पं. भानुप्रतापनारायण मिश्र

30 अक्टूबर को भगवान विष्‍णु के वक्षस्थल में विराजमान लक्ष्मी जी का जन्मदिन है, दीपावली है। लक्ष्मी जी के विषय में शतपथ ब्राहमण में एक रोचक कथा है जिससे पता चलता है कि प्रजापति ब्रहमा ने उनकी उत्पत्ति की। जैसे-जैसे उनके गुणों और सुंदरता की चर्चा चारों तरफ फैलने लगी वैसे-वैसे उनसे विवाह करने के लिए देवताओं में उत्सुकता जाग उठी। इससे देवताओं में एक-दूसरे के प्रति ईर्ष्‍या पैदा हुई।

जब सब आपस में ही लडने लगे और तब तय हुआ कि हम सब में फूट डालने वाली लक्ष्मी को ही समाप्त कर दो। अपनी पुत्री लक्ष्मी की जान खतरे में देखकर प्रजापति ने देवताओं से प्रार्थना की। उन्होंने कहा कि आप सब मेरी पुत्री लक्ष्मी का वध न करें। इसके बदले आप उसके गुणों को ले लें। तब देवताओं ने राज्य, सत्ता, सृष्टि, शक्ति, धन, वैभव और सौंदर्य समेत सभी गुणों को लक्ष्मी जी से ले लिया। लक्ष्मी जी को इससे बड़ा दुख हुआ।

उनका मन विचलित हो उठा और उन्होंने अपने सभी गुणों को पुनःपाने का निश्‍चय किया। पिता प्रजापति ने उन्हें निराश और दुखी देखा तो वह और दुखी हो गए। तब प्रजापति ने उन्हें देवताओं को प्रसन्न करने के लिए तप करने का दुर्गम मार्ग बताया। वर्षों तपस्या करने के बाद उन्होंने अपनी सभी शक्तियां,  अपने सभी गुण वापस ले लिए। लक्ष्मी जी ने जिस तरह से अपने गुणों की प्राप्ति की,  उसी तरह से हर मनुष्‍य को खासकर महिलाओं को कठोर परिश्रम और भगवान की पूजा से लक्ष्मी जी को प्राप्त करना चाहिए।

मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख है कि लक्ष्मी जी की स्‍वर्ग में सर्वप्रथम पूजा नारायण ने की तो दूसरी बार ब्रहमा ने की। इसके बाद शिव जी, समुद्र मंथन के समय विष्‍णु जी,  मनु,  नागों और फिर हम मनुष्‍यों ने लक्ष्मी जी की पूजा शुरू की। यूं तो उल्लू को इनका वाहन माना जाता है पर महालक्ष्मी स्तोत्र में इनका वाहन गरूड़ बताया गया है। कुछ ग्रंथों में इनका वाहन हाथी को स्वीकारा गया है।

अलक्ष्मी कौन है? इसपर महाभारत में लिखा है-

षड् दोषाः पुरूषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता।

निद्रा तन्द्रा भयं क्रोधं आलस्यं दीर्घसूत्रता।।

इस श्लोक में कर्म,  स्वभाव व व्यवहार से जु़ड़ी इन छह आदतों को यथासंभव छो़ड़ने की सीख है-

नींद-अधिक सोना समय को खोना माना जाता है, साथ ही यह दरिद्रता का कारण है। इसलिए नींद भी संयमित, नियमित और वक्त के मुताबिक हो यानी वक्त और कर्म को अहमियत देने वाला धन पाने का पात्र बनता है।

तन्द्रा-तन्द्रा यानी ऊंघना निष्क्रियता की पहचान है। यह कर्म और कामयाबी में सबसे ब़डी बाधा है। कर्महीनता से लक्ष्मी तक पहुंच संभव नहीं।

डर-भय व्यक्ति के आत्मविश्वास को कम करता है,  जिसके बिना सफलता संभव नहीं। निर्भय व पावन चरित्र लक्ष्मी की प्रसन्नता का एक कारण है।

क्रोध-क्रोध व्यक्ति के स्वभाव, गुणों और चरित्र पर बुरा असर डालता है। यह दोष सभी पापों का मूल है, जिससे लक्ष्मी दूर रहती हैं।

आलस्य-आलस्य मकसद को पूरा करने में सबसे बड़ी बाधा है। संकल्पों को पूरा करने के लिए जरूरी है आलस्य को दूर ही रखें।

दीर्घसूत्रता-जल्दी हो जाने वाले काम में ज्यादा देर लगाना,  टालमटोल या विलंब करना। यह अलक्ष्मी का रूप है।