जल्लीकट्टू पर मंजूरी भी मंजूर नहीं

तमिलनाडु के पारंपरिक खेल जल्लीकट्टू को दोबारा शुरू करने का रास्‍ता साफ होने के बावजूद एक पेच फंसा है। उसके लिए अध्यादेश को राज्यपाल की मंज़ूरी तो मिल गई है लेकिन यह जल्लीकट्टू के समर्थकों को मंजूर नहीं है और वे असंतुष्ट हैं। इसके लिए एक स्थाई समाधान की मांग पर अड़े हैं। चेन्नई के मरीना बीच पर भी पिछले छह दिन से जुटे हज़ारों प्रदर्शनकारी जल्लीकट्टू पर लाए गए अध्यादेश को नाकाफ़ी मान रहे हैं।

अलंगानल्लूर में प्रदर्शनकारियों ने उन जगहों तक जाने के रास्ते बंद कर दिए हैं जहां जल्लीकट्टू का उद्घाटन होना है। मुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेलवम शनिवार शाम को अलंगानल्लूर के लिए चेन्नई से रवाना भी हो गए थे।

अगले हफ्ते हो सकता है फ़ैसला

पनीरसेलवम आज से शुरू हो रहे जल्लीकट्टू का उद्घाटन कर पाएं इसके लिए प्रशासन और प्रदर्शनकारियों के बीच रात भर बातचीत चली। मदुरै से 18 किलोमीटर दूर अलंगानल्लूर एक तरह से तमिलनाडु में जल्लीकट्टू का गढ़ माना जाता है। यहीं से हफ़्ते भर पहले जल्लीकट्टू के समर्थन में फिर से प्रदर्शन शुरू हुए थे।

अलंगानल्लूर में एक प्रदर्शनकारी मुथुकुमारस्वामी ने कहा, “हम मुख्यमंत्री को जल्लीकट्टू का उद्घाटन करने नहीं देंगे। हमने प्रशासन के लिए रास्ते बंद कर दिए हैं। हम एक स्थाई समाधान चाहते हैं। ”

खेल के स्थान पर सांडों के लिए दरवाज़े खोलकर जल्लीकट्टू की शुरुआत होनी है। ज़िला प्रशासन ने खेल के आयोजकों से बात की है जो प्रदर्शनकारियों को मनाने में जुटे हैं। जयललिता के निधन के बाद मुख्यमंत्री बने ओ पनीरसेलवम और उनकी सरकार के लिए यह एक कड़ी परीक्षा है। तमिलनाडु में राजभवन की तरफ़ से एक बयान जारी कर शनिवार शाम कहा गया कि जल्लीकट्टू के आयोजन के लिए जानवरों के साथ क्रूरता संबंधी कानून में बदलाव किया गया है।

पिछले छह दिन से चेन्नई के मरीना बीच पर प्रदर्शन में शामिल प्रसन्ना कहते हैं कि ऐसा लग रहा है कि गणतंत्र दिवस समारोह के लिए मरीना बीच को खाली कराने के लिए ये सब किया जा रहा है। मरीना बीच पर जहां प्रदर्शनकारी डटे हुए हैं वहां 26 जनवरी के दिन परेड का आयोजन होता है। प्रसन्ना कहते हैं कि अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट ख़ारिज भी कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने बीबीसी को बताया कि कोई भी अध्यादेश अस्थाई समाधान होता है जिसकी जगह बाद में कानून लाया जाता है। इसे राष्ट्रपति की मंज़ूरी मिलना ज़रूरी होता है। और नए कानून पर भी अदालत में सवाल उठाए जा सकते हैं।

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