जल संकट और कारोबार, ओपिनियन पोस्ट

भूजल के बेलगाम दोहन से उपजी समस्या आज कितनी गंभीर हो चुकी है, यह किसी से छिपा नहीं है। हालत यह है कि देश में कई इलाकों में इसी वजह से भूजल का स्तर काफी नीचे चला गया है। इससे पीने के पानी का संकट पैदा हो गया है। खासकर दिल्ली में पिछले कई सालों से भूजल के लगातार गिरते स्तर को लेकर पर्यावरण विशेषज्ञों और सरकारी महकमों की ओर से चिंता जताई जाती रही है। मगर इस समस्या के गहराते जाने के कारणों पर शायद ही कभी गंभीरता से ध्यान दिया गया या इसके लिए जिम्मेदार लोगों और कंपनियों के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई की गई हो। जबकि संबंधित महकमों की नजर में कुछ भी छिपा नहीं होता है। मगर कुछ समय पहले दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति ने बोतलबंद पानी के कारोबार में प्रतिष्ठित ब्रांड के तौर पर देखी जाने वाली एक बड़ी कंपनी बिसलेरी इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ जो कार्रवाई की है, वह अपने आप में एक उदाहरण है।
यही नहीं, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के अधिकारी ने पिछले साल मार्च में संयंत्र के निरीक्षण के दौरान इन अनियमितताओं पर कारण बताओ नोटिस जारी किया तो कंपनी ने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया। यह समझना मुश्किल है कि बिसलेरी के आवेदनों को दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति की ओर से खारिज किए जाने के बावजूद कंपनी ने अवैध तरीके से यह काम कैसे जारी रखा। इसलिए दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति ने उचित ही बिसलेरी के संयंत्र को तुरंत बंद करने और इसकी बिजली आपूर्ति रोकने के आदेश दिए हैं।

इससे पहले राष्ट्रीय हरित पंचाट कई मौकों पर दिल्ली सरकार की इस बात के लिए खिंचाई कर चुका है कि वह गैरकानूनी तरीके से भूजल का दोहन कर पानी का व्यवसाय करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। एक ओर, पेयजल की समस्या लगातार बनी हुई है, वहीं बोतलबंद पानी का कारोबार सालाना दस हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का आंकड़ा पार कर चुका है और यह तेजी से बढ़ रहा है। इससे ज्यादा अफसोस की बात क्या होगी कि हमारी सरकारें पानी को एक आर्थिक उत्पाद मानने की दलील को आगे बढ़ाने में लगी हैं। आज भी देश की एक बड़ी आबादी ऐसी है, जिसे पीने का साफ पानी नहीं मिलता, वहीं इसके कारोबार का एक विचित्र पहलू यह है कि कंपनियों को आमतौर पर पानी की कोई कीमत नहीं चुकानी पड़ती है, जबकि वे इस नैसर्गिक संसाधन को बेच कर न सिर्फ भारी मुनाफा कमाती हैं, बल्कि बड़े पैमाने पर पानी बर्बाद करती हैं। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि एक लीटर बोतलबंद पानी या कोकाकोला बनाने में करीब ढाई गुना पानी बर्बाद होता है। सर्वोच्च न्यायालय काफी पहले अपने एक फैसले में कह चुका है कि साफ पेयजल नागरिकों का संवैधानिक अधिकार है।