नई दिल्ली। गुजरात में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों और गुजरात सरकार को बड़ा झटका लगा है। अब आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण नहीं मिल पाएगा। गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य की आनंदी बेन सरकार के उस फ़ैसले को रद्द कर दिया है, जिसमें अनुसूचित जाति और जनजाति के बाहर आनेवाले समुदायों में से आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को 10 फ़ीसदी आरक्षण दिया जाना था। पत्रकार प्रशांत दयाल के अनुसार सरकार के खिलाफ़ बहुजन जातियों में लगातार उभरता असंतोष और पाटीदार आंदोलन के कारण आनंदीबेन को अपनी कुर्सी गवांनी पड़ रही है। अब जो भी उनकी जगह लेगा, उसे इस फ़ैसले की तपिश भी झेलनी पड़ेगी। गुजरात में आरक्षण को लेकर चल रहे पाटीदार आंदोलन के कारण पंचायत के चुनाव में भाजपा को भारी नुकसान हुआ था।
दरअसल, गुजरात हाईकोर्ट से गुजरात सरकार को बड़ा झटका लगा है। अदालत ने आनंदी बेन सरकार के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें उन्होंने आर्थिक आधार पर सवर्णों को आरक्षण दिए जाने का प्रावधान किया था। सरकार ने आर्थिक आधार पर सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देने का अध्यादेश जारी किया था, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। अदालत ने इस याचिका के आधार पर सरकार के फैसले पर रोक लगा दी है।
गुजरात हाईकोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए अनारक्षित श्रेणी के तहत दस फीसदी आरक्षण अध्यादेश रद्द कर दिया है। आंदोलनरत पटेल समुदाय को शांत करने के लिए राज्य की भाजपा सरकार ने यह कदम उठाया था। न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति वी एम पंचोली की खंडपीठ ने पिछले पहली मई को जारी अध्यादेश को अनुपयुक्त और असंवैधानिक बताते हुए कहा कि सरकार के दावे के मुताबिक इस तरह का आरक्षण कोई वर्गीकरण नहीं है बल्कि वास्तव में आरक्षण है।
अदालत ने कहा है कि अनारक्षित श्रेणी में गरीबों के लिए दस फीसदी का आरक्षण देने से कुल आरक्षण 50 फीसदी के पार हो जाता है, जिसकी उच्चतम न्यायालय के पूर्व के निर्णय के तहत अनुमति नहीं है। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि राज्य सरकार ने ईबीसी को बिना किसी अध्ययन या वैज्ञानिक आंकड़े के आरक्षण दे दिया। राज्य सरकार के वकील ने अदालत से आग्रह किया कि अपने आदेश पर स्थगन दे ताकि वे उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकें। इसके बाद उच्च न्यायालय ने अपने आदेश पर दो सप्ताह का स्थगन दे दिया। याचिकाकर्ता दयाराम वर्मा, राजीवभाई मनानी, दुलारी बसारजे और गुजरात अभिभावक संगठन ने अध्यादेश को अलग-अलग चुनौती दी थी। अध्यादेश के तहत अनारक्षित श्रेणी के तहत ऐसे उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दस फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया था, जिनके परिवार की वार्षिक आय छह लाख रूपये है। उनकी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई हुई।