कई जिंदगियां लील गई रेलवे की लापरवाही

नई दिल्ली।

बुलेट ट्रेन का सपना देख रहे भारत में रेलवे इसी तरह लापरवाही दर लापरवाही करता रहेगा तो भला बुलेट ट्रेन कैसे चल पाएगी। शनिवार को देर शाम उत्‍तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के करीब खतौली में कलिंग-उत्कल एक्सप्रेस ट्रेन पलट गई। हादसे में अब तक 23 लोगों के मरने की पुष्टि हो चुकी है, लेकिन दूसरे समाचार स्रोतों से पता चला है कि 30 मौतें हो चुकी हैं।

आंकड़ा और भी बढ़ सकता है, क्‍योंकि ट्रेन की बोगियां काटकर शव निकाले जा रहे हैं। हादसे से यह साफ हो गया है कि ट्रेन से अगर आप सुरक्षित घर पहुंच जाएं तो ये यकीन कर लीजिए कि ये ऊपर वाले प्रभु की मेहरबानी थी। हमारे रेलवे के प्रभु का ध्‍यान रेल यात्रियों की सुरक्षा की ओर नहीं है।

ये उस देश की हकीकत है जहां सपना तो बुलेट ट्रेन का दिखाया जाता है, लेकिन जहां सफर अभी भी भगवान भरोसे ही पूरे होते हैं। पुरी से हरिद्वार जा रही उत्कल एक्सप्रेस शनिवार की शाम करीब पौने छह बजे मुजफ्फरनगर से खतौली के पास हादसे का शिकार हो गई और एक बार फिर ये साबित हो गया कि भारतीय रेलवे में सफर का मतलब है जोखिम।

ये मोदी मंत्रिमंडल के प्रभु यानी सुरेश प्रभु की रेलवे का हाल है, जहां मुसाफिरों की सुरक्षा अगली शताब्दी का सवाल जैसा लग रहा है। सुरेश प्रभु तमाम तरह की योजनाएं रेलवे में लागू कर रहे हैं। रेलवे को आधुनिक बनाने का अभियान चला रहे हैं लेकिन मुसाफिरों को सुरक्षित मंजिल तक पहुंचाने की प्राथमिकता लगता है उनके लिए ज्यादा मायने नहीं रखती।

खतौली से अभी कई दिल दहला देने वाली तस्वीरें आएंगी, क्योंकि चंद मिनट के भीतर मुसाफिरों से भरी ये ट्रेन मलबे में तब्दील हो गई। डिब्बे एक-दूसरे पर चढ़ने-उतरने लगे,  जैसे ये इस्पात से नहीं तीलियों से बने हों। हादसे पर सियासी मातम का सिलसिला शुरू हो चुका है।

अब आगे बड़ी चुनौतियां हैं। रात का अंधेरा घना हो चुका है। इसी अंधेरे में यात्रियों की जिंदगी बचानी होगी। दिल्ली से एनडीआरएफ की टीम पहुंच गई है। राज्य सरकार ने भी मोर्चा संभाला है। डॉक्टरों की टीम मौके पर है। फिलहाल हादसे की वजह का पता लगाया जा रहा है।

अब ये ढर्रे वाली बात है। एक हादसा हुआ है। अब इस हादसे की जांच होगी। कमेटी बनेगी। रिपोर्ट आएगी। लेकिन फिर क्या होगा, वही जो आज खतौली में हुआ है। खतौली न सही कोई और जगह सही, लेकिन फिर हादसे होंगे, फिर जानें जाएंगी। आपको ट्रेन से सफर करना है तो जान हथेली पर लेकर कीजिए। ये आपकी बला है। सिस्टम और सरकार को इससे क्या लेना-देना।

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