रमेश कुमार ‘रिपु’
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सतना में 19 सितंबर को आयोजित राज्यस्तरीय पिछड़ा वर्ग महासम्मेलन में कह रहे थे, ‘किसी भी वर्ग के व्यक्ति के साथ अन्याय नहीं होने देंगे। सबको न्याय मिलेगा। ओबीसी वर्ग तोड़ने नहीं जोड़ने वाला वर्ग है। हम तोड़ने नहीं जोड़ने आए हैं।’ वे जब ऐसा कह रहे थे उस वक्त सतना हवाई पट्टी मैदान के पास एट्रोसिटी एक्ट का विरोध करने पहुंचे सवर्णों पर पुलिस लाठियां भांज रही थी। इससे पहले सवर्ण सेना ने चार किलोमीटर तक लंबी लाइन बनाकर चक्का जाम कर दिया था। सवर्ण सेना शिवराज को सतना में घुसने नहीं देना चाहती थी। इससे पहले शिवराज पर सीधी में चप्पल फेंका गया था। उनके रथ पर पत्थर फेंका गया था। बुधनी में एक कार्यक्रम में उन्होंने जब भाषण देना शुरू किया तो लोग कुर्सी छोड़कर जाने लगे। नरसिंहपुर में उन्हें काला झंडा दिखाया गया। उज्जैन में करणी सेना ने उनका विरोध किया। सवर्ण समाज के लोग सतना के भाजपा सांसद गणेश सिंह को ज्ञापन देना चाहते थे लेकिन उन्होंने ज्ञापन लेने से मना कर दिया तो नाराज लोगों ने कुत्ते को ज्ञापन देकर विरोध जताया।
इस तरह के विरोध से बचने के लिए मुख्यमंत्री ने एक ट्वीट किया, ‘अब एट्रोसिटी एक्ट के मामले में बगैर जांच के किसी की भी गिरफ्तारी नहीं होगी।’ सवाल यह उठता है कि क्या मुख्यमंत्री के इस ट्वीट से सवर्ण शांत हो जाएंगे। जबकि इस मामले में अध्यादेश जारी हो चुका है। भाजपा के पूर्व विधायक एवं सवर्ण समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लक्ष्मण तिवारी कहते हैं, ‘शिवराज सिंह सवर्ण विरोधी नेता हैं। वोट लेने के लिए उन्होंने यह ट्वीट किया है। उनकी सरकार बन गई तो वे फिर विरोध करने वाले किसी भी सवर्ण को छोड़ेंगे नहीं।’ सवर्णों की नाराजगी से भाजपा अच्छी तरह वाकिफ है। तभी तो राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने 18 सितंबर को भोपाल में आयोजित भाजपा के केंद्रीय पदाधिकारियों की बैठक में कहा, ‘सवर्णों के आंदोलन से पार्टी के परंपरागत वोटर नाराज होकर महागठबंधन के पाले में जा सकते हैं।’ राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल की मौजूदगी में हुई इस बैठक में सवर्ण आंदोलन का मामला छाया रहा। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह ने ब्राह्मण और क्षत्रिय मंत्रियों और पदाधिकारियों के साथ अलग से चर्चा की। उन्होंने उनसे कहा कि आंदोलनकारियों से चर्चा करें, नहीं तो मुश्किल हो जाएगी। सवर्ण आंदोलन को रोकें। जाहिर है कि भाजपा अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कही बातों पर काम करना चाहती है। उन्होंने कहा था कि जातीय वोटर की बजाय वर्गीय वोटर की सोच पर काम किया जाए। दरअसल नोटबंदी के बाद कहा जाने लगा कि व्यवसायी भाजपा से छिटक गए हैं। इसी साल 20 मार्च को एट्रोसिटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर कहा जाने लगा था कि इससे एससी/एसटी वर्ग भाजपा से दूर होने लगा है। अब एससी/एसटी कानून को नए स्वरूप में लाया गया तो कहा जाने लगा है कि सवर्ण और ओबीसी भाजपा से छिटकने लगे हैं।
भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री अनिल जैन कहते हैं, ‘पिछले दस साल के चुनावों से स्पष्ट है कि हर दल को हर जाति का वोट मिलता आया है। कुछ वोटर ऐसे हैं जो सरकार के कामकाज को देखकर वोट करते हैं। चूंकि प्रदेश और केंद्र सरकार का कामकाज बेहतर है तो जाहिर है कि भाजपा को लोग अधिक पसंद करेंगे। हमें तो यह देखना है कि केंद्र सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ अन्य वर्गों को मिल रहा है या नहीं।’ प्रदेश कांग्रेस की मीडिया प्रभारी शोभा ओझा कहती हैं, ‘केंद्र की हो या प्रदेश की सरकार, केवल आंकड़ों में विकास गिनाती है। शिवराज सरकार ने तो 172 घोटालों का रिकॉर्ड बना डाला है। ये सिर्फ झूठ बोलते हैं। जनता इनके झूठ से तंग आ गई है इसीलिए शिवराज की खिलाफत सड़क पर उतर कर करने लगी है। शिवराज तो डंके की चोट पर कहते हैं कि उन्हें सवर्णों का वोट नहीं चाहिए। महंगाई, बेरोजगारी ने लोगों को त्रस्त कर दिया है। उद्योग धंधे चौपट हो गए हैं। भाजपा की विदाई का निर्णय प्रदेश से और केंद्र से जनता ने कर लिया है।’
सियासी कड़ाहे में वोटों का तेल
जाति के सियासी कड़ाहे में हर दल वोटों का तेल अधिक से अधिक पड़े इस फिराक में है। लेकिन समस्या यह है कि जिन मुद्दों पर भाजपा ने दलितों को खुश करने की पहल की उन्हीं मुद्दों पर अगड़ी जाति के लोग नाराज हो गए। वोटरों को साधने से पहले बसपा ने प्रदेश में अपने 22 उम्मीदवारों की सूची जारी कर कांग्रेस को अंगूठा दिखा दिया। जाहिर है कि अब बसपा और कांग्रेस में गठबंधन की संभावना कम है क्योंकि छतीसगढ़ में उसने कांग्रेस को छोड़ अजीत जोगी का हाथ थाम लिया है। सपा भी अपने रास्ते चल सकती है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से भी समझौते की संभावना कम है। इसलिए कि छत्तीसगढ़ में जोगी की पार्टी से उसके गठबंधन के आसार हैं। जबकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ अब भी कह रहे हैं कि बातचीत चल रही है। यदि कांग्रेस का इन सभी से तालमेल हो जाता तो भाजपा को सीधे नुकसान होता। वहीं भाजपा के पास अब इतना वक्त नहीं है कि सवर्णों के विरोध को देखते हुए वह विभिन्न जातियों के बीच संतुलन बनाए। भाजपा अब हर जाति के लोगों का सम्मेलन करने की फिराक में है। मसलन स्वर्णकार सम्मेलन, विश्वकर्मा सम्मेलन, पटेल सम्मेलन, मुस्लिम सम्मेलन आदि। इसी कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 सितंबर को बोहरा मुस्लिमों के 53वें धर्म गुरु सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन से मुलाकात की और उनके विशेष वाअज में शामिल हुए। इससे उन्होंने यह संदेश देने का प्रयास किया कि भाजपा मुस्लिम विरोधी पार्टी नहीं है।
इसी तरह एट्रोसिटी एक्ट के जरिये भाजपा ने एससी/एसटी को यह बताने का प्रयास किया कि वही एकमात्र पार्टी है जो उनकी हितैषी है। इसके लिए उसने सवर्णों के भारत बंद को भी दरकिनार कर दिया। अब भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस प्रयास में जुट गए हैं कि पिछड़ा वर्ग एवं सवर्ण समाज को भी साध लिया जाए। प्रदेश में एसटी की 47 सीटेंआरक्षित हैं। 2013 के चुनाव में इनमें से भाजपा को 32 और कांग्रेस को 15 सीटें मिली थीं। आदिवासियों को साधने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने प्रदेश के कुल बजट का 24 फीसदी इन पर खर्च करने की घोषणा की है। यानी दो लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। बावजूद इसके आदिवासी वर्ग की नाराजगी इस बात को लेकर है कि ज्यादा सीट होने के बाद भी कैबिनेट में उन्हें पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता है। इसके अलावा 148 सीटों पर सवर्ण और ओबीसी वर्ग के लोग ही जीतते हैं। पार्टी का लक्ष्य इन 148 सीटों पर संतुलन बिठाना है ताकि इन वर्गों को साधकर अधिक सीटें जीती जा सकें।
कांग्रेस और भाजपा दोनों आशंकित
प्रदेश में एससी वोट बैंक को लेकर भाजपा ही नहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी चिंतित है। संघ और भाजपा ने सामाजिक समरसता के कार्यक्रम भी चलाए। अनुसूचित जाति की प्रदेश में 35 सीटें हैं जिनमें से 28 भाजपा के पास हैं। इस वर्ग को भी कैबिनेट में पर्याप्त स्थान नहीं मिला है। कैबिनेट में एससी वर्ग के मात्र दो मंत्री हैं, डॉ. गौरीशंकर शेजवार और लाल सिंह आर्य। गोपीलाल जाटव को भी उपचुनाव में मंत्री बनवाने की रणनीति के पीछे यही वजह थी पर आचार संहिता के कारण यह संभव नहीं हो पाया। भाजपा और कांग्रेस दोनों चुनावी गणित से आशंकित हैं। 2013 में 54 फीसदी सवर्णों ने भाजपा को और 25 फीसदी ने कांग्रेस को वोट दिया था। अब सवर्ण दोनों से नाराज हैं। दोनों पार्टियां यह नहीं कह सकतीं कि एक्ट के प्रावधान से वे सहमत नहीं हैं क्योंकि इससे दोनों ही दल को एससी/एसटी वर्ग के नाराज होने का खतरा है। इसलिए भी कि राज्य में 115 के बहुमत आंकड़े वाली विधानसभा में 82 आरक्षित सीटें हैं।
मौजूदा हालात में एट्रोसिटी एक्ट से बीजेपी को नुकसान ज्यादा पहुंच सकता है। राज्य की 230 विधानसभा सीटों में सवर्ण, ओबीसी के सीधे प्रभाव वाली 148 सीटों में से बीजेपी को 102 सीटें मिली थीं। जाहिर है कि सवर्ण और ओबीसी का चुनाव के कुछ महीने पहले सत्ता विरोधी रुझान भाजपा के हित में नहीं है। रीवा संभाग के सवर्ण सेना के अध्यक्ष राकेश शुक्ला कहते हैं, ‘भाजपा दोहरी चाल चल रही है। एक तरफ वह दलितों की हितैषी बने रहना चाहती है तो दूसरी ओर शिवराज ट्वीट कर सवर्णों को बरगला रहे हैं। भाजपा सवर्णों के साथ विश्वासघात कर रही है। जाति के आधार पर भाजपा समुदायों का ध्रुवीकरण करना चाहती है। धर्म के आधार पर वह लोगों को बांटना चाहती है पर ऐसा करने से भी उसे अबकी फायदा नहीं मिलेगा।’