सीतामढ़ी (बिहार) : रूठों को मनाना एक बड़ी चुनौती

सीतामढ़ी लोकसभा क्षेत्र में आगामी छह मई को मतदान होगा. 10 अप्रैल से इस सीट के लिए नामांकन शुरू हो जाएंगे, जो 18 अप्रैल तक चलेंगे. 22 अप्रैल तक नाम वापस लिए जा सकेंगे. जिले में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई है. विभिन्न राजनीतिक दलों से टिकट पाने के लिए जी-तोड़ कोशिशों में लगे दावेदारों के स्वर ढीले पड़ चुके हैं.अब नेताओं-कार्यकर्ताओं को उसी के समर्थन में चुनावी ताल ठोंकना है, जिसे शीर्ष नेतृत्व ने टिकट दे दिया है. सीतामढ़ी की वर्तमान राजनीतिक स्थिति, खासकर एनडीए के लिए 2014 जैसी है. 2014 के लोकसभा चुनाव में जब एनडीए की ओर से रालोसपा के टिकट पर राम कुमार शर्मा को चुनावी समर में उतारा गया था, तब जिले के भाजपा नेताओं-कार्यकर्ताओं के बीच असमंजस की स्थिति बन गई थी, जो बाद में शीर्ष नेतृत्व की पहल पर सामान्य हुई और राम कुमार शर्मा चुनाव जीत सके थे. इस बार चर्चित चिकित्सक वरुण कुमार को एनडीए से जदयू के टिकट पर चुनावी समर में उतारा गया है. डॉ. वरुण को प्रत्याशी बनाए जाने को लेकर नेताओं-कार्यकर्ताओं में खासा रोष देखा गया. कुछ लोगों ने इसे प्रदेश एवं शीर्ष नेतृत्व की मनमानी भी करार दिया.

चुनाव को लेकर वोटर तो अभी कुछ साफ-साफ कहने के मूड में नहीं हैं. लेकिन, चुनावी चौपालों में जातियों एवं पार्टियों को आधार बनाकर जीत-हार का गुणा-भाग शुरू हो गया है. महागठबंधन से शरद यादव गुट के पूर्व सांसद डॉ. अर्जुन राय का चुनाव मैदान में उतरना लगभग तय है. दूसरी ओर राजद के पूर्व सांसद सीताराम यादव के समर्थक पटना में पार्टी कार्यालय से लेकर प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे तक विरोध दर्ज करा रहे हैं. अर्जुन राय इस सीट से 2009 के चुनाव में जदयू के टिकट पर सांसद निर्वाचित हुए थे, लेकिन 2014 में वह तीसरे स्थान पर रहे. अमित कुमार उर्फ  माधव चौधरी भी बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनावी अखाड़े में ताल ठोंकने के लिए तैयार हैं. अगर चौधरी चुनाव लड़ते हैं, तो जिले की राजनीति में एक नया मोड़ आने की संभावना है. एनडीए खेमे से डॉ. वरुण को टिकट मिलने की चर्चा के बाद तिरहुत स्नातक क्षेत्र के विधान पार्षद देवेश चंद्र ठाकुर ने भी बतौर निर्दलीय चुनावी समर में उतरने का संकेत दिया था, लेकिन उनका अंतिम फैसला सामने आना अभी बाकी है.

सीतामढ़ी सीट के लिए 1962 से लेकर 2009 तक हुए लोकसभा चुनावों में अलग-अलग दलों से यादवों को क्षेत्र के प्रतिनिधित्व का मौका मिला. जबकि 2014 में मोदी लहर ने इस सीट से कुशवाहा समाज के राम कुमार शर्मा को विजय दिलाई. इस बार वैश्य समाज से डॉ. वरुण को एनडीए की ओर से जदयू के टिकट पर चुनाव मैदान में उतारा गया है. सूत्रों के मुताबिक, इस निर्णय से असंतुष्ट जिला भाजपा के पदाधिकारियों की एक बैठक में शीर्ष एवं प्रदेश नेतृत्व से पुनर्विचार की मांग करने को लेकर चर्चा भी हुई. कुल मिलाकर तस्वीर यह बन रही है कि यादव वोटर अपनी पुरानी सीट वापस पाने के लिए महागठबंधन के पक्ष में एकजुट हो सकते हैं. वहीं एनडीए इस मामले में फिलहाल गंभीर नहीं दिख रहा है. देखना यह है कि नामांकन से पहले भाजपा अपने एवं सहयोगी पार्टियों के नेताओं-कार्यकर्ताओं का रोष किस हद तक समाप्त कर पाती है. वहीं महागठबंधन को भी अपने रूठे नेताओं-कार्यकर्ताओं को मनाने की जरूरत पेश आएगी.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *