सुप्रिया यादव

शोभा से दो महीने पहले मिली थी जब वह काम मांगने विरार वाले मेरे घर आई थी। मेरी बिल्डिंग के वॉचमैन ने उसे बताया था कि हमारे यहां घर का काम करने वाली की जरूरत है। काम तो हम दे न सके क्योंकि तब तक कोई दूसरी कामवाली आ गई थी लेकिन बातचीत का सिलसिला कुछ ऐसा चला कि उसकी पूरी कथा कह-सुन ली गई। जैसा नाम शोभा, वैसा ही शोभित उसका स्वभाव-सुभाव और मन। और उतनी ही गुणवान भी। दस साल से अकेले रह कर चार-पांच घरों में झाड़ू-पोछा, बर्तन, कपड़ा और खाना बनाने के कामों से अपना गुजारा करती है। रत्नागिरी की मूल रहिवासी शोभा कदम ने बीस साल की उम्र में माता-पिता के खिलाफ जाकर अपने से दो साल बड़े हैदराबादी लड़के शंकर राठौर से प्रेम विवाह कर लिया था।
शोभा शादी से पहले चप्पल कंपनी में काम करती थी। उसी कंपनी के सामने आॅटो रिक्शा के गैरेज में शंकर मकैनिक का काम करता था। कंपनी में आते-जाते शोभा और शंकर की अच्छी दोस्ती धीरे-धीरे प्रेम में परिवर्तित हो गई। प्रेम विवाह के लिए घरवालों से मंजूरी न मिलने पर उन्होंने उनके खिलाफ जा कर विवाह कर लिया। शंकर ने विवाह के बाद मकैनिक की नौकरी छोड़ आॅटो रिक्शा चलाना शुरू कर दिया। महीने के दस से पंद्रह हजार रुपये कमा लेता था। अच्छी आय के चलते शंकर ने शोभा का काम छुड़वा दिया था। शोभा एक सद्गृहिणी की तरह घर में रहती… एक बेटा हुआ प्यारा सा – हितेश, जिसकी देख-भाल करती…। दो-तीन साल बाद शोभा की एक पुरानी और अच्छी मित्र प्रेमा घर आने-जाने लगी। प्रेमा शादी से पहले शोभा के साथ चप्पल कंपनी में ही काम करती थी। दो-तीन साल तक साथ काम करते-करते दोनों अच्छी और खास सहेली बन गई थीं। प्रेमा को भी शादी के बाद नौकरी छोड़नी पड़ी थी। अब घर में रहती तो अक्सर शोभा के घर आ जाती और रहती भी। शोभा के भोले मन और सुभाव में अपनी मित्र के प्रति कभी कोई गलत भावना नहीं आई और शायद कभी आती भी नहीं… लेकिन एक दिन अचानक पता लगा कि शंकर ने उसकी प्रिय मित्र प्रेमा के साथ शादी कर ली और प्रेमा ने अपने पूर्व पति से तलाक भी ले लिया। तब उसे अहसास हुआ कि उन दोनों का रिश्ता पिछले दो-तीन साल से छिप-छिपाके ही चल रहा था।
शोभा के पांव तले की जमीन खिसक गई…। पति ने शोभा को इतना कमजोर समझा कि न ही सामने से सूचित करने की जहमत उठाई और न ही जान जाने के बाद शोभा के पूछने पर किसी तरह का जवाब देना उचित समझा। उसने इसे अपनी नियति मानकर उसी दिन अपने पति का घर छोड़ दिया…। प्रेम विवाह को लेकर वह मां-बाप से पहले ही विरोध कर चुकी थी तो जाती कहां? ऐसे मुश्किल समय में उसकी बड़ी बहन ने रहने-खाने का सहारा दिया…। पर स्वाभिमानी शोभा ने कुछ महीनों में ही घरों में काम करना शुरू कर दिया और फिर अलग घर तलाश कर बहन के घर रहना छोड़ दिया।
उधर, शोभा की सास ने शंकर की दूसरी पत्नी प्रेमा के कारण बेटे को घर से निकाल दिया। घरों में झाड़ू-पोछा-बर्तन आदि करके पिछले दस-बारह साल से वह अपना भरण-पोषण कर रही है। अब उसकी उम्र चालीस साल हो चुकी है। शोभा ने अपने काम व नया जीवन शुरू करने के चक्कर में उन दिनों अपने कलेजे पर पत्थर रखकर बेटे को सास के पास छोड़ा था। मगर फिर सास ने उसे जबरदस्ती रख लिया। अब वह उसे मां (शोभा) के पास आने ही नहीं देती…। हितेश अब 17 साल का हो गया है लेकिन मां से बात भी नहीं करता, मिलने को तो कौन कहे… ऐसा कुछ सिखा-पढ़ा के बरगला दिया है…। शोभा के बुलाने पर आज आता हूं, कल आता हूं कहता है पर आता कभी नहीं…।
मुझसे उसने जो बातें की वो किसी से न कहने की शर्त पर ही की…। पति पर मुकदमा क्यों नहीं किया? यह पूछने पर उसने कहा कि उसे पता ही नहीं था कि ऐसा भी होता है। और कर भी देती तो शादी का प्रमाण कहां से लाती…? दूसरी शादी क्यों नहीं की? यह पूछने पर शोभा की आंखों में आंसू आ गए… और जवाब सवालिया अंदाज में मिला कि कोई ऐसा होगा जो यह सब जानकर भी शादी करेगा…? इन बातों पर विश्वास करना और शोभा जैसी सीधी-अनाड़ी के होने पर पता नहीं कोई यकीन करेगा या नहीं, मैं भी नहीं करती, यदि कोई और कहता, पर सामने देख-सुन लेने के बाद कैसे न करूं विश्वास…? शोभा को बेटे के अपने पास आने की आस अब भी है। अपने सारे भ्रमों की तरह इस भ्रम को भी लिए शोभा संघर्ष भरे जीवन जिये जा रही है…।