उमेश सिंह
बृज नारायण चकबस्त एवं मीर अनीस का शायरी में बड़ा नाम है। अदबी जगत की ये दोनों शख्सियत गंगा जमुनी तहजीब की शानदार मिसाल हैं। अनीस और चकबस्त का नाम वाचिक परंपरा में एक साथ ही लिया जाता है। बृज नारायण चकबस्त का जन्म 19 जनवरी 1882 को राठ हवेली के पास कश्मीरी मोहल्ला में हुआ था। ये कश्मीरी मूल के थे। मुजाबीने चकबस्त, सुबहे वतन और कमला इनकी प्रमुख कृतियों में शुमार हैं। मुंशी प्रेमचंद और बृज नारायण चकबस्त के बीच गहरी दोस्ती रही। प्रेमचंद के पत्र सुबहे उम्मीद में चकबस्त नियमित रूप से लिखते थे। लेकिन यह दुर्भाग्य है कि रीडगंज स्थित अनीस चकबस्त पुस्तकालय में सुबहे उम्मीद की एक भी प्रति नहीं है।

अमीर बाबर अली अनीस का जन्म 1803 रीडगंज स्थित गुलाब बाड़ी के पास हुआ था। मीर अनीस मर्सिया के प्रमुख कवि के रूप में जाने जाते हैं। फारसी, हिंदी, अरबी और संस्कृत शब्दों को अपनी रचना ने स्थान दिया। मरसियों की रचना के अलावा रुबाइयां और गजल भी लिखीं। मीर अनीस की संपूर्ण रचनाएं पांच खंडों में प्रकाशित हैं। मिर्जा मोहम्मद सौदा का जन्म तो दिल्ली में हुआ लेकिन दिल्ली, फर्रुखाबाद ,लखनऊ होते हुए जीवन की सांझ बेला में फैजाबाद आ गए। खुशवंत सिंह जैसे नामचीन लेखकों का मानना है कि मिर्जा सौदा की मृत्यु लखनऊ में हुई लेकिन तीन वर्ष पहले फैजाबाद आए ज्ञानपीठ सम्मान से अलंकृत कवि केदारनाथ सिंह ने यह रहस्योद्घाटन कर हम सभी को चौंका दिया कि सौदा की मृत्यु फैजाबाद में हुई और सौदा की कब्र भी यहीं पर है। तत्समय हुई मुलाकात में उन्होंने मुझे जिम्मेदारी सौंपी थी कि तुम्हें पता लगाना है कि सौदा की कब्र फैजाबाद में कहां पर है। डॉक्टर सदानंद शाही, डॉक्टर अनिल सिंह व स्वप्निल श्रीवास्तव भी उस समय मौजूद थे। मैंने सौदा की कब्र को तलाशने की कोशिश की लेकिन कोई जानकारी नहीं मिल पाई और इसी बीच केदारनाथ सिंह ने भी इहलीला का संवरण कर लिया। डॉ. राम मनोहर लोहिया का जन्म फैजाबाद जिले के अकबरपुर तहसील (अब अंबेडकर नगर जिला ) में हुआ था। अकबरपुर के शहजादपुर मोहल्ले मे डा. लोहिया से जुड़ी तत्समय की स्मृति मौजूद नहीं है। आचार्य नरेंद्र देव का जन्म फैजाबाद शहर के रीडगंज मोहल्ले में हुआ। सफेद रंग की आचार्य जी की कोठी दो वर्ष पहले होटल में तब्दील हो गई। इन विभूतियों से जुड़ी निशानियां मिट गर्इं। भावना का चरम आवेग हो तो ईट-पाथर और माटी भी मौन संवाद करने लगता है। अब ऐसे ही संवादों का सहारा बचा है।

असरारुल हक मजाज का जन्म 19 अक्टूबर 1911 को फैजाबाद के रुदौली में जमींदार खानदान में हुआ था। इन्हें हम मजाज रुदौलवी व मजाज लखनवी के नाम से भी जानते हैं। इंकलाबी शायर के रूप में इनकी खास पहचान है। मजाज की ‘आवारा’ गजल बेहद चर्चित रही- शहर की रात और मैं नाशाद और नाकारा फिरूं/ जगमगाती जागती सड़कों पर आवारा फिरूं/ गैर की बस्ती है कब तक दरबदर मारा फिरूं/ ए गम-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं। मजाज की कृतियां आहंग, नजरें दिल , ख्वाबे -शहर और वतन -आशेब हैं। मजाज को महज 44 वर्ष की जिंदगी मिली। लखनऊ के लालबाग में 1955 में दिसंबर की सर्द रात में एक कमीज और जैकेट पहने एक छत पर बेहोशी की हालत में पाए गए और फिर उनकी मृत्यु हो गई। फिलहाल मजाज का पुश्तैनी घर रुदौली में है।

बाबा नागार्जुन ने शलभ श्री राम सिंह को कविता के नए गोत्र का सर्जक कहा। यह नया गोत्र युयुत्सावाद के रूप में साहित्य जगत में जाना गया। शलभ जी का जन्म भी तत्कालीन फैजाबाद जिले के मसोढ़ा गांव में हुआ था। फैजाबाद को दो दशक पहले दो भागों में बांट दिया गया। अब मसोढ़ा गांव अंबेडकर नगर जिले में है। उनकी एक नज्म बहुत चर्चित रही-‘नफस-नफस कदम-कदम/ बस एक फिक्र दम-ब-दम/ घिरे हैं हम सवाल से/ हमें जवाब चाहिए/ जवाब दर सवाल है कि इंकलाब चाहिए/ इंकलाब जिंदाबाद…।’ शलभ श्री राम सिंह का पुश्तैनी घर मसोढ़ा गांव में मौजूद है। शलभ की यादों को सुरक्षित रखने के लिए उनके वंशजों ने कलात्मक दृष्टि का परिचय दिया है। शलभ के समय की माटी की दीवारों को सुरक्षित रखते हुए ईट पाथर का नया घर बनाया है। शलभ के रिश्ते मे पौत्र अंशुमान सिंह ने कहा कि ‘अवध विश्वविद्यालय ने बाबा के नाम पर अपने एक भवन का नामकरण कर उनके योगदान को याद किया है। हम लोग भी अपनी भूमिका निभा रहे हैं।’