रमेश कुमार ‘रिपु’

मध्य प्रदेश में संसदीय सचिव का पद नहीं है, लेकिन स्कूल और कॉलेज की जन भागीदारी समितियों में 116 विधायकों को नियुक्त किया गया है। आप के संयोजक आलोक अग्रवाल ने डेढ़ साल पहले तत्कालीन राज्यपाल स्व. रामनरेश यादव को पत्र लिखकर 116 विधायकों के लाभ के पद पर होने की शिकायत की थी। लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। आम आदमी पार्टी ने 22 जनवरी को चुनाव आयोग के कार्यालय निर्वाचन सदन के सामने प्रदर्शन किया। आम आदमी पार्टी ने चुनाव आयोग से अपनी शिकायत में जनभागीदारी समिति में नियुक्त विधायक को इस आधार पर चुनौती दी है कि ऐसे सरकारी पद पर नियुक्त जिसमें उन्हें संस्था एलाउंस और दूसरे शासकीय फायदे मिलते हैं, वह संविधान के आर्टिकल 102 (1) अ का उल्लंघन है। इसलिए इन सभी 116 विधायकों की सदस्यता तुरंत समाप्त की जाए। इस पर चुनाव आयोग ने मुख्य सचिव बसंत प्रताप सिंह को नोटिस देकर इन 116 विधायकों को स्कूल और कॉलेज की जनभागीदारी समितियों में नियुक्त किए जाने से संबंधित नोटिफिकेशन की कॉपी भी मांगी है। साथ ही 116 विधायकों को जनभागीदारी समिति के सदस्य होने के एवज में मिल रही सरकारी सुविधाओं की भी जानकारी देने को कहा है। इन 116 विधायकों में तीन कैबिनेट मंत्री अर्चना चिटनिस, जयभानु सिंह पवैया और रुस्तम सिंह शामिल हैं। दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार के विधायकों की तरह मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार के दो मंत्री लाभ के दो पदों में फंसते नजर आ रहे हैं। प्रदेश के स्कूली शिक्षा मंत्री पारस जैन और राज्य मंत्री दीपक जोशी भारत स्काउट एंड गाइड में भी पोस्ट होल्डर हैं। पारस जैन इसके चीफ कमिश्नर हैं और दीपक जोशी उपाध्यक्ष के पद पर हैं। मुरैना नगर निगम के महापौर अशोक अर्गल इस संस्था के प्रदेश अध्यक्ष हैं। गौरतलब है कि भारत स्काउट को करोड़ों का बजट मिलता है। चीफ कमिश्नर के पास संस्थान के सारे वित्तीय अधिकार होते हैं। स्थानांतरण और प्रबंधन के भी अधिकार हैं। चीफ कमिश्नर पारस जैन को आॅफिस और कार मिली हुई है। उपाध्यक्ष दीपक जोशी को बैठक का भत्ता मिलता है। भारत स्काउट के निगरानी के लिए कोई संस्था नहीं। हर जिले में प्रोटोकॉल और प्रतिष्ठा के साथ सम्मान भी मिलता है।
हाई कोर्ट के अधिवक्ता राजेन्द्र तिवारी राजू कहते हंै, ‘भारतीय संविधान के अनुच्छेद 102(1)अ के तहत सांसद या विधायक ऐसे किसी और पद पर नहीं रह सकते जहां वेतन और भत्ते समेत दूसरे फायदे मिलते हों। इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 191(1)ए और जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 9 के तहत भी आॅफिस आॅफ प्रॉफिट में सांसदों-विधायकों को अन्य पद लेने से रोकने का प्रावधान है।’ 