कुमार दीपक

बंगाल की राजनीति एक बार फिर सिंगूर और शालबनी के रास्ते दिशा तलाश रही है। वही सिंगूर, जहां जमीन अधिग्रहण का मुद्दा वाममोर्चा की तीन दशक वाली सरकार के लिए बूमरैंग साबित हो गया था और तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी के लिए राजनीति की उर्वरक जमीन। जबकि शालबनी में 35 हजार करोड़ रुपये के इस्पात संयंत्र की नींव रखे जाने के बाद लालगढ़ की शुरुआत हो गई थी। दोनों जगहें अब तृणमूल कांग्रेस की मौजूदा सरकार के लिए गले की हड्डी बन गई है।

mamta-banarjeeवाममोर्चा ने औद्योगीकरण का राजनीतिक दांव चलने के लिए योजनाएं साधनी शुरू कर दी है। कांग्रेस भी इसी मुद्दे के साथ है। वहीं अपनी राजनीतिक पैठ बढ़ाने के प्रयास में जुटी भारतीय जनता पार्टी ने उद्योग और ढांचागत विकास के साथ ही कानून-व्यवस्था के मुद्दे को भी अपना हथियार बनाना शुरू किया है।
बंगाल में बुरी तरह लड़खड़ाए सांगठनिक ढांचे वाले वाममोर्चा और दूसरी विपक्षी पार्टियों के लिए यह दांव कितना जीवनदायी साबित होगा, यह देखने वाली बात होगी। मगर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इससे सकते में जरूर हैं। जवाब में ममता बनर्जी ने आनन-फानन में वैश्विक निवेश सम्मेलन बुलाकर कई लाख करोड़ रुपये के करार का ऐलान किया। इस सम्मेलन में उन्होंने उद्योगपतियों को हर मदद का भरोसा दिया। लेकिन उन पर यह सवाल भारी पड़ रहा है कि अब तक वह उद्योगपतियों में भरोसा क्यों नहीं जगा पार्इं।

वाममोर्चा को सिंगूर और शालबनी में संजीवनी दिख रही है। सिंगूर के लोग यह महसूस करने लगे हैं कि उन्हें न तो जमीन वापस मिली और न ही कारखाना लगा। सुप्रीम कोर्ट ने जमीन वापसी का बंगाल सरकार का दावा ठुकरा दिया है। ऐसे में वहां रोजगार छिन जाने से नाराज लोग कारखाने की मांग करने लगे हैं। जनता की भावनाओं का भांपते हुए माकपा ने वहां अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। वर्ष 2009 में सिंगूर में टाटा मोटर्स के प्रस्तावित प्लांट को लेकर हंगामे के बाद शालबनी में जिंदल घराने द्वारा लगाए जाने वाले कारखाने के लिए जमीन अधिग्रहण को रोक दिया गया था। ममता सरकार सिंगूह की तरह शालबनी में भी कुछ नहीं कर पार्इं। अब दोनों जगहों पर वाममोर्चा ने औद्योगीकरण के मुद्दे पर अपनी राजनीति को धार देना शुरू किया है।

माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य और राज्य के पूर्व उद्योग मंत्री निरूपम सेन के मुताबिक, ‘वाममोर्चा के जमाने में काफी जमीनों का सरकार ने अधिग्रहण किया और वहां उद्योग भी लगे। लेकिन सिंगूर समेत अन्य जगहों पर तब जमीन अधिग्रहण के खिलाफ विपक्ष की बातें लोगों ने मान लीं। अब ममता बनर्जी की सरकार के पांच साल पूरे होने वाले हैं। औद्योगीकरण के मुद्दे पर वाममोर्चा सरकार को लोग सफल मान रहे हैं।’ वाममोर्चा ने 16 से 22 जनवरी तक सिंगूर से शालबनी तक पदयात्रा निकाली और जनसभाएं की।

भाजपा और कांग्रेस के नेता पहले से ही इस मुद्दे को लेकर सड़कों पर हैं। बंगाल कांग्रेस के प्रमुख अधीर रंजन चौधरी कहते हैं, ‘बंगाल से उद्योग हटाए जा रहे हैं। हर साल होने वाले उद्योगपतियों के सम्मेलन में करार होते हैं लेकिन धरातल पर काम नहीं होता। राज्य के कारोबारियों से रंगदारी की मांग बढ़ी है।’ भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश इकाई ने बंगाल के उद्योगों की बदहाली पर एक रिपोर्ट पार्टी आलाकमान को भेजी है। प्रदेश भाजपा के पूर्व प्रमुख राहुल सिन्हा कहते हैं, ‘जमीन संबंधी विभिन्न परेशानियों के चलते कई परियोजनाएं सवालों के घेरे में हैं। चार लाख करोड़ रुपये से अधिक की परियोजाएं बंगाल से बाहर जा चुकी हैं। बड़े उद्योग घरानों के साथ ही एनटीपीसी, सेल, इस्को व बंदरगाहों की परियोजनाएं ठंडे बस्ते में हैं। भू- माफिया ने परियोजनाओं की प्रस्तावित जमीनें स्थानीय किसानों से औने-पौने दामों पर खरीद कर दबा ली है। ऐसे में सटीक रोडमैप के बगैर कैसे साकार होगा औद्योगिक विकास का सपना?’

विपक्ष का यह रुख देखकर मुख्यमंत्री औद्योगिक विकास के एजेंडे पर सक्रियता दिखाने में जुट गई हैं। अभी हाल में उद्योगपतियों के वैश्विक सम्मेलन में उन्होंने सरकार के कामकाज में पारदर्शिता से लेकर अपनी पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं की रंगदारी वसूली पर अंकुश लगाने तक का भरोसा उन्होंने उद्योगपतियों को दिया। उनका कहना है, ‘उद्योग फलने-फूलने चाहिए। वहीं से विकास के लिए धन आएगा।’