नैनीताल। नैनीताल हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने के केंद्र सरकार के फैसले को गुरुवार को खारिज कर दिया। इसके साथ ही राज्य में हरीश रावत सरकार बहाल हो गई है। कोर्ट ने हरीश रावत को 29 अप्रैल को विधानसभा में शक्ति परीक्षण का भी आदेश दिया है। बागी विधायकों के बारे में कोर्ट ने कहा कि उन्हें अपने किए की सजा भुगतनी होगी। यानी विधानसभा अध्यक्ष ने नौ बागी विधायकों को बर्खास्त करने का जो फैसला किया था वो बहाल रहेगा। इस मसले पर एकल पीठ में अलग से सुनवाई चल रही है। 23 अप्रैल की सुनवाई में अगर एकल पीठ उन्हें राहत देती है तभी ये विधायक शक्ति परीक्षण में हिस्सा ले सकेंगे। नहीं तो उनके विधानसभा में प्रवेश पर भी पाबंदी रहेगी।
उत्तराखंड हाईकोर्ट के इस फैसले से न सिर्फ केंद्र सरकार बल्कि भाजपा की भी किरकिरी हुई है। माना जा रहा है कि केंद्र सरकार इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी। मगर अभी तक इस बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ आगे की रणनीति बनाने में जुट गए हैं। सुप्रीम कोर्ट जाने से पहले सरकार और पार्टी इस मसले पर पूरी तरह से संतुष्ट हो जाना चाहती है।
हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने केंद्र के फैसले को असंवैधानिक करार देते हुए राज्य में 18 मार्च से पहले की स्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि धारा 356 का उपयोग सुप्रीम कोर्ट के तय नियमों के खिलाफ किया गया था। कोर्ट ने यह भी कहा कि कांग्रेस के नौ बागी विधायकों को अपने किए की सजा भुगतनी होगी। कांग्रेस के नौ बागी विधायकों के भाजपा के साथ मिल जाने पर राज्य सरकार अल्पमत में आ गई थी। राज्यपाल केके पॉल ने रावत सरकार को 28 मार्च को शक्ति परीक्षण करने को कहा था मगर केंद्र ने इससे एक दिन पहले ही उत्तराखंड में 27 मार्च को राष्ट्रपति शासन लगा दिया। राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के केंद्र के फैसले को हरीश रावत ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इसी याचिका पर अदालत ने यह फैसला दिया है।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी
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लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित सरकार को हटाना अराजकता का अहसास कराता है और उन आम लोगें के विश्वास को डिगाता है जो कि तप्ती धूप, बारिश और बर्फ के थपेड़ों का सामना करते हुए अपने मताधिकार का उपयोग करते हैं।
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राष्ट्रपति शासन के लिए अनुच्छेद 356 ‘असाधारण’ है। इसका सावधानी के साथ प्रयोग किया जाना चाहिए।
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वहां जरूर तथ्य होंगे, उनको सत्यापित किया जाना चाहिए कि क्या वे राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के लिए संतोषजनक और प्रासंगिक है।
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सरकार के लिए, विधायकों को अयोग्य करार दिया जाना अनुच्छेद 356 लगाने के लिए प्रासंगिक नहीं हो सकता था।
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यदि कल आप राष्ट्रपति शासन हटा लेते हैं और किसी को भी सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर देते हैं तो यह न्याय का मजाक उड़ाना होगा। क्या (केंद्र) सरकार कोई प्राइवेट पार्टी है?
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कोई भी हस्तक्षेप जो कानूनी तौर पर नहीं किया गया, वह पूरी तरह से आम आदमी के जीवन में हस्तक्षेप के रूप में देखा जाएगा।
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भारत में संविधान से ऊपर कोई नहीं है। इस देश में संविधान को सर्वोच्च माना गया है। यह कोई राजा का आदेश नहीं है जिसे बदला नहीं जा सकता है। राष्ट्रपति के आदेश की भी न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। लोगों से गलती हो सकती है फिर चाहे वह राष्ट्रपति हों या जज।
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विधायकों के खरीद-फरोख्त और भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद बहुमत परीक्षण का एकमात्र संवैधानिक रास्ता विधानसभा में शक्ति परीक्षण है जिसे अब भी आपको करना है।
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क्या आप लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को नाटकीय ढंग से पांचवें वर्ष में गिरा सकते हैं? राज्यपाल ही ऐसे मामलों में फैसले लेता है। वह केंद्र का एजेंट नहीं है। उसने ऐसे मामले में फैसला लेते हुए शक्ति प्रदर्शन के लिए कहा है।
इससे पहले राज्य में राष्ट्रपति शासन पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए केंद्र से पूछा था कि क्या इस केस में सरकार प्राइवेट पार्टी है? बीजेपी के बहुमत के दावों के बीच कोर्ट ने केंद्र से एक हफ्ते तक राष्ट्रपति शासन नहीं हटाने का भरोसा देने के लिए कहा था। जब केंद्र ने कहा कि वह इस बात की कोई गारंटी नहीं दे सकता कि राज्य से राष्ट्रपति शासन हटाया जाएगा या नहीं, तो हाई कोर्ट ने कहा कि आपके इस तरह के व्यवहार से हमें तकलीफ हुई है। कल अगर आप राष्ट्रपति शासन हटा देते हैं और किसी को सरकार बनाने के लिए बुला लेते हैं तो यह न्याय के साथ मजाक होगा। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल की रिपोर्ट में भी राज्य में संवैधानिक संकट का जिक्र नहीं था। फिर भी संवैधानिक संकट का हवाला देकर राष्ट्रपति शासन लगाया गया। पीठ ने केंद्र से कहा कि वो कोर्ट के साथ खेल रहे हैं।
मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जहां हाईकोर्ट के फैसले को ‘लोगों की जीत’ बताया है, वहीं भारतीय जनता पार्टी ने कहा है कि उसे अदालत के फैसले पर आश्चर्य नहीं है। रावत ने कहा, अंततः सत्य की विजय हुई, हम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते है । इससे उत्तराखंड के घाव पर मरहम लगा है। अगर केंद्र सहयोग करे तो मैं घावों को भूलने के लिए तैयार हूं। हम कोर्ट के आदेशानुसार 29 अप्रैल को बहुमत साबित करेंगे। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि ये संविधान की जीत है और इसके लिए भाजपा को माफी मांगनी चाहिए। भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि सुनवाई के पहले ही दिन से जिस प्रकार माननीय जज साहब टिप्पणी कर रहे थे उससे यह लग रहा था कि ऐसा ही फैसला आएगा। इसलिए हमें कोई आश्चर्य नहीं है। उन्होंने कहा कि हरीश रावत सरकार कल भी अल्पमत थी और आज भी है जिसका फैसला 29 अप्रैल को विधानसभा में हो जाएगा। वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस फैसले को मोदी सरकार के लिए बेहद शर्मनाक करार देते हुए ट्विटर पर ट्वीट किया कि प्रधानमंत्री को चुनी हुई सरकारों में दखल देना बंद करना चाहिए और लोकतंत्र का सम्मान करना चाहिए।
भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने इस फैसले के बाद अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल को हटाने की मोदी सरकार से मांग की है। उनका कहना है कि उन्होंने ठीक तरीके से होम वर्क नहीं किया। बीजेपी नेता ट्वीट करते हुए कहा, समय आ गया है कि बीजेपी सरकार के लिए नए AG और SG की नियुक्ति की जाए। कांग्रेस के बागी नेता विजय बहुगुणा ने हाईकोर्ट के फैसले से असहमति जताते हुए कहा कि जहां तक मेरी कानूनी समझ है यह फैसला सही नहीं है। मैं केंद्र सरकार को सलाह दूंगा कि वो सुप्रीम कोर्ट में जाएं। सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला होगा वो सर्वमान्य होगा।
उत्तराखंड विधानसभा की स्थिति
कुल सीटें- 71
कांग्रेस- 36 (9 बागी विधायकों को मिलाकर)
भाजपा- 27
उत्तराखंड क्रांति दल- 1
निर्दलीय- 3
बीएसपी- 2
बीजेपी निष्कासित- 1
मनोनीत- 1
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