उमेश सिंह

काशी-काबा के राही’ शायर अनवर जलालपुरी ने इहलीला का संवरण कर लिया। यह लिखने में हाथ कांप रहे हैं, लेकिन इस सच को भारी मन और रुंधे गले से स्वीकार करना ही पड़ेगा। गोविंद साहब और संत पल्टूदास के नग जलालपुर से अदब की यह ज्योति जली थी, जो समूची दुनिया में शब्दों की रोशनी बिखेर लखनऊ में बुझ गई। शायर अनवर जलालपुरी यादों के पन्नों में चले गए लेकिन उनकी स्मृतियां फड़फड़ा रही हैं। जब वे गीता को उर्दू में ढाल रहे थे, पिरो रहे थे, तर्जुमा कर रहे थे, उसी दौर में तकरीबन आठ बरस पहले गीता पर उनके आकर्षण को लेकर लंबी चर्चा हुई थी। तब वे सिर्फ 40 श्लोक ही ढाल पाए थे। अनवर साहब ने तत्समय कहा था कि गीता, उपनिषद और कुरान मानवता की धरोहर हैं। हमने कुरान पर काम किया। फिर सोचा कि जिस मिले जुले परिवेश में हम रहते हैं, उसमें गीता को भी समझने की जरूरत है। बताया था कि १९८० में यह प्ररेणा मेरे भीतर जागी थी। रमते-रमते वे इस कदर रम गए कि गीता उनके रोम- रोम में बस गई। २८ दिसंबर को ब्रेन हैमरेज होने के कारण उन्हे लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल कालेज में भर्ती कराया गया जहां दो जनवरी की सुबह अदब के इस सितारे की रोशनी बुझ गई लेकिन उनके शब्द सदियों तक हमको रोशन करते रहेंगे।
हम काशी काबा के राही, हम क्या जाने झगड़ा बाबा… अनवर जलालपुरी के इस शेर से उनके अंतर्मन में प्रज्ज्वलित ‘सांप्रदायिक सौहार्द की लौ’ की अनुभूति की जा सकती है। अयोध्या से महज 50 मील दूर जलालपुर के वाशिंदे अनवर जलालपुरी गीता की रूमानियत पर कुछ ऐसे रीझे कि उन्होंने देववाणी संस्कृत में लिखी गई गीता के उर्दू तर्जुमा का बीड़ा उठाया और जाते-जाते इसे पूरा कर किताब की शक्ल में हमको दे गए। जलालपुर की माटी को गोविंद साहब और संत पल्टूदास को जन्म देने का गौरव हासिल है। गोविंद साहब को आचार्य राम चंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य का इतिहास में कबीर की निर्गुण परंपरा का बड़ा संत बताया है जबकि संत पल्टूदास के साहित्य पर आचार्य रजनीश ‘ओशो’ इस कदर फिदा हुए कि अमेरिका में उन्होंने पल्टूदास पर कई माह तक प्रवचन किया। विल्वेडियर प्रेस इलाहाबाद से प्रकाशित पल्टूदास की वाणी पर ओशो ने ‘अजहूं चेत गवार’ और ‘दीपक बारा नाम का’ आदि कई किताबें लिख डाली है। दुनिया में सामासिक संस्कृति की खुशबू इसी जलालपुर से ताउम्र अनवर जलालपुरी भी बिखेरते रहे। जलालपुर कस्बे में हाफिज मोहम्मद हारुन के पुत्र के रूप में 6 जुलाई 1947 को जन्मे अनवर जलालपुरी वास्तव में विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। प्राथमिक शिक्षा स्थानीय स्तर पर ग्रहण करने के बाद उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से स्नातक और अलीगढ़ मुस्लिम विवि से अंग्रेजी साहित्य में एमए किया। आचार्य नरेंद्र देव इंटर कालेज जलालपुर में अंग्रेजी प्रवक्ता नियुक्त हुए। वे अंग्रेजी, उर्दू और अरबी के ज्ञाता थे। यहीं से उनके अंदर पैदा हुए अदब के बिरवा ने विशाल वटवृक्ष का रूप ले लिया। अनवर जलालपुरी के भीतर का साहित्य मेगा सीरियल अकबर द ग्रेट में उभरकर सामने आया। उन्होंने ख्यातिलब्ध इस धारावाहिक के लिए गीत और संवाद लेखन का कार्य किया। फिल्म डेढ़ इश्किया में नसीरुद्दीन शाह और माधुरी दीक्षित के साथ शायर और मंच संचालक की भूमिका निर्वाह कर शोहरत बटोरी।
पिछले चार दशक से राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर के कवि सम्मेलनों और मुशायरों में अनवर जलालपुरी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे। अरब राष्ट्रों में स्थित भारतीय दूतावासों में आयोजित मुशायरों का संचालन अनवर जलालपुरी के बिना फीका पड़ जाता था। उन्होंने अमेरिका, कनाडा, पाकिस्तान, इंग्लैंड सहित अरब राष्ट्रों में मुशायरों का संचालन कर अपने देश का नाम रोशन किया। सेवानिवृत्ति के बाद लखनऊ में रहते हुए शायर अनवर ने हिंदू धर्म के पवित्र गं्रथ गीता का काव्यात्मक अनुवाद उर्दू शायरी में किया तो देश के साहित्य जगत में एक नई चर्चा छिड़ गई। उन्हें यश भारती सम्मान से अलंकृत किया गया और उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया था। अनवर जलालपुरी ने तोश-ए आखिरत, उर्दू शायरी में गीतांजलि, जागती आंखें, खुशबू की रिश्तेदारी, खारे पानियों का सिलसिला, रौशनाई के सफीर, अपनी धरती अपने लोग, जरबे लाइलह, जमले मोहम्मद, बादअज खुदा, रहबरों से रहनुमा तक आदि पुस्तकें लिखीं। अदब के अक्षर, कलम का सफर और सफीराने अदब भी उनके हिस्से में है। जलालपुर में मिर्जा गालिब इंटर कालेज की स्थापना कर उन्होंने शिक्षा की अलख जगाई।
अनवर साहब को उनके गीत से ही याद किया जाता है, क्योंकि वे शब्दवंशी थे। ‘कोई पूछेगा जिस दिन वाकई ये जिंदगी क्यों है/ जमीं से एक मुट्ठी खाक लेकर हम उड़ा देंगे…।’ संत पल्टूदास ने इसी जलालपुर से मध्य युग में लिखा था-‘डाल-डाल अल्लाह लिखा है, पात-पात पर राम।’ तो उसी जलालपुर से अनवर साहब ने कहा- ‘हम काशी काबा के राही/ हम क्या जानें झगड़ा बाबा/ अपने दिल में सबकी उल्फत/ अपना सबसे रिश्ता बाबा/ हर इन्सा में नूर खुदा है/ सारी किताबों में लिखा है/ वेद हो या इन्जीले मोकद्दस, हो कुरान कि गीता बाबा…।’ यह भी पूरी त्वरा से लिखा, ‘प्यार ही अपना दीन धरम है/ प्यार खुदा है प्यार सनम है/ दोनों ही भगवान के घर हैं/ मस्जिद हो कि शिवाला बाबा/ मर जाने के बाद तो सबका होता है अंजाम एक सा/ दोनों का है एक ही मतलब/ अर्थी हो कि जनाजा बाबा…।’
‘मेरे जमीर की चादर पे कोई दाग नहीं/ ताउम्र इसे आंसुओं से धोया है/ यूं मेरे कब्र की महकेगी एक दिन मिट्टी/ राहे हयात में मैने गुलाब बोया है।’ अनवर जलालपुरी के नमाज-ए-जनाजा में उमड़ी भीड़ को देख उनके शागिर्द रहे अनिल जलालपुरी का यह शेर बरबस याद आने लगा। दलालटोला स्थित पुश्तैनी घर पर देश के कोने कोने से आए लोगों ने उन्हें खिराजे अकीदत पेश की। उनकी शव यात्रा दलालटोला से निकल विभिन्न गलियों में होते हुए रूहाबाद कब्रिस्तान पहुंची जहां उन्हें नमाज-ए-जनाजा के बाद सुपुर्दे खाक किया गया। अदबी जगत की नामचीन हस्तियां राजेंद्र प्रसाद त्रिपाठी ‘राहगीर’, डॉ. उर्फी, डॉ. कैशर अलीम, डॉ. नैयर लखनवी, डॉ. हरि फैजाबादी, शाहिद जमाल, गौहर जौनपुरी, भालचंद्र त्रिपाठी, मैकस आजमी, शोला टांडवी, फाखिर जलालपुरी और सियासत से जुड़े लोग पूर्व मंत्री राममूर्ति वर्मा, गोपीनाथ वर्मा, विधायक रीतेश पांडेय, एमएलसी हीरालाल यादव, जिला पंचायत अध्यक्ष सुधीर सिंह ‘मिंटू’ डॉ. राजेश सिंह आदि ने नम आंखों से अंतिम विदाई दी। 