इन तीन बातों से जम्मू कश्मीर की स्थिति को समग्रता से समझने में हमें आसानी होगी। पहली बात- भारत के संविधान के तहत जम्मू कश्मीर राज्य भारत का राज्य है। संविधान यह भी कहता है कि जम्मू कश्मीर का एक विशेष दर्जा है। ऐसा संविधान के कुछ अनुच्छेदों के तहत है। वास्तविक स्थिति यह है कि इस राज्य का एक भौगोलिक हिस्सा पाकिस्तान के अधीन है। और कुछ हिस्सा पाकिस्तान ने चीन को सौंप दिया है। यह हिस्सा पाकिस्तान ने चीन को 1963 में एक समझौते के तहत दिया था जिसमें यह भी लिखा हुआ है कि इस पर अंतिम निपटारा जम्मू कश्मीर मामला हल हो जाने के बाद ही होगा। दूसरी बात- 1972 में शिमला समझौता के तहत भारत और पाकिस्तान ने यह तय किया था कि भारत-पाकिस्तान के संबंध द्विपक्षीय होंगे और इसमें किसी भी तीसरे देश का हस्तक्षेप या प्रभाव नहीं होगा। भारत और पाकिस्तान के बीच जितने भी मसले हैं उनका समाधान शांतिपूर्ण और द्विपक्षीय बातचीत के जरिये होगा।

तीसरी बात- यह साफ है कि भारत की नीति दो जुलाई 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के दस्तखत से हुए शिमला समझौते की बुनियाद पर आधारित है। जब भी उचित समय होगा भारत-पाकिस्तान के बीच और मसलों के साथ साथ जम्मू कश्मीर पर भी बातचीत होगी। जहां तक भारत का पक्ष है तो उसकी पाकिस्तान से बातचीत का केंद्र जम्मू कश्मीर का वह हिस्सा होगा जो पाकिस्तान के अधीन है। भारत के संविधान के तहत जो जम्मू कश्मीर के उसहिस्से पर पाकिस्तान ने गैरकानूनी तौर पर जबरन कब्जा जमा रखा है।

इससे स्पष्ट होता है कि जम्मू कश्मीर राज्य की स्थिति के दो पहलू हैं। एक हमारा घरेलू पहलू है जो हमारे डोमेस्टिक ज्यूरिस्डिक्शन में आता है जिसका संबंध केंद्र और राज्य के बीच है। दूसरा पहलू विदेशी है क्योंकि पाकिस्तान के पास हमारी भूमि है। मुश्किल यह है कि इन दो पहलुओं का मिश्रण हो जाता है। हमें इन दोनों पहलुओं को अलग अलग करना है। इन मामलों का मिश्रण इसलिए हो जाता है क्योंकि पाकिस्तान ने कश्मीर के मामलों में हस्तक्षेप करने की क्षमता पा ली है। पाकिस्तान यह हस्तक्षेप आतंकवाद के जरिए कर रहा है। इसका मतलब यह है कि जम्मू कश्मीर राज्य में पाकिस्तान से जो आतंकवाद आ रहा है और उसका जो हस्तक्षेप हो रहा है- जब तक हम उसका समाधान नहीं करते हैं तब तक हम अपने घरेलू मामलों को हल नहीं कर पाएंगे। तो जम्मू कश्मीर के मामले में पहली जरूरत यह है कि हम वहां पाकिस्तान का हस्तक्षेप रोकें। वरना हम कुछ भी करते रहेंगे जब तक पाकिस्तान का हस्तक्षेप चलता रहेगा खास नतीजा हासिल होने वाला नहीं है।

बातचीत हमारी दशकों से चल रही है और वह असफल रही क्योंकि कश्मीर में जो राजनेता हैं, वहां अलग अलग शक्तियां या तत्व हैं, उन सबको जब तक पाकिस्तान के हस्तक्षेप से निजात नहीं मिलती तब तक वे जम्मू कश्मीर के घरेलू मामले को स्वतंत्र रूप से संबोधित नहीं कर पाएंगे। पर इसका यह तात्पर्य भी नहीं है कि हम कुछ न करें। घरेलू मामला है तो हमें जम्मू कश्मीर में बातचीत तो करनी ही है वहां के लोगों से। बातचीत की क्या शक्ल हो यह केंद्र सरकार को सोचना है, लेकिन बातचीत तो करनी ही चाहिए।

मेरा यह मानना है कि अगर हम जम्मू कश्मीर में सफलता चाहते हैं तो पाकिस्तान का हस्तक्षेप रोकना होगा। हालांकि हमें जम्मू कश्मीर में बातचीत के लिए तत्पर रहना चाहिए और उसमें किसी भी प्रकार की ढील नहीं देनी चाहिए लेकिन इतिहास यह दिखाता है कि वह कामयाब नहीं होती है। और कामयाब इसलिए नहीं होती है क्योंकि वहां पाकिस्तान का हस्तक्षेप चलता है। जम्मू कश्मीर में शांति लाने के हम बातचीत के कितने भी प्रयास कर लें वे असफल क्यों हुए- हमें यह सवाल पूछना चाहिए।

जम्मू कश्मीर के लोग काफी तकलीफ में हैं क्योंकि पाकिस्तान ने आतंकवाद को अपने हस्तक्षेप का औजार बनाया है। पाकिस्तान के दखल का लोगों के आम जीवन पर भी पड़ रहा है। इसे रोकना पहली जरूरत है।
—अजय विद्युत से बातचीत पर आधारित