संध्या द्विवेदी
महिला काजियों का पहला बैच अपनी अंतिम चरण की पढ़ाई पूरी कर साल के अंत तक मैदान में उतरेगा। पुरुष काजियों के सामने महिला काजी एक बड़ी चुनौती खड़ी कर सकती हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इनका विरोध भी किया है। देवबंदी उलेमा ने तो साफ कहा, ‘दारुल कजा के मामले बेहद पेचीदा और नाजुक होते हैं। उन्हें मर्द काजी ही मुकम्मल तौर पर अंजाम दे सकते हैं। उलेमा ने संस्था को मुस्लिम परसनल लॉ बोर्ड से मशविरा करने की सलाह दी है। इस पर भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की को-फाउंडर जकिया सोमन सवाल पूछती हैं, ‘आखिर मुस्लिम परसनल लॉ बोर्ड को जानता कौन है? पांच हजार औरतों के बीच किए गए अध्ययन के अनुसार 95.5 फीसदी औरतों ने इनका नाम तक नहीं सुना है।’
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की को-फाउंडर जकिया सोमन ने बताया, ‘यह महिला काजी शरीया लॉ, कुरान, हदीस और भारतीय संविधान में महिलाओं को मिले अधिकारों की जानकार होंगी।’ यानी यह केवल इस्लाम सम्मत ही नहीं संविधान सम्मत काजी होंगी। मर्द काजी से जानकारी के मामले में पीछे नहीं बल्कि चार कदम आगे होंगी महिला काजी। शैक्षणिक संस्था दारुल-उलूम-ए-निस्वाह इन्हें प्रशिक्षण दे रही है। जकिया ने बताया कि हमारे पास कुरान की जानकार महिला काजी पहले से थीं। हम महिलाओं को निकाह और तलाक जैसे मामलों में पहले ही सलाह देते आए हैं, उनके हक बताते आए हैं। लेकिन यह महिला काजी एकेडमिक स्तर पर पूरी तरह से दक्ष होंगी। भारत में इससे पहले महिला काजियों के लिए औपचारिक व्यवस्था नहीं थी। जाकिया सोमन दारुल-उलूम-ए-निस्वाह की ट्रस्टी भी हैं।
मुस्लिम परसनल लॉ बोर्ड ने इसका विरोध किया है। लेकिन जकिया को इनके विरोध की कोई परवाह नहीं। वह तो उलटे सवाल पूछती हैं, ‘भई कोई मुस्लिम परसनल लॉ बोर्ड से पूछे कि इनकी संवैधानिक स्थिति क्या है? हमारी तरह यह भी गैर सरकारी संगठन है। मगर हमने समाज में जाकर काम किया है और कर रहे हैं, और यह एक ऐसी संस्था है जिसने कोई भलाई का काम अब तक नहीं किया। इन्होंने क्या काम किया है, किसी समाज सेवा में इनकी हिस्सेदारी है? यह तो खुद ही इस्लाम और मुस्लिम समाज के ठेकेदार बन बैठे हैं।’ जकिया राष्ट्रीय स्तर पर सस्था द्वारा किए गए नो ‘मोर तलाक’ शीर्षक से प्रकाशित अध्ययन का हवाला देते हुए कहती हैं, ‘हमारे अध्ययन में निकल कर आया कि 95.5 प्रतिशत औरतों ने तो मुस्लिम परसनल लॉ बोर्ड का नाम भी नहीं सुना।’ अब आप ही तय कीजिए कि मुस्लिम समाज में इनकी स्वीकार्यता कितनी है?

भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन औरतों पर कर चुका कई अध्ययन
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन मुस्लिम समाज में महिलाओं के खिलाफ होने वाली गैरबराबरी के खिलाफ आवाज उठाता रहा है। महिलाओं से जुड़े कई अध्ययन अभी तक हो चुके हैं। ‘नो मोर तलाक’ नाम से एक विस्तृत अध्ययन इस संस्था ने पिछले साल किया था। इसमें 4,700 औरतों ने भाग लिया था। राष्ट्रीय स्तर के इस अध्ययन में मुस्लिम औरतों से मुस्लिम परसनल लॉ में सुधार के बारे में उनकी राय मांगी गई। 92 प्रतिशत महिलाओं ने एकतरफा, मौखिक तीन तलाक पर रोक लगाने की बात कही। 91.7 प्रतिशत औरतों ने बहुविवाह को खत्म करने की बात कही। सबसे चौंकाने वाली बात थी कि 95.5 प्रतिशत औरतों ने मुस्लिम परसनल लॉ बोर्ड के बारे में सुना ही नहीं था।