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हम इस बार एक ऐसा सच उजागर कर रहे हैं, जो कई सालों से सरकारी फाइलों में दफन था. यह ऐसा खुलासा है, जिसे जानकर आपके दिलोदिमाग को यकीनन एक झटका लगेगा. यह ऐसा सच है, जिसके बारे में किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा. यह हिंदुस्तान के एक प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश का पर्दाफाश है. ओपिनियन पोस्ट को हासिल हुए कुछ खुफिया दस्तावेज बताते हैं कि साल 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की हत्या की न सिर्फ साजिश रची गई, बल्कि उनकी हत्या के लिए इस्तेमाल होने वाले हथियार विदेश से लाए जा चुके थे. विदेश में सक्रिय एक इस्लामिक आतंकी संगठन को भारत से पैसे भी भेजे गए. वाजपेयी जी की हत्या कब करनी है, उसका समय भी मुकर्रर कर दिया गया था. यह एक अंतरराष्ट्रीय साजिश थी, जिसके तार कई देशों से जुड़े थे. सारी तैयारी हो चुकी थी, सिर्फ विदेश से सात आतंकियों को जम्मू-कश्मीर पहुंचना था और अटल बिहारी वाजपेयी की हत्या की साजिश को अंजाम देना था. कैसे नाकाम हुई यह साजिश? वाजपेयी जी की हत्या कौन कराना चाहता था? किस आतंकी संगठन ने अटल बिहारी वाजपेयी को मारने की सुपारी ली थी? विदेश में सक्रिय आतंकी संगठन को हिंदुस्तान से कैसे भेजे गए पैसे? जम्मू-कश्मीर का इस साजिश से क्या कनेक्शन है? वाजपेयी की हत्या की साजिश के हर राज का खुलासा कर रही है, ओपिनियन पोस्ट की यह एक्सक्लूसिव रिपोर्ट…

27 अक्टूबर, 2013 पटना का गांधी मैदान खचाखच भरा था. नरेंद्र मोदी ‘हुंकार रैली’ को संबोधित कर रहे थे. इसी दौरान वहां धमाकों की आवाज सुनाई दी. मंच से करीब 100 मीटर की दूरी पर अचानक अफरातफरी मच गई. लोगों का ध्यान नरेंद्र मोदी के भाषण पर था. मोदी ने लोगों से कहा, पटाखे न फोड़ें और आराम से शांतिपूर्वक अपने घर को जाएं. वहां मौजूद लोगों को उस वक्त इस बात की भनक तक नहीं लग सकी कि वे एक आतंकी हमले के बीच से निकल कर जिंदा लौट रहे हैं. अगर मंच से मोदी ने अक्लमंदी न दिखाई होती, तो बम धमाके से ज्यादा लोग भगदड़ में मारे गए होते. लोगों की जान तो बच गई, लेकिन बाद में जब खुलासा हुआ, तो लोगों के होश उड़ गए. गांधी मैदान में कुल नौ  बम मिले थे. एक बम तो ठीक मंच के नीचे लगा मिला, जिसका डेटोनेटर खराब था, नहीं तो अनर्थ हो गया होता. इस हादसे में छह लोगों की मौत हुई थी. जांच से पता चला कि इस घटना के पीछे स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी सिमी का हाथ था, जिसका मकसद नरेंद्र मोदी की हत्या करना था.

हिंदुस्तान दुनिया का एक बड़ा और शक्तिशाली देश है. यहां के प्रधानमंत्री समेत सभी बड़े नेताओं को उच्चस्तरीय सुरक्षा मिली हुई है, जिसे भेदना काफी मुश्किल काम है. यह सुरक्षा इसलिए दी जाती है, क्योंकि भारत के प्रधानमंत्री तो दूर, अगर किसी राष्ट्रीय नेता की भी हत्या हो जाती है, तो उसका अंतरराष्ट्रीय असर होता है और वैश्विक स्तर पर व्यापक प्रतिक्रिया होती है. इसलिए यह कोई आसान काम नहीं है कि दो-चार अपराधी ऐसी योजना बना लें. भारत अब तक दो प्रधानमंत्रियों को खो चुका है. इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था विश्वस्तरीय कर दी गई है. लेकिन, इसके बावजूद प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रचे जाने की खबरें लगातार आती रहती हैं. मई, 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंच को बम धमाके से उड़ा देने की खबर व्हाट्सऐप पर फैली, जिससे देश की सुरक्षा एजेंसियों में हडक़ंप मच गया. इसके बाद फरवरी, 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान एक पुलिस अधिकारी ने दावा किया कि मऊ में रैली के दौरान प्रधानमंत्री मोदी पर रॉकेट लॉन्चर से हमला हो सकता है. रैली स्थल को पूरी तरह सैन्य छावनी में तब्दील कर दिया गया. रैली हुई, लेकिन कोई हादसा नहीं हुआ. इसके बाद जून, 2017 में केरल के डीजीपी टीपी सेन कुमार ने कोच्चि में प्रधानमंत्री मोदी पर आतंकी हमले की साजिश का खुलासा किया. किसी राज्य के पुलिस महकमे के मुखिया के दावे को खारिज नहीं किया जा सकता है. लेकिन, उन्होंने इस आतंकी खतरे के बारे में कोई भी जानकारी सार्वजनिक नहीं की. जून, 2018 में भी खबर आई कि माओवादी प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश रच रहे हैं. कई लोगों की गिरफ्तारियां भी हुईं और मामले की जांच अब भी जारी है.

narendra-modiइन तमाम घटनाओं से एक बात साफ है कि हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री पर आतंकी हमले का खतरा हमेशा बना रहता है. लेकिन, सवाल यह है कि वे कौन लोग हैं, जो भारत के दुश्मन हैं. समस्या यह है कि प्रधानमंत्री पर मंडराने वाले खतरों के बारे में पुलिस और सरकार लोगों को जानकारी नहीं देती. आतंकियों की साजिश के बारे में लोगों को बताया नहीं जाता. यही वजह है कि कभी-कभी इतने गंभीर मामले पर भी राजनीति शुरू हो जाती है. कभी इसे चुनाव से जोड़ दिया जाता है, तो कभी राजनीति से. लेकिन, ओपिनियन पोस्ट को मिली जानकारी वाकई चौंकाने वाली है. सवाल यह है कि भला अटल बिहारी वाजपेयी की हत्या कौन कराना चाहता था? अटल बिहारी वाजपेयी आजाद भारत के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक थे. प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने एक भी ऐसा फैसला नहीं लिया, जिसे विवादित कहा जा सके. उन्हें हर जाति, धर्म और वर्ग का प्यार मिला. भारतीय जनता पार्टी के विरोधी भी उनकी तारीफ करते थे. फिर उन्हें मारने की कोशिश कौन कर रहा था? हमारी इंवेस्टिगेशन के दौरान जो जानकारी सामने आई, वह वाकई होश उड़ाने वाली है.

जयपुर का फिलीपींस कनेक्शन

ओपिनियन पोस्ट के पास एक टॉप सीक्रेट दस्तावेज है, जो बताता है कि अटल बिहारी वाजपेयी की हत्या की साजिश रची गई थी. ऑफिस ऑफ द स्पेशल कमिश्नर ऑफ पुलिस (सिक्योरिटी एंड ऑपरेशन्स) दिल्ली द्वारा विभाग को आंतरिक रूप से सूचनार्थ साझा किए गए इस टॉप सीक्रेट दस्तावेज के मुताबिक, भारतीय खुफिया एजेंसी को एक विश्वस्त सूत्र से खबर मिली है कि एक विदेशी आतंकी संगठन भारत के प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश में जुटा है. इस बारे में जो जानकारियां मिलीं, वे चौंकाने वाली हैं. इस टॉप सीक्रेट दस्तावेज के मुताबिक, फरवरी 2002 में जयपुर स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की एक शाखा से 10 मिलियन डॉलर फिलीपींस के मनीला स्थित एक आतंकी संगठन को पहुंचाए गए. यह पैसा सीधे-सीधे नहीं भेजा गया, बल्कि इसे कई बैंक ट्रांजैक्शन के जरिये दक्षिणी फिलीपींस के मिंडानाव तक पहुंचाया गया. मिंडानाव ‘मोरो इस्लामिक लिबरेशन फ्रंट’ का केंद्र है. दस्तावेज के मुताबिक, इसमें से कुछ पैसा फिलीपींस में सक्रिय इस्लामिक आतंकी अबु सैय्याफ के पास भेजा गया. यह पैसा भारत के प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश को अंजाम देने के लिए दिया गया था.

अबु सैय्याफ की अटल जी से क्या दुश्मनी थी

अबु सैय्याफ एक खतरनाक इस्लामी आतंकी है, जो पहले सिर्फ फिलीपींस में सक्रिय था, फिर धीरे-धीरे उसने पूरे साउथ ईस्ट एशिया में अपने पैर पसार लिए. यह आतंकी संगठन वहाबी इस्लाम की हुकूमत कायम करना चाहता है. इसे ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इंडोनेशिया, जापान, मलेशिया, फिलीपींस, संयुक्त अरब अमीरात, ब्रिटेन एवं अमेरिका ने आतंकी संगठन घोषित कर रखा है. 1991 में बना यह आतंकी संगठन बम ब्लास्ट, ड्रग्स के कारोबार और अपहरण के साथ-साथ टारगेट किलिंग में माहिर है. इसका सीधा रिश्ता आईएसआईएस और अलकायदा से है. यह इंटरनेशनल इस्लामिक टेरेरिस्ट नेटवर्क का अहम हिस्सा है, जो साउथ-ईस्ट एशिया में सक्रिय है. सवाल यह है कि आखिर इस संगठन की अटल बिहारी वाजपेयी से क्या दुश्मनी थी? हमारी तहकीकात के दौरान पता चला कि जयपुर के बैंक से अबु सैय्याफ तक पैसे पहुंचाने वालों का रिश्ता कश्मीर और पाकिस्तान से था. दरअसल, कश्मीर में जिहाद और आजादी के नाम पर जो तहरीक चल रही है, उसके तार दुनिया भर में फैले हैं. अटल बिहारी वाजपेयी का पाकिस्तान और कश्मीर को लेकर नरम रुख आतंकी संगठनों और पाकिस्तानी सेना के लिए परेशानी का सबब था. हकीकत यह है कि कश्मीर में चल रहा जिहाद और अलगाववाद एक बिजनेस है. पाकिस्तानी सेना और कश्मीर के अलगाववादी-उग्रवादी संगठनों को भारत विरोध के लिए करोड़ों रुपये मिलते हैं. भारत और पाकिस्तान के बीच खराब रिश्ते इनके लिए फायदेमंद होते हैं. यही वे लोग हैं, जो भारत-पाकिस्तान के बीच रिश्ते सुधरने नहीं देना चाहते हैं. कश्मीर के नाम पर पूरी दुनिया में इनका नेटवर्क फैला हुआ है और इन्हें दुनिया भर से पैसे मिलते हैं.

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किसने ब्रिटेन पैसा भेजा

अटल बिहारी वाजपेयी की हत्या के लिए पैसे सिर्फ मनीला ही नहीं भेजे गए. टॉप सीक्रेट दस्तावेज में दूसरा खुलासा यह हुआ कि 1.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर ब्रिटेन भी भेजे गए. यह पैसा 23 फरवरी, 2002 को जर्मनी के हैमबर्ग के रास्ते इंग्लैंड पहुंचा था. इसे भी वाजपेयी की हत्या की साजिश को अंजाम तक पहुंचाने के लिए भेजा गया था. इस दस्तावेज में लिखा है कि आतंकवादी मई 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी की हत्या करने की तैयारी में जुटे थे. समझने वाली बात यह है कि अटल बिहारी वाजपेयी की हत्या की साजिश उस वक्त रची जा रही थी, जब हिंदुस्तान उथल-पुथल की स्थिति से गुजर रहा था. ठीक तीन महीने पहले यानी दिसंबर 2001 में आतंकवादियों ने देश की संसद पर हमला किया था, जिसमें साफ तौर पर कश्मीरी आतंकवादियों की संलिप्तता साबित हो चुकी थी. वाजपेयी सरकार ने सेना की टुकडिय़ां सीमा पर तैनात कर दी थीं. युद्ध जैसी स्थिति निर्मित हो चुकी थी. ऐसे में, अगर अटल बिहारी वाजपेयी की हत्या तो दूर, अगर उन पर हमले की कोशिश भी हो जाती, तो अनर्थ हो जाता.

इस टॉप सीक्रेट दस्तावेज में एक ऐसा खुलासा भी किया गया, जिससे हिंदुस्तान की सुरक्षा एजेंसियों के होश उड़ गए. दस्तावेज के मुताबिक, वाजपेयी की हत्या में इस्तेमाल होने वाले हथियार भी भारत पहुंच चुके थे. योजना के मुताबिक, चार आतंकवादियों को बैंकाक के रास्ते ब्रिटेन पहुंचना था, जहां वे तीन अन्य आतंकवादियों के साथ मिलकर प्रधानमंत्री वाजपेयी की हत्या का पूरा खाका बनाते, फिर अलग-अलग रास्ते से वे भारत आते, किसी अज्ञात जगह पर मिलते और उसके बाद हत्या की साजिश को अंजाम देते. आतंकवादियों ने अटल बिहारी वाजपेयी पर हमला करने के लिए मई 2002 को चुना था. यह वह वक्त था, जब हिंदुस्तान का सामाजिक ताना-बाना बिखरने की कगार पर था. अयोध्या में कारसेवा का कार्यक्रम चल रहा था, जिसकी वजह से तनाव था. यही नहीं, 27 फरवरी 2002 को गोधरा कांड हुआ, जिसके बाद गुजरात दंगे शुरू हो गए. मतलब यह कि अगर आतंकी अपनी साजिश को अंजाम देने में सफल हो जाते और ऐसे संकट काल के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी की हत्या हो जाती, तो देश में क्या होता, इसकी कल्पना मात्र से सिहरन पैदा हो जाती है, रूह कांप उठती है. आतंकवादियों ने एक फुलपू्रफ योजना बनाई थी. समय भी ऐसा चुना था, जिससे भारत को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचता. लेकिन, आतंकियों के नापाक इरादे कामयाब नहीं हुए.


पीएम की हत्या की साजिश मजाक नहीं है

महाराष्ट्र  पुलिस ने हाल में भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले की जांच के दौरान एक खुलासा किया था कि गिरफ्तार किए गए लोगों के पास से कुछ चौंकाने वाले दस्तावेज बरामद हुए हैं. दावा किया गया कि नक्सली संगठन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रच रहे हैं. पुलिस के मुताबिक, एक ईमेल में नक्सलियों ने कहा था, ‘साथियो, मोदी राज खत्म करने के लिए ठोस उपायों के बारे में सुझाव दें. हम लोग राजीव गांधी जैसी घटना पर विचार कर रहे हैं. एक अच्छा मौका है. हम असफल हो सकते हैं, लेकिन पार्टी को इस पर विचार करना चाहिए. उनके रोड शो को निशाना बनाना कारगर हो सकता है.’ यह खबर आते ही राजनीतिक दलों को एकजुट होकर ऐसी ताकतों की निंदा करनी चाहिए थी, लेकिन इस पर राजनीति शुरू हो गई. कांग्रेस के नेता संजय निरूपम ने तो यहां तक कह दिया, ‘मैं नहीं कह रहा कि यह पूरी तरह से झूठ है, लेकिन यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पुरानी चाल है. जब कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता गिरने लगती है, उनकी हत्या की साजिश रचे जाने की खबरें आने लगती हैं.’

कुछ विपक्षी नेता फौरन गैर जिम्मेदार बयान देकर सुर्खियां बटोरने में जुट गए. कुछ ने कहा कि पीएम की हत्या की साजिश बिना सिर-पैर वाली बात है. किसी ने कहा कि कोई साजिश ही नहीं है, मोदी जनता की सहानुभूति बटोरने के लिए ऐसी खबरें प्लांट करते हैं. समस्या इस बात की है कि यह एक अति संवेदनशील मामला है, इसलिए सरकार और सुरक्षा एजेंसियां आधिकारिक रूप से इसकी जानकारी नहीं दे सकती हैं. जहां तक प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश का सवाल है, तो भारत में दो प्रधानमंत्रियों इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या साजिश के तहत हो चुकी है. इंदिरा गांधी को उनके ही अंगरक्षकों ने गोलियों से भून डाला, वहीं राजीव गांधी को मानव बम बनी महिला ने मौत के घाट उतार दिया. ऐसे परिदृश्य में प्रधानमंत्री की जान को खतरे की आशंका नकारी नहीं जा सकती. जरूरत इस बात की है कि ऐसे मुद्दे पर देश एकजुट रहे.


आडवाणी भी थे निशाने पर

ओपिनियन पोस्ट के पास मौजूद इस टॉप सीक्रेट दस्तावेज के मुताबिक, इस खतरनाक साजिश के बारे में गृह मंत्रालय को पता चल चुका था. सूत्रों के मुताबिक, तीन विदेशी खुफिया एजेंसियों ने भारत को इस साजिश के बारे में पहले ही अलर्ट कर दिया, जिसके बाद भारतीय खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां एक्शन में आ गईं. प्रधानमंत्री वाजपेयी की सुरक्षा और भी कड़ी कर दी गई. इतना ही नहीं, इस दस्तावेज में बताया गया कि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ-साथ गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी पर भी हमला हो सकता है, क्योंकि आतंकी संगठन को पता था कि प्रधानमंत्री वाजपेयी की सुरक्षा व्यवस्था ऐसी है, जिसे भेदना नामुमकिन है. इसलिए वे लालकृष्ण आडवाणी को भी ‘टारगेट’ कर सकते हैं. इस खतरे को देखते हुए न सिर्फ आडवाणी, बल्कि कई दूसरे बड़े नेताओं की सुरक्षा भी बढ़ा दी गई. यह कहना पड़ेगा कि हिंदुस्तान की खुफिया-सुरक्षा एजेंसियां जिस तत्परता के साथ इस साजिश को नाकाम करने में सफल हुईं, वह काबिले तारीफ है. भारतीय खुफिया एजेंसियों ने आतंकियों तक पहुंचने वाले फंड को ट्रेस कर लिया था. यहां तक पता चल चुका था कि आतंकवादी थाईलैंड एवं ब्रिटेन से जम्मू-कश्मीर कब और कैसे पहुंचने वाले हैं. कश्मीर में कुछ पकड़-धकड़ भी हुई. आतंकियों को पता चल गया कि हिंदुस्तान में अब कोई भी हमला करना मुश्किल हो गया है. सुरक्षा एजेंसियों ने काफी मशक्कत करके साजिश में शामिल लोगों को ढूंढ निकाला था. भारत ही नहीं, फिलीपींस में भी सुरक्षा एजेंसियां आतंकी अबू सैय्याफ से जुड़े लोगों की तलाश में जुट गईं, जिसे अटल बिहारी वाजपेयी की हत्या की जिम्मेदारी दी गई थी.

अटल बिहारी वाजपेयी अब संसार में नहीं हैं. देश का प्रधानमंत्री कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि एक संस्था है. भारतीय लोकतंत्र का सबसे मजबूत स्तंभ है. इसलिए प्रधानमंत्री की जान पर हल्का सा भी खतरा देश के लिए खतरनाक हो सकता है. अटल बिहारी वाजपेयी की हत्या की साजिश रचना और उसके लिए सारा बंदोबस्त कर लेना अपने आप में यह साबित करता है कि देश के दुश्मन किस तरह भारत को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं, देश का माहौल बिगाडऩा चाहते हैं. इसलिए ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए. देश की जनता को हक है कि वह ऐसी साजिशों के बारे में जाने और इनसे निपटने के लिए एकजुट रह सके. अटल बिहारी वाजपेयी की हत्या की साजिश के बारे में अब तक कोई नहीं जानता था, क्योंकि इस बात को छिपाकर रखा गया. यह खबर जनता के सामने लाने के पीछे हमारा एक ही मकसद है कि देश के लोगों को यह पता होना चाहिए कि हिंदुस्तान के सामने किस तरह के खतरे हैं. और, ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए देश को एकजुट रहना कितना जरूरी है.