निशा शर्मा।

नई कविता आंदोलन के सशक्त हस्ताक्षर कुँवर नारायण अज्ञेय द्वारा संपादित तीसरा सप्तक के प्रमुख कवियों में रहे हैं। कुँवर नारायण को अपनी रचनाशीलता में इतिहास और मिथक के जरिये वर्तमान को देखने के लिए जाना जाता है। कुंवर नारायण का रचना संसार इतना व्यापक और जटिल है कि उसको कोई एक नाम देना सम्भव नहीं। हालांकि कुंवर नारायण की मूल विधा कविता रही है, पर इसके अलावा उन्होंने कहानी, लेख व समीक्षाओं के साथ-साथ सिनेमा, रंगमंच एवं अन्य कलाओं पर भी बखूबी लेखनी चलायी है। इसके चलते जहाँ उनके लेखन में सहज संप्रेषणीयता आई वहीं वे प्रयोगधर्मी भी बने रहे।

90 वर्ष की उम्र में बुधवार को कुंवर नारायण का देहांत हो गया। यह एक ऐस् कवि थे जिनका देश-विदेश में सबसे ज्यादा मान सम्मान हुआ।  साथ ही इनकी गणना भारत और विश्व के कुछ चुनिंदा समकालीन कवियों लेखकों में की जाती है। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कुंवर नारायण को श्रद्धांजलि देते हुए साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी कहते हैं – कुँवर नारायण हिंदी के महत्त्वपूर्ण कवि और विचारक थे। अज्ञेय के बाद की नयी कविता को जिन लोगों ने समृद्ध किया उनमें कुँवर नारायण जी प्रमुख थे। उन्होंने ‘आत्मजयी’ ‘वाजश्रवा के बहाने’ तथा ‘कुमारजीव’ के द्वारा नयी कविता में प्रबंधात्मक तथा लंबी कविताओं का अपना एक अलग उदाहरण रखा। इन कविताओं में भूत और वर्तमान तथा दर्शन और काव्य दोनों का अद्भुत मेल दिखाई पड़ता है। कुँवर नारायण जी ने आधुनिक साहित्य पर गंभीर विचारात्मक निबंध भी लिखे। वे संगीत, चित्रकला आदि के भी मर्मज्ञ थे। उनके जाने से काव्य तथा कला का एक महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व हमारे बीच से सदा के लिए ओझल हो गया है।