पं. भानुप्रतापनारायण मिश्र

प्रज्वलित दीपकों की पंक्ति लगा देने वाली दीपावली 30 अक्टूबर को है। यही महालक्ष्मी का जन्मदिन है। कार्तिक अमावस्या रात 11 बजकर 8 मिनट तक है। सुबह नहाकर देव, पितृ और पूज्यजनों का अर्चन करना चाहिए। इस दिन प्रथमपूज्य गणेश जी, लक्ष्मी जी, सरस्वती जी,  देवराज इन्द्र व कुबेर जी की पूजा की जाती है। प्रदोष काल या और स्थिर लग्नों-वृष, शाम 6 बजकर 30 मिनट से 8 बजकर 22 मिनट ही सर्वश्रेष्‍ठ है। सिंह लग्न में इस बार पूजा करना फलदायक नहीं रहेगा।

विवाहित हैं तो लक्ष्मी जी की पूजा सपरिवार करना विशेष फलदायक है। पूर्ण ब्रहमचर्य जरूरी है इस पर्व में। ऐसा माना जाता है कि लक्ष्मी जी स्थिर लग्न में की गई पूजा स्वीकार कर हमेशा घर में ही निवास करती हैं। रात समाप्त होने से पूर्व सूप और डमरू आदि को बजाकर अलक्ष्मी को घर से निकाल देना चाहिए।

सबसे पहले लक्ष्मी और गणेश की मूर्ति या चित्र,  श्रीयंत्र अगर उपलब्ध हो तो जल से उसे पवित्र करके लाल कपड़े से ढकी चौकी पर स्थापित करें। लाल या सफेद कंबल या उनी आसन पर पूर्व या उत्तर की तरफ मुंह करके बैठें।

अपनी बायीं ओर पर एक जल से भरा तांबे का लोटा,  घंटी,  धूपदान और तेल से भरा दीपक रखें। अपनी दायीं ओर पर घी का दीपक,  जल से भरा शंख-दक्षिणावर्ती हो या उत्तरावर्ती रखें। यहां यह बात ध्यान रखनी है कि दक्षिणावर्ती शंख की पूजा को सर्वाधिक उत्तम माना जाता है। मूर्ति या चित्र के सामने चंदन, रोली, मौली, फूल-कमल हो तो बहुत ही अच्छा और अक्षत-चावल आदि एक थाली में रखें। चौकी पर लक्ष्मी और गणेश जी को भोग लगाने के लिए नैवेद्य-प्रसाद, खील-बतासे चीनी से बने खिलौने,  मिठाइयां आदि रखें।

फिर पूजा की सामग्री और अपने ऊपर जल छिड़कें विष्‍णु जी का तीन बार नाम लेकर। फिर दाहिने हाथ से अक्षत-चावल और फूल आदि अर्पित करते हुए इन्द्र सहित सभी देवी-देवताओं को स्मरण करें। फिर गणेश जी का स्मरण करते हुए उन्हें अक्षत-फूल अर्पित करें।

फिर भगवान विष्‍णु-लक्ष्मी,  शंकर-पार्वती,  इन्द्र-इन्द्राणी, सरस्वती जी सहित अपने माता-पिता,  कुल देवी-देवता का स्मरण करते हुए अक्षत और फूल आर्पित करें। फिर गणेश जी को आसन प्रदान करें और उनके दाहिनी ओर माता अंबिका को पुष्‍प और अक्षत भेंट करें। फिर अपने दाहिने हाथ में अक्षत, फूल, दूर्वा, सुपारी, जल और दक्षिणा स्वरूप एक सिक्का लेकर महालक्ष्मी पूजन को संकल्प लें और गणेश जी की प्रथम पूजा करते हुए जल सहित सब पदार्थ गणेश जी को समार्पित कर दें।

फिर गणेश और अंबिका का स्मरण करते हुए अक्षत और फूल उन्हें अर्पित करें। फिर गणेश जी को पंचामृत से स्नान, जल से स्नान कराकर इत्र, वस्त्र-मौली, यज्ञोपवीत, रोली या लाल चंदन, चावल, फूल, दूर्वा और सिंदूर आर्पित करें। इसके बाद सुगंधित धूप जलाएं और दीपक दिखाएं। प्रसाद आदि चढ़ाकर पान, सुपारी-इलायची गणेश जी को आर्पित करें। मौसम के अनुसार फल आर्पित करें। रुपया दक्षिणा के रूप में प्रदान करें। कपूर से आरती करें और आरती पूरी होने पर उन्हें प्रणाम करें, फूल चढ़ा दें।

शंख होने पर उसे दायीं ओर चावल के उपर स्थापित कर चंदन या रोली से पूजन करें और पुष्‍प आर्पित करें। उत्तर-पूर्व-ईशान कोण में जौ-गेंहू के ऊपर कलश रखें। पुष्‍प और अक्षत चारों वेद और देवी-देवताओं का आवाहन करते हुए कलश का पूजन करें। नवग्रह और शोडषमातृका का पूजन करें। अब महालक्ष्मी का पूजन शुरू करें। श्रीयंत्र के साथ अगर उपलब्ध हो तो चांदी या सोने का सिक्का भी रखें। कमल पुष्‍प लक्ष्मी जी को चढ़ाएं।

फिर कमल पुष्‍प आसन के लिए आर्पित करें। देवी के पैरों पर जल,  सामने जल प्रदान करें। फिर तीन बार जल उनके सामने चढ़ाएं आचमन के लिए। स्नान कराएं घी, शहद,  दूध, चीनी और दही से। वस्त्र, आभूषण, रोली सिंदूर, कुंकुम, अक्षत-गुड़ आर्पित करते हुए फूल माला चढ़ाएं। धूप आर्पित कर दीप दिखाएं और फिर किसी छोटे बरतन में पान के पत्ते पर नैवेद्य-प्रसाद रखें।

लौंग का जोड़ा या इलायची लक्ष्मी जी को आर्पित करें। फिर जल दें। मौसम के अनुसार फल और दक्षिणा के रूप में रुपया चढ़ाएं और आरती करें। प्रदक्षिणा-परिक्रमा करें। पूजा में कोई अंजानी भूल हुई हो तो क्षमा मांगें और अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए उनसे निवेदन करें।

इसके बाद समय हो तो श्रीसूक्त, महालक्ष्मी अष्‍टकम,  श्रीकनकधारा स्‍तोत्र, विष्‍णुसहस्त्रनाम आदि का पाठ करें। समय न हो तो लक्ष्मी जी की आरती करने के लिए एक थाली में पुष्‍प और अक्षत के बीच दीपक स्थापित करें। आरती समाप्त होने पर घर के बुजुर्गों का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद अवश्‍य लें।