संध्या द्विवेदी। 

रॉ टूथ ब्रस करेंगे तो किसी भी तरह की दांत और मसूड़ों की बीमारी से दूर रहेंगे। सुनने से यह रॉ टूथ ब्रश किसी आधुनिक ब्रश का अवतार लगता है। अब जरा एक एड देखिये।

देखा..! साहेब जैसे आप चौंके वैसे ही हम भी चौंक गये थे। ये कुछ और नहीं दातून है। गांव-देहातों में बूढ़े-बुजुर्ग आज भी इसका इस्तेमाल खूब करते हैं। नीम का दातून, बबूल का दातून और न जाने कितने तरह का दातून। योनी नाम की यूरोपियन कंपनी इसे बेच रही है।

पर भारत में यह चलन अब बुजुर्गियत की निशानी भर है। पुराने और पिछड़ेपन का एहसास है। ब्रश, साफ्ट ब्रश, अल्ट्रासॉफ्ट ब्रश। प्लास्टिक के रंग-बिरंगे ब्रश पर कोलगेट, पेप्सोडेंट और हां दंतकांति का भी इस्तेमाल अब कर रहे हैं। मस्टर्ड ट्री, यह भारत के रेगिस्तान वाले हिस्सों में पाया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम है, सैल्वेडोरा परसिका। कंपनी का दावा है-इससे दांतों का पीलापन जाता है, विषाणुओं के हमले को रोकता है। सांसों की बदबू खत्म करता है। दांतों में ठंडा लगना, मसूड़ों की बीमारी, दांतों का जल्दी गिरने जैसी कई बीमारियों में यह फायदेमंद है। दातुन दांतों को सेहतमंद रखता है। आयुर्वेद में ‘दंतवाधन विधि’ का विस्तृत जिक्र किया गया है। इसमें अर्क, नीम, बेर, बबूल और भी कई लकड़ियों के दातून का इस्तेमाल करने की सलाह दी गई है।

हालांकि यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि दातुन के पेटेंट क्या इस कंपनी के पास हैं? अगर हैं तो भारत अपने खास पेड़ों के दातून का पेटेंट कब करायेगा? वैसे यह खबर भी आई थी कि बाबा रामदेव भी दातुन की नई पैकेजिंग करके लाने वाले हैं..।