डॉ. एसएस गिल, कृषि अर्थशास्त्री

लंबे समय से कृषि क्षेत्र पूरी तरह से उपेक्षित है। कम हो रही बरसात, फसलों का उचित दाम नहीं मिलने से अब युवा खेती करना नहीं चाह रहा है। बदलते शहरों को देख कर गांव का युवा भी बदल रहा है। इसके साथ ही उसके सपने भी उतनी ही तेजी से बदल रहे हैं। मगर इस समय खेती के जो हालात हैं, उसमें तो ग्रामीण युवाओं के सपने पूरे होने से रहे। ऐसे में वे अपने सपनों को पूरा करने के लिए सरकारी नौकरी तलाश रहे हैं। उन्हें आरक्षण इसका सीधा और सरल उपाय नजर आ रहा है। हम यदि केंद्र व राज्य सरकार के बजट को देखें तो खेती के लिए बजट बहुत ज्यादा नहीं है। जो योजनाएं चल भी रहीं हैं, उसमें इतना झोल है कि किसान को उनका लाभ मिलता ही नहीं।

खेती में नई तकनीक आ नहीं रही। ग्रामीण युवा खास तौर पर खेती करने वाले परिवार के युवाओं को लेकर सरकार की कोई अलग से योजना नहीं है। लगातार जोत कम हो रही है, भूजल स्तर नीचे गिर रहा है, मौसम बदल रहा है। ऐसे में सरकारों को एक समग्र योजना तैयार करनी चाहिए जिससे खेती का विकास हो। अभी तक हरियाणा में जो एग्री कल्चर रिसर्च सेंटर हैं, उनके वैज्ञानिक प्रयोगशाला तक ही सीमित है। गांवों में जाना उन्हें पसंद ही नहीं है। ऐसा नहीं है कि खेती चौपट हो चुकी है, इसमें संभावनाएं नहीं बची हैं। लेकिन सरकार की नीतियां ऐसी हैं कि सारी संभावनाएं खत्म हुई लगती हैं। आज ग्रामीण युवाओं के सामने गांव में ही रोजगार के बहुत से मौके हैं लेकिन इनकी पहचान नहीं हो रही है। जो पहचान रहे हैं वह अच्छा कर रहे हैं। कई युवा हरियाणा और पंजाब में हैं जो खेती में बहुत बढ़िया कर रहे हैं।

haryana-jatकरनाल का सुलतान फिश फार्म हो या फिर यमुनानगर का दामला का धर्मबीर। फिश फार्म के चलते सुलतान आधा दर्जन देशों में घूम आया। वहीं धर्मबीर अनपढ़ होने के बाद भी चार देशों के किसानों को सफल खेती के गुर सिखा रहा है। लेकिन हरियाणा में इनके हुनर का लाभ लेने की सोच न सरकार में हैं और न कृषि विभाग में। तकनीक की बात करें तो हिसार यूनिर्वसिटी के बजट का ज्यादातर हिस्सा तो वेतन पर ही खर्च हो जाता है। ऐसे में रिसर्च क्या होगी? एनडीआरआई, गन्ना रिसर्च सेंटर, गेहूं अनुसंधान केंद्र में क्या रिसर्च हो रहा है यह किसान को पता ही नहीं चलता।

एनडीआरआई क्लोन तकनीक तो विकसित कर रहा लेकिन इससे युवाओं को क्या रोजगार मिलेगा? इस पर वैज्ञानिक विचार ही नहीं करते। सरकारों को यह समझना पड़ेगा कि गांव और शहर के विकास में अगर जमीन असमान का अंतर रहेगा तो असंतोष बढ़ेगा ही बढ़ेगा। गांव को विकास की मुख्यधारा में शामिल करना ही होगा। यदि ऐसा नहीं हुआ तो आरक्षण आंदोलन तो मांग भर है, अभी तो गांव के युवा शहर की ओर तेजी से पलायन करेंगे। इसका वजन शहरों पर पड़ेगा। ऐसे में शहर क्या करेंगे। यह सोच कर भी डर लगता है।

अब भी वक्त है। केंद्र व राज्य सरकारों को चाहिए कि गांव व कृषि के विकास के लिए नए नजरिये से विचार कर योजनाएं बनाएं। ऐसा नहीं है कि गांव का युवा गांव में नहीं रहना चाहता, मगर शर्त बस इतनी है कि उसे वह सब सुविधाएं मिलें जो शहर में मिलती हैं। कहते हैं ना उत्तम खेती, मध्यम व्यापार और निषिध चाकरी यानी गांव का युवा आज भी खेती करना तो चाहता है, लेकिन बदले हालात में।
(बातचीत पर आधारित)