केदारनाथ,बद्रीनाथ और छत्र

राजीव थपलियाल

एक सवाल अक्सर कौंधता है कि बदरीनाथ धाम में मंदिर की छत, छत्र और कलश आदि को सोने का बनाने के लिए श्रद्धालुओं होड़ सी लगी रहती है लेकिन ऐसा केदारनाथ धाम के लिए क्यों नहीं होता। इसकी एक वजह यह है कि आज भी केदारनाथ मंदिर की व्यवस्था पर नेपाल राजघराने का सीधा हस्तक्षेप है, जो एक परम्परा का रूप ले चुका है। उसी के अनुसार मंदिर की छत और कलश बदलने के लिए नेपाल के राजघराने की अनुमति ली जाती है, जो आसानी से नहीं मिल पाती। शायद यही वजह है कि केदानाथ मंदिर का पौराणिक स्वरूप आज भी बरकरार है।
श्रीबदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) के मुख्य कार्य अधिकारी बीडी सिंह के मुताबिक, कुछ साल पहले एक श्रद्धालु ने बीकेटीसी से आग्रह किया था कि वह केदारनाथ मंदिर की छत पर लगे कलश बदलकर सनातन धर्म की शोभा बढ़ाना चाहता है। श्रद्धालु के इस प्रस्ताव की चर्चा आम हुई तो नेपाल राजघराने के प्रतिनिधि शमशेर बहादुर ने बीकेटीसी से इस पर आपत्ति जताई थी। आपत्ति में कहा गया था कि केदारनाथ मंदिर की छत, कलश आदि को बदलने का हक नेपाल के राज परिवार का है। राजघराने की आपत्ति के बाद श्रद्धालु की हसरत अधूरी रह गई। उसके बाद भी कई श्रद्धालुओं ने केदारनाथ मंदिर को कलश आदि अर्पण करने के प्रस्ताव मंदिर समिति के सामने रखे लेकिन समिति ने हर बार अपनी मजबूरी उनके सामने रख दी।
केदारनाथ धाम का नेपाल से जुड़ाव
पौराणिक कथा के अनुसार नेपाल में स्थित पशुपतिनाथ मंदिर और केदानाथ मंदिर का आपसी संबंध है। कहा जाता है जब पांडवों को स्वर्गप्रयाण के समय शिवजी ने भैंसे के स्वरूप में दर्शन दिए थे जो बाद में धरती में समा गए लेकिन पूर्णत: समाने से पूर्व भीम ने उनकी पुंछ पकड़ ली थी। जिस स्थान पर भीम ने इस कार्य को किया था उसे वर्तमान में केदारनाथ धाम एवं जिस स्थान पर उनका मुख धरती से बाहर आया उसे पशुपतिनाथ कहा जाता है। केदारनाथ में सबसे पहले पहले पांडवों ने भगवान शिव के मंदिर का निर्माण करवाया। बाद में आदिगुरु शंकराचार्य, नेपाल नरेश और ग्वालियर के राजा ने इसका अलग-अलग समय पर जीर्णोद्धार कराया।

बदला गया बदरीनाथ का छत्र
श्रीबदरीनाथ धाम स्थित भगवान बदरी विशाल के मंदिर के विग्रह का छत्र 9 मई को शाम सवा पांच बजे पूरे विधि विधान के साथ बदल दिया गया। होटल सरोवर पोर्टिको से मंदिर भवन तक छत्र शोभायात्रा के रूप में ले जाया गया। पौने चार बजे शुरू हुई इस यात्रा के साथ आसमान से भगवान इंद्रदेव भी हल्की मेघ रूपी पुष्पों की बारिश करने लगे। ठीक सवा पांच बजे ही छत्र का प्रवेश मंदिर में हुआ आश्चर्यजनक रूप से यह बूंदाबांदी बंद हो गई। मानो कि आसमान से देवगण भी इस पल के साक्षी बने हों।
पूर्व योजना के अनुसार, छत्र बदलने का मुहूर्त पहले दोपहर 11:45 से 12:30 बजे तक था, लेकिन खराब मौसम के चलते श्रद्धालु मंदिर नहीं पहुंच पाए थे। इसके बाद मंदिर के मुख्य पुजारी ईश्वरीप्रसाद नम्बूदरी व धर्माधिकारी भुवन उनियाल ने शाम साढ़े पांच बजे का मुहूर्त निकाला। इसके साथ महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा भगवान बदरीश को चढ़ाए गए लगभग 250 साल पुराने छत्र को लुधियाना (पंजाब) के मुक्त परिवार द्वारा चढ़ाए गए छत्र से बदल दिया गया। तमाम वेदपाठियों के अलावा श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के अधिकारी, मुक्त परिवार से जुड़े करीब 400 श्रद्धालु इस दुर्लभ मौके के साक्षी बने। छत्र बदलने के दौरान मुख्य पुजारी ईश्वरी प्रसाद नम्बूदरी और धर्माधिकारी भुवन उनियाल ने मंत्रोच्चारण किया। इस दौरान श्रद्धालुओं ने भगवान बदरीनाथ के जयकारे लगाए। सोने का यह छत्र मथुरा में शुद्ध 24 कैरेट का तैयार करवाया गया है। सोने के इस छत्र पर हीरा, पन्ना समेत कई अन्य बेशकीमती रत्न जड़े हुए हैं। इसका कुल वजन 3.5 किलोग्राम है। छत्र को बनाने में कारीगरों को कुल पांच माह का समय लगा था। बीते 7 अप्रैल को लुधियाना में इस छत्र का अनावरण समारोह धूमधाम से आयोजित किया गया था, जिसमें देश के कई प्रतिष्ठित साधु-संत मौजूद रहे।

सनातन धर्म की शोभा बढ़ाने को चढ़ाया छत्र
बद्रीनाथ मंदिर में सोने का छत्र समर्पित करने वाले लुधियाना के श्रद्धालु ज्ञानेश्वर सूद ने कहा कि भगवान में उनकी आस्था है। उन्होंने जो कुछ भी किया है, वह सनातन धर्म की शोभा बढ़ाने के लिए किया है। भगवान बद्रीनाथ मंदिर में छत्र चढ़ाने का संकल्प पूरा होने से अह्लादित ज्ञानेश्वर सूद ने कहा कि वह तीस साल से लगातार बदरीनाथ धाम आ रहे हैं। कुछ वर्षों से उनके मन में यह भाव जग रहा था कि भगवान की सेवा के लिए कुछ किया जाए। मंदिर समिति ने पिछले वर्ष सुझाव दिया कि यदि कुछ करना चाहते हो, तो भगवान का छत्र बदलवा दो। मंदिर समिति ने इसके पीछे यह तर्क दिया कि छत्र पुराना हो चुका है और जीर्ण हो चुका है। सूद ने बताया कि मंदिर समिति के सुझाव के अनुसार उन्होंने छत्र चढ़ाने का संकल्प लिया। भगवान बदरीनाथ के आशीर्वाद से यह संकल्प पूरा हुआ। ज्ञानेश्वर सूद का कहना है कि जब बदरीनाथ को छत्र अर्पित किया गया, तो उन्होंने देश की खुशहाली और तरक्की के लिए प्रार्थना की। 

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