नई दिल्ली।
जीएसटी यानी एक समान वस्तु एवं सेवा कर के लागू होने से किस वस्तु के दाम पर क्या असर पड़ेगा, इस पर खूब चर्चा हो रही है। डीज़ल और पेट्रोल के दामों पर पड़ने वाले प्रभाव पर कुछ ज्यादा ही चर्चा हो रही है, क्योंकि शनिवार से लागू होने वाले गुड्स एंड सर्विस टैक्स के दायरे से केंद्र सरकार ने पांच चीजों को बाहर रखा है।
इनमें सभी प्रकार की शराब, पेट्रोल, डीजल, हवाई यात्रा के लिए इस्तेमाल होने वाले एविएशन फ्यूल और बिजली शामिल हैं। इनको जीएसटी से बाहर रखने की सबसे बड़ी वजह है कि केंद्र और राज्य सरकार को सबसे ज्यादा कमाई इन्हीं वस्तुओं से होती है।
पेट्रोल, डीज़ल की प्रोसेसिंग से जुड़े अन्य सामानों पर जीएसटी लागू होने से कंपनियों की कुल लागत बढ़ेगी। अरुण जेटली ने कहा है कि जीएसटी में बदलाव होने से 66 चीज़ों पर टैक्स घटेगा। ओएनजीसी के पूर्व प्रमुख आरएस बटोला के अनुसार, पेट्रोलियम कंपनियों पर 15 हज़ार से 25 हज़ार करोड़ का अतिरिक्त भार पड़ेगा जिसे वे ग्राहकों से वसूलना चाहेंगी।
मौजूदा समय में पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमतें दो तरह के टैक्स से तय होती हैं। एक केंद्र सरकार की एक्साइज़ ड्यूटी और दूसरे राज्य सरकार की ओर से लगाया जाने वाला सेल्स टैक्स या वैट। इनसे आने वाला राजस्व सरकारी खजाने के सबसे बड़े स्रोतों में एक है।
पेट्रोलियम क़ीमतों में 45 से लेकर 48 प्रतिशत तक टैक्स का हिस्सा होता है। कहीं-कहीं तो राज्य सरकारों ने 28 से 30 प्रतिशत तक वैट वसूलती हैं। जीएसटी में आने से राज्य सरकारों का ये हिस्सा चला जाएगा, इसीलिए उनके विरोध के चलते इसे जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है।
जीएसटी पर बहस के दौरान भी इसे एल्कोहल की तरह संविधान संशोधन विधेयक से बाहर रखने की मांग की गई थी लेकिन अच्छी बात ये रही कि इसे विधेयक में शामिल कर लिया गया है। यानी अभी पेट्रोल और डीज़ल पर जीएसटी भले न लागू हो, भविष्य में जब भी सहमति बनेगी, जीएसटी काउंसिल इसे अपने समान टैक्स दायरे में ला सकती है।
फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन पेट्रोलियम इंडस्ट्रीज़ के अनुसार, इसके कारण पेट्रोलियम कंपनियों की लागत में प्रतिवर्ष 15,000 करोड़ रुपये का भार पड़ेगा। जबकि सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के एक सर्वे के अनुसार, लागत में ये वृद्धि हर साल 25,000 करोड़ रुपये तक हो सकती है।
ज़ाहिर सी बात है, कंपनियां इतने बड़े बोझ को खुद नहीं वहन करेंगी और इसका भार ग्राहकों पर डाला जाएगा। फ़र्टिलाइज़र्स का मुख्य कच्चा माल नेचुरल गैस होता है। जब पेट्रोलियम कंपनियां गैस बेचेंगी तो वे एक्साइज़ और वैट आदि टैक्स देंगी। यानी ये टैक्स तो लागत में जुड़ेगा लेकिन जब फ़र्टिलाइज़र कंपनियां बेचेंगी तो उन्हें जीएसटी देना पड़ेगा और उन्हें इसमें पहले दिए टैक्स की छूट भी नहीं मिलेगी।
पेट्रोलियम कंपनियों की लागत में एक बड़ा हिस्सा सेवाओं का भी होता है जिस पर उन्हें जीएसटी के हिसाब से टैक्स देना पड़ेगा। इससे कुल मिलाकर लागत बढ़ेगी और क़ीमतों पर असर भी पड़ेगा। इससे या तो सरकारी सब्सिडी बढ़ेगी या फिर इसका भार ग्राहकों पर पड़ेगा।