गुमनाम सी 21 साल की आंचल ठाकुर स्कीइंग में देश के लिए पहला इंटरनेशनल मेडल जीतकर अचानक सुर्खियों में आ गई। आंचल ने तुर्की में आयोजित अल्पाइन एजदर 3200 कप टूर्नामेंट में कांस्य पदक हासिल किया। आंचल अपनी उपलब्धि और सम्मान को लेकर उत्सुक हैं। उनसे उनकी उपलब्धि और स्कीइंग को लेकर बातचीत की निशा शर्मा ने-

छोटी उम्र बड़ा अवार्ड क्या कहेंगी?
मुझे बहुत खुशी है। मैंने मेडल नौ तारीख को ले लिया था यानी सफलता मुझे उस दिन मिली थी, जब मेरी सफलता को पहचान मिली। वह दिन था जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने मेरे लिए ट्वीट किया था। मेरे लिए इससे बड़ी और कोई बात नहीं थी। देशवासी और प्रधानमंत्री मेरी वजह से गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं इस चीज ने मेरा आत्मविश्वास बढ़ाया है।

स्कीइंग की ओर रुझान कैसे हुआ?
मैं इस खेल में खुद की वजह से नहीं आई हूं। मेरे पापा स्कीइंग करते थे और वह नेशनल चैम्पियन रह चुके हैं। वो चाहते थे कि मैं भी स्कीइंग करें। मेरा पूरा परिवार स्कीइंग करता है। मेरी बुआ के बेटे, ताया जी के बेटे, मेरा भाई सब इसी स्पोर्ट से जुड़े हैं। दूसरा जब मैं छह साल की थी तभी से इस खेल में हूं, मैं शुरू से ही अच्छा स्कीइंग करती थी। पापा ने सबसे पहले हमें प्रशिक्षण देना शुरू किया था। उसके बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ट्रेनिंग के लिए मेरे पिता ने हमें यूरोप भेजा। इसी तरह मैं इस खेल से जुड़ती गई।

ऐसा कभी लगा कि स्कीइंग के अलावा कुछ और करने का लक्ष्य था?
नहीं, घर में शुरू से स्कीइंग को लेकर ही माहौल था तो मैं प्रोफेशन तो इसे ही मानती थी। हालांकि मेरी रुचि जो आप कह रही हैं वो स्कीइंग से अलग है- जैसे मुझे पेंटिंग करना, डांस करना, एक्टिंग करना साथ ही आर्ट एंड क्रॉफ्ट में भी बहुत रुचि है, यहां तक कि मैं अपने कपड़े खुद डिजाइन करती हूं। तो रुचि मेरी अलग जरूर रही है जो मैं खाली समय में करती हूं लेकिन स्कीइंग में कुछ हासिल करना मेरा लक्ष्य रहा है।

विंटर स्पोर्ट्स को देश में उतनी मान्यता नहीं है, ऐसे में आपका संघर्ष कैसा रहा?
सबसे बड़ा संघर्ष यही है कि कोई इसके बारे में जानता नहीं है। इस खेल में सबसे ज्यादा मुश्किलें पैसे को लेकर आती हैं क्योंकि यह एक ऐसा खेल है जो सबसे महंगे खेलों में गिना जाता है। मुझे विंटर गेम्स फेडरेशन आॅफ इंडिया की तरफ से काफी मदद मिली। इस खेल में हिमाचल में उस तरह की ट्रेनिंग सुविधाएं भी नहीं हैं जिसके जरिये हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल सकें। दूसरा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने के लिए आपको उस तरह की ट्रेनिंग की भी जरूरत पड़ती है। इस ट्रेनिंग में अगर आप एक दिन के लिए एक ट्रेनर रखते हैं, तो वह प्रति एथलीट करीब 300 यूरो (24000 रुपये) प्रति दिन लेते हैं। ऐसे में हफ्ते और महीने हम ट्रेनिंग में लगाते हैं, ताकि हम बेहतर खेल सकें। इस खेल को खेलने के लिए शारीरिक तौर पर ही संघर्ष नहीं करना पड़ता बल्कि पैसे को लेकर भी बड़ा संघर्ष करना पड़ता है।

जब यह रोमांचक क्षण आया तो कैसा लगा?
जब मेरे नाम की घोषणा हुई तो मुझे विश्वास नहीं हुआ लेकिन मेरी टीम के साथी मेरे साथ थे। उन्होंने भी खुशी जाहिर की तो लगा कि कुछ बड़ा हुआ है। उसके बाद मैंने अपने पापा को मेडल के बारे में व्हाट्सएप से वीडियो कॉल करके बताया। पहले तो मेरे पापा को लगा कि यह मेडल खेल में भागीदारी पर मिला है। उसके बाद पापा ने पूछा कि कोई रैंक आया क्या? तो मैंने कहा हां जी, कांस्य पदक है यह। तो उनको भी विश्वास नहीं हुआ। बाद में मेरे पापा बहुत खुश हुए। उसके बाद वापस देश लौटने पर घरवालों ने, देशवासियों ने स्वागत किया वो मेरे लिए गजब का उत्साहवर्धक था।

सरकार से क्या उम्मीद कर रही हैं?
हिमाचल में एक अच्छा-सा स्की रिजॉर्ट बने ताकि हम जैसे एथलीट को सीखने के लिए इतना पैसा खर्च करके बाहर के देशों में न जाना पड़े। दूसरा हमारे यहां पूरे साल बर्फबारी नहीं होती है। ऐसे में आर्टिफिशियली उपकरणों के इस्तेमाल से बर्फ बनाई जाती है। मैं उम्मीद करती हूं कि हमारी सरकार इन उपकरणों को राज्य में लगाएगी ताकि प्रैक्टिस करने में परेशानियों का सामना न करना पड़े।

अगला पड़ाव कौन सा है?
विंटर ओलंपिक गेम 2022 के लिए क्वालीफाई करना और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्कीइंग में हिस्सा लेना, देश के लिए और मेडल लाना मेरा अगला पड़ाव और उद्देश्य है।