प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छ भारत मिशन ने स्वच्छता को एक मिशन के तौर पर सबके सामने रखा है। यही कारण है कि एसोचेम जैसी संस्था इस पर बड़े स्तर पर चर्चा कर रही है। एसोचेम ने पानी, स्वच्छता और स्वच्छता कैसे रखी जाए विषय पर दूसरी बड़ी कॉन्फेंस का आयोजन किया। जिसमें कई बड़ी हस्तियों ने शिरकत ही नहीं की बल्कि अपने योगदान और नई तकनीक के जरिये किस तरह स्वच्छता की मुहिम में योगदान दिया जा सकता है इस पर भी अपने विचार रखे। इसी दौरान उत्तर प्रदेश अमेटी यूनिवर्सिटी की निदेशक तनु जिंदल ने गंदे पानी की सम्स्या को गंभीरता से उठाया और विस्तार से बात की निशा शर्मा से-
-आप किस तरह के विषय को लेकर रिसर्च करती हैं?
हम जिस भी विषय को रिसर्च के लिए उठाते हैं, उसका दूरदर्शी प्रभाव होता है। ऐसे विषय ही होते हैं जो वर्तमान में लोगों पर प्रभाव डाल रहे होते हैं जैसे साफ पानी की समस्या एक गंभीर समस्या है।
-साफ पानी की समस्या आपका अपना अनुभव है या फिर एक ज्वलंत समस्या होने के नाते आपने इस पर रिसर्च करने की सोची?
मैं दिल्ली में जन्मी और पली-बढ़ी हूं, आज से 30 साल पहले कुओं का पानी साफ था तो फिर आज घर में आने वाला पानी ही साफ़ क्यों नहीं है इस सवाल ने मुझे सोचने पर मजबूर किया। मयूर विहार से रोज मैं अपनी (अमेटी) यूनिवर्सिटी की ओर जाती हूं, रास्ते में गंदा नाला पड़ता है। जहां बहुत बदबू आती है। सोचा यह पानी निकासी के दौरान पीने के पानी में मिलकर लोगों की सेहत पर क्या प्रभाव डालता होगा। मैंने विचार किया कि क्यों ना इस पर रिसर्च किया जाए। यह एक गंभीर समस्या है। जिसके लिए मैंने मंत्रालय से मदद मांगी जो मुझे मिली।
-आपने अपना अनुभव साझा किया, क्या पाया रिसर्च के दौरान?
पांच साल हमने इस पर रिसर्च किया। मैंने तथ्य इकट्ठा किए, उनका तुलनात्मक अध्ययन किया। रिसर्च में हमने पाया कि जो पानी हम पी रहे हैं, वह तो पीने के लायक ही नहीं है। रिसाव के दौरान पानी में आयरन, लेड की मात्रा इस हद तक पहुंच चुकी है, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है।
-इन तथ्यों के बाद आपने क्या सुझाव सरकार के सामने रखे ?
हमने समस्या तथ्यों के साथ बताई साथ ही इसके उपचार के लिए STP (Sewage Treatment Plant) का प्रस्ताव भी रखा। जिसके तहत गंदे पानी को साफ किया जा सकता है।
-साफ पानी भारत में एक मिशन क्यों नहीं है या इसे समस्या के तौर पर क्यों नहीं देखा जा रहा है?
इसका कारण सरकार की इस ओर अनदेखी है, इस पर काम नहीं किया जा रहा है। कायदे कानून जरुर बनाए गए हैं। लेकिन आप देखेंगे तो पाएंगे कि यहां इनवॉरमेंटल ऑफिसर ही नहीं हैं तो बताईये नियम कानूनों के साथ क्या हो रहा होगा। दूसरा सिर्फ सरकार की ही गलती नहीं है लोगों को भी इसके प्रति जागरुक होना पड़ेगा। अपनी आवाज़ उठानी होगी तभी हम स्वच्छता की ओर अपना कदम बढ़ा सकते हैं।
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