में उच्चस्तरीय दबाव की वजह से मामले कोे रफा-दफा कर दिया गया। चंपा विश्वास कांड में तो कार्रवाई तब हुई जब मामला मीडिया में उछला। मगर निचली अदालत से सजा पाने के बाद आरोपी हाई कोर्ट से बरी हो गए। सत्तर के दशक में एक मंत्री ने अपने बेटे की हत्या करवा दी। मंत्री का अपनी पतोहू के साथ गलत संबंध था। हत्यारा पकड़ा भी गया पर उस मंत्री ने हत्यारों को छुड़वा दिया। न तो मंत्री को कुछ हुआ और न ही हत्यारों को।
यही कारण है कि बिहार के जनमानस में यह सवाल उमड़-घुमड़ रहा है कि मुजफ्फरपुर कांड की जांच भी अंजाम तक पहुंचेगी या नहीं या फिर दोषियों को सजा होगी जैसा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कह रहे हैं कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। वैसे भी बिहार उस राज्य में शामिल है जहां दस फीसदी फौजदारी मामलों में ही सजा हो पाती है। ऊपर से ब्रजेश ठाकुर का अदालत जाते वक्त हंसी की तस्वीर लोगों के संदेह को और गहरा कर देती है कि कहीं इस मामले का हश्र भी शिल्पी-गौतम या बॉबी कांड जैसा तो नहीं होगा? क्या सीबीआई ब्रजेश ठाकुर के अलावा सत्ता, प्रशासन में बैठे लोगों और उन अय्याशों तक पहुंच पाएगी जिनके नाम पर्दे के पीछे हैं।